जिन्दगी बदल देंगे आयुर्वेद के ये सूत्र

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आप सभी से एक छोटी सी विनति है यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तंदरुस्त रहना चाहते हैं, तो अपने जीवन में अष्टांगहृदयं के सूत्रों का पालन करें. ये सूत्र इस प्रकार हैं.

पहला सूत्र – फ्रिज में रखा हुआ कुछ भी न खाएं और न ही पीयें. जो चीज फ्रिज में न राखी गयी हो और जिसको पवन का स्पर्श फुल हुआ हो, और जिसको सूर्य का प्रकाश भी खूब मिला हो उसको खाइए. मतलब हर चीज ताजी बनाकर खाइए. फ्रिज में रखी हुयी मत खाइए. फ्रिज में दूध, दही रखना भी बंद कर दीजिये, इनको बाहर रखिये तो आपके जीवन में स्वस्थ अपने आप आ जायेगा.

दूसरा नियम – आयुर्वेद या अष्टांगहृदयं का दूसरा नियम है, अगर जिंदगी स्वस्थ रखनी है तो ठंडा पानी मत पीजिये. पानी गर्म करके पीजिये. इतना गर्म होना चाहिए जितना आपका शरीर, क्यूंकि गर्म पानी शरीर की बहुत अच्छी तरह से सफाई कर देता है. टोक्सिंस वेस्ट को शरीर से बाहर करके फैंकता है. पचने में भी मदद करता है. गुनगुना पानी शरीर के पुरे तंत्र को व्यवस्थित रखता है. अगर आप जैन दर्शन मानते हैं तो ज्यादा देर रखा हुआ पानी भी मत पीजिये. क्यूंकि उसमें जिव वृदि होती है. तो हर समय ताजा यानि पानी को गुनगुना करके पीयें.

तीसरा नियम – आप जो भी खाना खाते हैं चबाचबाकर खाइए. हमारे भारत में चबाकर खाने का बहुत महत्त्व है यूरोप में नही है. यूरोप में ठण्ड होने के कारण जबड़े फ्लेक्सिबल नही होते तो ज्यादा चबा नही सकते. जो भी मिले उसे जल्दी जल्दी निगल कर खाते हैं यूरोप के लोग. हमारे यहाँ जबड़े बहुत फ्लेक्सिबल होते हैं तो हमें चबा चबाकर खाना चाहिए. और यूरोप में जो भी जबड़े है ना वो बहुत कड़क है, और कड़े मसूड़ों को साफ़ करना ब्रश से ही संभव है, इसलिए आप उनकी नक़ल मत करिए आपके मसूड़े बहुत सॉफ्ट हैं इसलिए नीम का दातुन करिए. अगर दातुन नही है तो घरेलू मंजन करिए.

चौथा नियम – भोजन को इतनी बार चबाकर खाइए जितने आपके दांत हैं, यानी 28 से 32 बार चबाइए. आयुर्वेद के अनुसार भोजन को इतना चबाइए कि लार के साथ ऐसे मिल जाए जैसे पानी की तरह उतर जाए. तो जिंदगी में कभी भी कोई बीमारी आने की सम्भावना नही है.

पांचवा नियम – पानी को जब भी पीयें घूंट घूंट कर पीजिये, जैसे गर्म दूध पीते हैं यानि सिप सिप करके पीजिये. ताकि पानी के साथ ज्यादा लार शरीर में जाए. लार जो है वो वात, पित्त और कफ तीनों को संतुलित रखता है. अगर मनुष्य को स्वस्थ रहना है तो हर रोज 4 से 5 लीटर लार की आवश्यकता होती है. और वो सिप सिप करके पानी पीने से ही संभव है. जिनको भी एड़ियों में दर्द है 3 दिन में ख़त्म हो जायेगा. कोई जॉइंट पैन है तो 12-13 दिनों में चला जायेगा. कितना भी भयंकर संधिवाद हो सिप करके पानी पीजिये, पानी को थोड़ी देर मुँह में घुमाइए फिर पीजिये. अगर आपका वजन बहुत बढ़ गया है, तो महीने 2 महीने ही कम हो जायेगा. जिस व्यक्ति का वजन 140 kg है 9 महीने लगातार सिप सिप करके पानी पीजिये वजन 70 kg रह जायेगा, वो भी बिना किसी योग, एक्सरसाइज के.

आपने देखा होगा कुत्ता कैसे पानी पीता है, सिप सिप करके, और कभी सुना है कुत्ते को डाईबिटिज हो गया है. चिड़िया सिप सिप करके पानी पीता है एक एक ड्राप उठाकर, इसीलिए चिड़िया को न संधिवाद होता है ना जॉइंट्स पैन होता है, न डाईबिटिज होता है न कैंसर होता है, न हाइपरटेंशन होता है न मिग्रैन होता है. वो स्वस्थ है मस्त है. बस वो खाने पीने का ध्यान रखती है हम रखते नही है इसलिए वो बीमार नही होती, हम बीमार होते है.

चिड़िया कभी रात को नही खाती और मनुष्य रात के 12 बजे भी खा लेता है. चिड़िया कभी भी खाने के साथ पानी नही पीती, सुबेरे खाना खाएगी दोपहर को पानी पीयेगी. सभी जानवर इस नियम का पालन करते हैं. सबसे मुर्ख भैंस वो भी इसी नियम का पालन करती है, सुबेरे भरपेट खाना खाएगी और दोपहर को 12 बजे पानी पीयेगी. लेकिन मनुष्य भैंस से भी ज्यादा गया गुजरा है, वो खाने के साथ गटा गट पानी पीता ही रहता है.

आयुर्वेद में ये सूत्र है “भोजन आंते विषम वारि” माने भोजन के पानी पीया तो विष पी लिया. तो आप भोजन के बाद पानी मत पीजिये, 1 से डेढ़ घंटे बाद पीयें. सुबह जब उठते है तो दिन की शुरुआत पानी से करनी चाहिए चाय से नही. जो लोग दिन की शुरुआत पानी से करते है और जो चाय से दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. चाय से शुरुआत करने वालों को 1 नही 68 बिमारियां होती है. और जो पानी से दिन की शुरुआत करते हैं उनको कोई रोग नही होता.

कम से कम सुबह उठते ही एक गिलास पानी तो जरुर पीयें, 2 गिलास पीयेंगे तो और अच्छा है और 3 गिलास पीयेंगे तो और भी अच्छा है. पानी पीते ही दोनों आंत साफ हो जाती है.और जिसकी दोनों आंत साफ़ हो गयी तो चिंता मत कीजिये कि वो कभी बीमार पड़ेगा. राजीव जी कहते थे की वे कभी बीमार नही हुए और न ही कभी डॉक्टर के पास गये, एक आधी गोली भी नही खाई और एक इंजेक्शन भी नही लगवाया, लोग पूछते थे आपकी कौन सी दवाई खाते हैं तो वो कहते हैं कि वो कभी दवाई नही खाते बल्कि आयुर्वेद के नियमों का कट्टरता से पालन करते हैं.

वो कहते हैं अगर सुबेरे उठकर पानी नही मिला तो वो उतनी देर टॉयलेट नही जाते थे जब पानी मिलता था तभी टॉयलेट जाते थे. और उठते ही बिना मुँह धोये और दांत साफ किये पानी पीते थे. रात को ही दांत साफ करके सो जाते थे. पानी जब भी पीते थे सिप करके पीते थे. औत बर्फ डाला हुआ ठंडा पानी कभी नही पीते थे. खाने के कम से कम 1 से डेढ़ घंटे बाद पानी पीते थे. बस आपमें में और राजीव भाई में फर्क इतना ही है कि उन्होंने कभी यूरोप और अमेरिका की नक़ल नही की. वो ये कहते हैं कि अगर आप सोच विचार कर कोई चीज जीवन में कर रहे हैं तो कभी बीमार नही होंगे. बिना सोचे समझे यूरोप और अमेरिका की नक़ल न करें.

मानसिक बीमारियाँ अगर आपको है या जिंदगी भर आप उनसे बचना चाहते हैं तो आयुर्वेद का एक छोटा नियम पालन करते रहिये कि रात को जब सोयें तो पूर्व दिशा में सिर करके सोइए और अगर बहुत मजबूरी आ जाए तो दक्षिण दिशा में सिर रख कर सो जाइये. उत्तर और पश्चिम दिशा को हमेशा छोडिये. उत्तर और पश्चिम की दिशा सोने के लिए बल्कि पुजा करने के लिए है. जितने भी दिन आप पूर्व कि और सिर करके सोयेंगे उठने दिन आपको मानसिक बीमारी नही आयेंगी. और कम से कम नींद नही आने की जो बीमारियाँ है वो आपकी ख़त्म हो जाएँगी.

तो आज ही अपने बेड की दिशा पूर्व की और कर लें. अगर जमीन पे सोते है तो आसानी से पूर्व कि और सिर करके सो सकते हैं.

आप कभी भी खाना खाएं तो कभी भी यूरोप और अमेरिका की नक़ल मत कीजिये मतलब कुर्सी या मेज पे बैठकर भोजन न करें. आप कहीं शादी या पार्टी में जाते है तो आप अपना खाना थाली में लेकर कहीं भी आराम से नीचे बैठकर खा सकते हैं. इसमें कोई हम छोटे होने वाले नही है. आप मुर्ख नही कहलाओगे बल्कि जो खड़े होकर खा रहे हैं वो मुर्ख हैं. भारत में सबसे अच्छी खाने की पद्दति है सुख आसन में बैठ कर खाना और खाने के बाद कम से कम 10 मिनट तक बज्र आसन जरुर करें. और दोपहर के भोजन के बाद कम से कम 10 मिनट वज्रआसन जरुर करें. और 20 मिनट विश्राम जरुर करें. और रात के भोजन के बाद 10 मिनट तक वज्रआसन जरुर करें और फिर टहलने के लिए जरुर जाएँ. कम से कम 500-700 कदम चलें.

ये 10-12 सूत्र जो बताये हैं इनको अपना लीजिये ये ही आपको स्वस्थ बना देंगे और कुछ करने की जरुरत नही है. और आप सभी से विनति है कि अपने बच्चों को अभि से इन बातों का संस्कार दे दें. उनको आदत डाल दीजिये कि भोजन के साथ पानी नहीं पीना है. अगर कहें कि गले में खाना फंस गया है तो उनको कहो कि लस्सी पी लो, दूध पी लो लेकिन पानी मत पियो. दोपहर के भोजन के बाद लस्सी पिला दो. रात के भोजन के बाद दूध पिला दो और सुबह के भोजन के बाद जूस पिला दो लेकिन पानी न पिलाएं.

पानी एक घंटे बाद ही पिलाएं. पानी हमेशा सिप सिप करके पीयें. बच्चों को जो संस्कार मिल गये फिर वो भूलने वाले नही. और वो जीवन भर स्वस्थ रहेंगे.

अगर गलती से बीमार हो गये तो अलोपेथिक की दवा न लें क्यूंकि वो ठन्डे देशों के हिसाब से बनाई गयी दवाई है, इसलिए सभी दवाइयां गर्म हैं. और गरम देश में रहने वाले गर्म दवाइयां खाये तो भयंकर साइड इफेक्ट्स हैं. अगर चिकनगुनिया के रोगी अलोपेथिक की दवाई खाते हैं तो उनके कंधे, कमर में हमेशा दर्द रहेगा, पाँव सूजे रहेंगे, खाना निगल नही पाएंगे. और जो होमिओपेथिक की दवाई ले रहे हैं वो 2 दिन में ही ठीक होकर काम पे लग जायेंगे और कोई साइड इफ़ेक्ट नही होगा. अमेरिका के बहुत बड़े डॉक्टर चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि अलोपेथिक में कोई दवा है ही नही. यह सिर्फ और सिर्फ जहर है खाकर मरना चाहो तो मरो.

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