जिस बच्चे के जन्म पर उसके मर जाने की प्रार्थना करते थे, उस बच्चे ने खड़ा किया 50 करोड़ का कारोबार

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नई दिल्ली। श्रीकांत बोल्ला की ज़िंदगी कभी भी आसान नहीं थी। कदम-कदम पर उन्हें दुत्कारा गया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। श्रीकांत को IIT में पढ़ने से रोका गया तो उन्होंने अमेरिकी के प्रतिष्ठित मैसाच्यूसैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में एडमिशन ले लिया। आज वो अपनी बनाई कंपनी के CEO हैं जिसकी मार्केट वैल्यू 50 करोड़ के ऊपर है। उन्हें हर किसी ने सिर्फ इसलिए कमतर माना था क्योंकि वो देख नहीं सकते थे। बचपन से ही उनकी आंखों में रोशनी नहीं थी।

आंध्र प्रदेश के एक गांव सितारामपुरम में जब श्रीकांत एक किसान के घर में पैदा हुए तो हर किसी श्रीकांत के मर जाने की प्रार्थना करने लगा लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंज़ूर था। वह बच गए और स्कूल जाना शुरू किया। उन्हें क्लास की आखिरी बेंच पर बिठाया जाता था। उन्हें किसी स्पोर्ट में भी हिस्सा नहीं लेने दिया जाता था। इन तमाम दुश्वारियों के बावजूद श्रीकांत ने 10वीं क्लास में टॉप किया।

12वीं क्लास में जब वह साइंस स्ट्रीम से पढ़ना चाहते थे तो आंध्र प्रदेश एजुकेशन बोर्ड ने दाखिला देने से साफ मना कर दिया। बोर्ड ने कहा कि ब्लाइंड स्टूडेंट्स के लिए सिर्फ आर्ट्स स्ट्रीम का ही विकल्प है। श्रीकांत बोर्ड के इस रुख के खिलाफ अदालत गए, अपने पक्ष में फैसला लेकर आए और 12वीं की परीक्षा में 98 फीसदी मार्क्स हासिल किया। 12वीं के बाद वह इंजीनियरिंग करना चाह रहे थे लेकिन शारीरिक अक्षमता के नाते यहां भी भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्हें IIT प्रबंधन ने एडमिट कार्ड तक नहीं दिया।

यही वह क्षण था जब श्रीकांत ने विदेश में पढ़ने का फैसला किया। उन्हें MIT, Stanford, Berkeley और Carnegie Mellon जैसे संस्थानों से एडमिशन का ऑफर आया। आखिर में उन्होंने MIT में दाख़िला लिया। अपनी इस सफलता पर श्रीकांत कहते हैं, ‘दुनिया मेरी तरफ देखकर कहती थी कि तुम कुछ नहीं कर सकते लेकिन मैं पलटकर दुनिया से कहता था कि मैं कुछ भी कर सकता हूं।’ पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीकांत वहीं नौकरी पा सकते थे लेकिन लौटकर हैदराबाद आए। जीवन में उन्होंने जो कुछ झेला था, वो नहीं चाहते थे कि दूसरों को भी वैसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़े।

हैदराबाद में उन्होंने ब्लाइंड लोगों के लिए ब्रेल लिपि को लोकप्रिय बनाया। एक डिजिटल लाइब्रेरी खड़ी की और ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की ताकि ऐसे बच्चों को पढ़ाया जा सके। 2010 में वह एक कदम और आगे गए। उन्होंने बोल्लांत इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई ताकि शारीरिक रूप से अपंग लोगों को रोज़गार दे सकें। इस कंपनी में पत्ते की प्लेट, कप, ट्रे और डिनर सेट जैसी चीजें बनाई जाने लगीं।

कंपनी में कर्मचारियों की लगन देखकर निवेशक रवि मंथा ने श्रीकांत को इसका मुखिया बना दिया। फिलहाल इस कंपनी में 150 हेंडीकैप्ड कर्मचारी काम करते हैं और इसकी सालाना बिक्री 70 करोड़ को पार कर चुकी है। श्रीकांत भविष्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं।

साभार – लाइव इंडिया हिंदी

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