ये विडियो आपको बताएगा कि कोर्ट में इतने केस पेंडिंग क्यों है क्या उसके पीछे की असली वजह

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आपमें से अगर कोई वकील मित्र है तो उनको बात जरा जल्दी समझ में आयेगी हमारे देश में न्याय व्यवस्था का जो सबसे बड़ा कानून है उसका नाम है IPC इंडियन पीनल कोड, एक दूसरा कानून है CPC सिविल प्रोसीजर कोड, एक तीसरा कानून है क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (अपराध दंड सहीता), ये 3 कानून है जो भारतीय न्याय वयवस्था का आधार बताये गए है या जिन्हें आधार माना जाता है आपको मालूम है ये तीनो कानून अंग्रेजो के ज़माने के बने हुए है IPC को बनाने का कम तो खुद मेकोले ने किया था, IPC की ड्राफ्टिंग खुद मेकाले की बने हुई है जिसको इंडियन पीनल कोड यानि भारतीय दंड सहीत कहते है जिसके आधार पर दंड की वयवस्था होती है मेकाले ने अपने पिता को एक पत्र लिखा है उस पत्र में वो कहता है कि मैंने भारत में ऐसे न्याय के कानून का आधार रख दिया है जिसपर भारत वाशियों कभी को न्याय मिलेगा ही नहीं, जिसके आधार पर भारतवाशी न्याय पा ही नहीं सकते | हमेसा इनके ऊपर अन्याय होगा ये अच्छा ही होगा क्योकि गुलाम जिनको बनाया जाता है उनके ऊपर अन्याय ही किया जाता है उनको न्याय नहीं दिया जाता |

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फिर जब राजीव दीक्षित जी और उनके साथियों ने ढूढना शुरू किया तो पाया कि जो IPC नाम का कानून भारत में मेकोले ने 1860 में लागु किया यही कानून अंग्रेजो ने आयरलैंड में सबसे पहले लागु किया था आयरलैंड को अंग्रेजो ने गुलाम बनाकर रखा हुआ है हजार साल से | तो आयरलैंड को गुलाम बनाकर रखने के लिये अंग्रेजो ने कानून बनाया Irish Penal Code उसी कानून को भारत में कह दिया Indian Penal Code | आप जानते है जब आयरलैंड लिखते है तो A से नहीं लिखा जाता I से लिखा जाता है Ireland तो आयरलैंड का I ले लिया और इंडिया का भी I है तो कानून वैसे का वैसा ही लगा दिया इस देश पर| जो आयरलैंड का कानून था आयरिश पीनल कोड वही इंडियन पीनल कोड है |

जब राजीव भाई ने आयरलैंड के पीनल कोड को खरीदकर पढ़ा और इंडियन पीनल कोड को पढ़ा, दोनों को सामने रखा तो राजीव भाई को इतना गुस्सा आया कि इसमें तो कोमा और फुल स्टॉप ताक नहीं बदला गया है वो भी वैसे का वैसे ही है| बस इतना ही किया मेकोले ने कि आयरिश पीनल कोड में जहा जहा आयरिश है वहा वहा इंडियन कर दिया और इंडिया कर दिया बाकि की सब धाराए वैसी की वैसी है सब अनुछेद वैसे के वैसे है | तो आयरलैंड को गुलाम बनाकर रखना है एसलिये आयरिश पीनल कोड बनाया तप भारत को गुलाम बनाकर रखना है तो इंडियन पीनल कोड बना दिया | जिस कानून को गुलाम बनाने के लिये तैयार किया गया हो उस कानून के आधार पर न्याय कैसे मिलेगा बताइए जरा, अन्याय ही होने वाला है सबसे बड़ा अन्याय क्या होता है कि जब IPC के आधार पर जब कोई मुकदमा दर्ज होता है इस देश में, तो सबसे पहले तो मुकदमा दर्ज होने में ही महीनो महीनो लग जाते है FIR करनी पड़ती है उसके बाद पुलिस को साबित करना पड़ता है, सबूत जुटाने पड़ते है,अदालत में जाना पड़ता है इस पूरी प्रक्रिया में ही देर लगती है क्योकि तरीका अंग्रेजो का यही है, फिर अगर वो मुकदमा दाखिल हो जाये तो सुनवाई शुरू होती है सुनवाई के लिये सबूत इकठे किये जाते है उन सबूतों के लिये अंग्रेजो के ज़माने का एक कानून है Indian Evidence Act. और वो सबूत जल्दी इकठे हो नहीं पाते है धीरे धीरे समय बढता जाता है और एक मुकदमे को 4 साल 5 साल 10 साल 15 साल 20 साल 25 साल 30 साल 35 साल समय निकल जाता है मुक़दमे को दाखिल करने वाला मर जाता है फिर उसके लड़के- लडकिय उस मुक़दमे को लड़ते है वो जवान होकर बूढ़े हो जाते है तब भी मुकदमा चलता ही रहता है चलता ही रहता है उसमे कभी अंतिम फैसला नहीं आ पाता |

हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आजादी ने 63 वर्षो में हमारे देश की अदालतों में लगभग साढ़े 3 करोड़ (2009 के आकड़ो के अनुसार) मुक़दमे है जो दर्ज किये गए है अलग अलग प्रार्थियो के द्वारा लेकिन उनमे कोई फैसला नहीं आ पा रहा है, साढ़े 3 करोड़ मुक़दमे लम्भित पड़े हुए है पेंडिंग है | हमारे देश के न्याय व्यवस्था के अधिकारियो से जब पूछा जाता है कि इन साढ़े 3 करोड़ मुकदमो का फैसला कब आयेगा तो वो मजाक करते हुए कहते है कि 300 -400 साल में फैसला आ जायेगा तो जब कोई उनसे पूछते है कि वो कैसे ? तो वो कहते है कि जिस गति से कानून व्यवस्था चल रही है इस गति से तो इन सभी मुकदमो का फैसला आने में 300-400 साल तो लग ही जायेगे तो ना वादी (मुकदमा दर्ज करने वाला) जिन्दा रहेगा ना प्रतिवादी (जिसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है) जिन्दा रहेगा, न्याय व्यवस्था को इससे कुछ लेना देना नहीं है कि वादी जिन्दा है या प्रतिवादी जिन्दा है उनको को लेना देना है अंग्रेजो के बनाये गए कानून के आधार पर फैसला देने से|

अब राजीव भाई बहुत गहरी बात आपके बीच रखते है और सारे राष्ट्र का ध्यान इस और आकर्षित करते हुए कहते है कि “कोई न्यायधीश अंग्रेजो के बनाये गए कानून के अधर पर अगर फैसला दे रहा है तो वो न्याय कैसे कर सकता है ये पूछिए| अपने दिल से पूछिए उस न्यायधीश से पूछिए ”. न्यायधीशो से जब जब राजीब दीक्षित जी ने ये पूछा है कि “क्या आप न्याय देते है” तो वो कहते है कि ईमानदारी से हम न्याय नहीं दे पाते, हम को मुकदमो का फैसला करते है| फैसला देना अलग बात है न्याय देना बिलकुल अलग बात है

अब आपको एक उदहारण से समझाते है फैसला क्या होता है और न्याय क्या होता है | मान लीजिये आपने एक गाय को एक डंडे से पिटा तो कानून के हीसाब से आपको जेल हो जायेगी, गाय को डंडे से पीटना भारत में अपराध है जुर्म है इसके लिये जेल हो जाती है लेकिन अगर उसी गाय को आपने गर्दन से काट दिया और उसके मास की बोटी-बोटी आपने बेच दी बाजार में, आपको कुछ नहीं होगा क्योकि कानून से वो न्याय सम्मत है अब गाय को डंडे से मारो तो जेल हो जाती है लेकिन गाय को गर्दन से काटकर उसकी बोटी-बोटी बेचो तो भारत सरकार करोड़ो रूपये की सब्सिडी देती है आपको| मै अगर गोशाला खोलना चाहू तो इस देश की कानून व्यवस्था के अनुसार मुझे बैंक से कर्ज नहीं मिल सकता लेकिन गाय को कतल करने के लिये कतलखाना बनाना हो तो उसके लिये बैंक करोड़ो रूपये कर्ज देने को तैयार है मुझे| आप सोचिये मै गौशाला बनाकर गाय का दूध बेचना चाहता हूँ, बैंक के पास जाता हूँ कि मुझे कर्ज दे दो| बैंक कहता है कि हमारी योजना में गाय को कर्ज देने की व्यवस्था नहीं है लेकिन उसी बैंक के पास मै जाता हूँ कि मुझे कतल खाना खोलना है और मुझे कर्ज दे दो तो बैंक ख़ुशी से कर्ज देता है उस कर्जे पर ब्याज सबसे कम लिया जाता है और करोड़ो रूपये का कर्ज तो मुफ्त में दिया जाता है सब्सिडी के रूप में| आप बताओ कि अगर हम गाय का मास बेचने के लिये कतलखाना खोलू तो हमारे लिये कर्ज है सब्सिडी है गौशाला खोले गाय के पालन करने के लिये तो हमें ना तो सब्सिडी है ना बैंक की कोई मदद है ऐसी व्यवस्था में न्याय कहा हो सकता है

और एक उदहारण से समझे अगर किसी बच्चे को जन्म लेने से पहले कोई मारे ना तो उसे गर्भपात कहके छोड़ देते है लेकिन जन्म लेने के बाद मारे तो हत्या हो जाती है धारा 302 का मामला बनता है बच्चे को गर्भ में मारे तो भी हत्या है जन्म लेने के बाद मारे तो भी हत्या है दोनों में सजा एक जैसी होनी चाहीए और वो फांसी ही होनी चाहीए लेकिन जन्म से पहले मारो तो गर्भपात है और जन्म के बाद मारो तो हत्या है एसलिये इस देश के लाखो लालची डॉक्टर करोड़ो बेटियों को गर्भ में ही मार डालते है क्योकि गर्भ में मार देने से उन्हें फांसी नहीं होती है गर्भ में बाहर मरेंगे तो उन्हें फांसी होने की संभावना है एक करोड़ बेटियों को हर साल इस देश में गर्भ में ही मार दिया जाता है इसी कानून की मदद से | अब आप बताओ कि बेटी को गर्भ में मार दो तो गर्भपात और गर्भ में बहार मारो तो हत्या | अगर इन कानूनों के आधार पर कोई फैसला होगा तो क्या वो न्याय दे सकता है, फैसला हो सकता है न्याय नहीं दे सकता एसलिये राजीव भाई इस देश के बड़े न्यायविधो को कहते है कि आप लोगो को अपना नाम बदलना चाहीए, कायदाधीश लिखना चाहीए, कानुनाधीश लिखना चाहीए आप न्यायधीश तो है ही नहीं क्योकि आप न्याय तो दे ही नहीं पा रहे है आप तो मुकदमो का फैसला कर रहे है अगर अंग्रेजी में उनके शब्दों में कहे तो वो कहते है हम तो केस डीसाइड करते है हम जजमेंट नहीं करते क्योकि न्याय देना बिलकुल अलग है मुक़दमे का फैसला देना बिलकुल अलग है| मुक़दमे का फैसला होता है कानून के आधार पर और न्याय होता है धर्म के आधार पर, सत्य के आधार पर| धर्म और सत्य से न्याय की स्थापना हो सकती है कानून से न्याय की स्थापना नहीं हुआ करती है | दुर्भाग्य से हमारे देश में धर्म और सत्य की सत्ता नहीं है कानून की सत्ता है लॉ एंड आर्डर की बात होती है धर्म और न्याय की बात नहीं होती| तो ये अंग्रेज छोड़ के चले गए कानून व्यवस्था को और वही ढो रही है हम आजादी के 63 साल के बाद भी |||