हिमालय के योगियों की इन ‘अद्भुत शक्तियों’ ने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी कर दिया हैरान

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कई प्राचीन घटनाओं के माध्यम से यह ज्ञात है कि विभिन्न क्रिया-कलापों के निरंतर प्रयासों से मनुष्य असाधारण शक्तियां हासिल करने का सामर्थ्य रखता है। इन घटनाओं पर आधारित कई किस्से आज भी हमारे साहित्य के भीतर मौजूद हैं, लेकिन पाठकों के लिए वे सिर्फ कहानियाँ हैं। इसी कड़ी में हिमालय और वहां के योगियों की अद्भुत चमत्कारिक शक्तियों ने वैज्ञानिकों का भी ध्यान आकर्षित किया है। प्रोफेसर हर्बर्ट बेन्सन के नेतृत्व में हार्वर्ड स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने इन रहस्यमय परतों का पर्दाफ़ाश करने हिमालय की ओर निकल पड़े। ख़ैर यह घटना 20 साल पहले की है लेकिन इसके नतीज़े वाक़ई हैरान करने वाले हैं।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के निष्कर्षों ने हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म के बीच श्रेष्ठ धर्म को लेकर एक नया विवाद पैदा कर दिया है। हालांकि अन्य धर्मों की तरह इन दोनों धर्मों की भी महानता और श्रेष्ठता पर टिप्पणी करना पूरी तरह अनुचित है। सच यह भी है कि बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हिन्दू धर्म से ही हुई है। किन्तु पश्चिमी दुनिया में इसे लेकर एक अलग ही नजरिया है। पूरी घटना को पढ़ें, फिर अपनी सोच से हमें अवगत कराएं। इसे लेकर आपका नज़रिया क्या है?

सिक्किम में वैज्ञानिकों की टीम ने अलौकिक गुणों को प्रदर्शित करते कई भिक्षुओं को देखा। उन्नत साधना के दौरान इन भिक्षुओं के शरीर का तापमान इतना अधिक था कि अनुयायियों ने गीली चादर से उन्हें लपेट रखा था। भिक्षुओं के शरीर में आग पकड़ने के खतरे को कम करने के लिए उनके अनुयायी ऐसा किया करते हैं। एकाग्रता और सांस लेने की तकनीक के माध्यम से, इन भिक्षुओं ने अपने शरीर की चयापचय दर को 64 फीसद कम कर देते है जो उनके शरीर के तापमान को काफी बढ़ा देती। हालांकि भिक्षुओं के लिए 15,000 फीट की ऊंचाई पर हिमालय की उच्च सर्दियों में जीवित रहने के लिए यह आम बात है।

भिक्षुओं के इन अद्भुत शक्तियों पर अनुसंधान करने के उद्देश से हॉवर्ड की टीम ने उत्तरी भारत के एक मठ में कुछ तिब्बती भिक्षुओं को एक कमरे में बिठा दिया, जहां का तापमान करीबन 40 डिग्री फारेनहाइट था। फ़िर एक विशिष्ठ योग तरकीब ‘जी-तुम-मो’ की मदद से भिक्षुओं को गहरे ध्यान में प्रवेश कराया गया। इसके बाद ठंडे पानी (49 डिग्री) में भींगे कपड़े को साधक के कंधे पर रख दिया गया। इन परिस्थितियों में शरीर के तापमान घटने से मृत्यु निश्चित है किन्तु कुछ ही समय में भींगे कपड़े से भाप निकलनी शुरू हो गयी। ध्यान के दौरान भिक्षुओं ने अपने शरीर के तापमान को इतना बढ़ा दिया कि भींगे कपड़े एक घंटे के अंदर सूख गए।

अब सवाल यह है कि भिक्षु ऐसा क्यों करते हैं? कोई यह क्यूँ करेगा?

हर्बर्ट बेन्सन, जो 20 साल से ‘जी-तुम-मो’  पर अध्ययन कर रहे हैं, उनका कहना है कि “बुद्धिस्थ महसूस करते है कि हम लोग जिस वास्तविकता में रह रहे, वह असली वास्तविकता से भिन्न है। एक ऐसी हकीकत है जो हमारी भावनाओं से अप्रभावित है, हमारी रोजमर्रा की दुनिया उसे परखने में असमर्थ है। उनका मानना है मन की ऐसी अवस्था दूसरों के कल्याण और ध्यान से ही प्राप्त की जा सकती है। ध्यान के दौरान उत्पन्न ऊर्जा ‘जी-तुम-मो’ तरकीब का सिर्फ एक उप-उत्पाद है।”

बेन्सन पूरी तरह यह मानते है कि ध्यान की इस उन्नत रूपों के अभ्यास से ख़ुद की क्षमताओं को बेहतर तरीके से उजागर किया जा सकता है। इतना ही नहीं इससे तनाव संबंधी बीमारियों से भी छुटकारा मिलती है। शरीर की स्वस्थता का अनुमान उसकी मेटाबोलिज्म दर में कमी उत्पन्न कर, साँस लेने की दर, दिल की दर और रक्तचाप की विशेषता पर निर्भर करता है। ऐसा करने से मानव शरीर के उम्र में भी वृद्धि होती है।