इनके पास है 4 लाख गायें, यहां गाय को मिलता है माँ का मान-सम्मान ..

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जोधपुर : गाय के नाम पर पूरे देश मे चल रही राजनीित से अलग मारवाड़ में गोसेवा के नए मापदंड गढ़े जा रहे हैं। डेढ़ हजार गोशालाओं में चार लाख से ज्यादा स्वस्थ-बीमार गाय-बैल का पालन-पोषण और संवर्धन। हजारों समर्पित लोग, गृहस्थ जनों से लेकर साधु-संतों तक। कइयों के लिए तो गायों का यह संसार ही परिवार है। हर गोशाला की अपनी इकॉनोमी। दुग्ध उत्पादों की साख ऐसी कि देश में दूर-दूर तक जाने वाला 600 रुपए किलो बिकने वाला यहां का घी भी लोग आंख बंद कर खरीदते हैं। ऐसे में जोधपुर नगर निगम का एक गोशाला संचालित करना मारवाड़ वासियों का गायों के प्रति इसी भावना का विस्तार भर है।

प्रदेश की सबसे बड़ी गोधाम पथमेड़ा गोशाला की 1.25 लाख गायों में 95 हजार अपंग, लाचार, दुर्घटनाओं में घायल या बूढ़ी हैं। संस्था हर साल 20 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान उठाती है, फिर भी अब तक नौ लाख से ज्यादा गाय, बैल व सांड का स्वस्थ कर किसान व गोपालकों को बांट चुकी है। जोधपुर नगर निगम प्रदेश का पहला निगम है, जो गोशाला का संचालन करता है। हजारों गायें भी इसके पास हैं। गायों के संरक्षण को लेकर किस स्तर पर काम हो रहा है इसी का प्रमाण है कि एक संस्था तो कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना करने जा रही है।

 गोशालाओं को पैसे की भी कमी नहीं है। दक्षिण भारत से लेकर विदेशों में बसे राजस्थानी तक इन्हें करोड़ों रुपए गाय की सेवा के लिए दते हैं। पथमेड़ा गोशाला के राष्ट्रीय प्रवक्ता पूनम राजपुरोहित कहते हैं कि मारवाड़ में गाय जीवन की धूरी रही है और अब बदले हुए दौर में गोशालाएं इस परम्परा को एक अलग तरह से आगे बढ़ा रही हैं। सरकार को चाहिए कि गौ संरक्षण, संवर्धन व पंचगव्य पर व्यापक नीति बनाए। गोशालाओं की साख ऐसी है कि इनके मिल्क प्रॉडक्ट बाजार से महंगी कीमत पर भी खरीदे जाते हैं। ऐसी ही डेयरी है पृथ्वीमेड़ा पंचगव्य, जो गोपालकों से 5 रुपए महंगा दूध खरीदती है। बाड़मेर, जैसलमेर, जालोर, सिरोही व पाली के 20 हजार गोपालकों से ये डेयरी एक लाख लीटर से ज्यादा दूध देसी गायों का इकट्ठा करती है। इससे घी, मिठाइयां व अन्य मिल्क प्रॉडक्ट रिटेल चेन से बिकते हैं। इससे सालाना करीब 100 करोड़ का कारोबार होता है और ये पैसा फिर गायों की सेवा में लगा दिया जाता है।

गोधाम पथमेड़ा गोबर से कागज बनाने और गौमूत्र से दवाएं भी बनाता है। गोपालक दूध न देने वाली गायों को छोड़ न दें इसके लिए 5 रुपए लीटर गोमूत्र खरीदा जाता है। हर दिन 10 हजार लीटर का संकलन होता है। संस्था के औषधालय में फिनाइल, अर्क से लेकर 30 से ज्यादा तरह की दवाओं तक का निर्माण किया जाता है। संस्था अब कामधेनु विश्वविद्यालय और गोअभयारण्य स्थापित करने जा रहा है। दो-दो मेगावाट बिजली के गोबर गैस प्लांट लगाने की भी योजना है।

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