पेट में एसिडिटी से होने वाली जलन हो सकती हार्ट अटैक का कारण

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खून में 20 प्रतिशत अम्ल एसिड अर्थात तेजाब और 80 प्रतिशत क्षार ऐल्काई होता है। जब खून में अम्ल (तेजाब) की मात्रा बढ़ जाती है तो यह अम्ल भोजन पकाने अंग पाकस्थली को प्रभावित करके एसिडिटी रोग उत्पन्न करता है जब खून की अमलता बढ़ जाती है तो खून को गाढ़ा बना देता है यह गाढ़ा खून कई बार दिल की नसों में थक्के के रूप में जम जाता है और दिल का दौरा पड़ने की आशंका बढ़  जाती है जिसे हम हार्ट अटैक भी कहते हैं  एसिडिटी में जलन व दर्द होता है

एसिडिटी 2 प्रकार की होती है- ऊर्ध्वगामी और अधोगामी, ऊर्ध्वगामी एसिडिटी में पेट का अपचा व गंदा द्रव्य उल्टी के द्वारा मुंह से बाहर निकल जाता है जबकि अधोगामी में पेट की गंदगी गुदा मार्ग से बाहर निकलता है

ऊर्ध्वगामी एसिडिटी की बीमारी में हरे, काले, पीले, नीले परंतु लाल रंग के अधिक निर्जल, मछली के धोवन के समान बहुत चिकने, कफ के साथ तीखा, कडुवा व क्षारीय रस वाली उल्टी होती है अधोगामी में जलन, मूर्च्छा, प्यास, भ्रम, उबकाई, मोह, मंदाग्नि (पाचनक्रिया का मंदा होना), पसीना और शरीर में पीलापर आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। अधोगामी अम्लपित्त में कड़वी, खट्टी डकारें आना, छाती और गले में जलन, जी मिचलाना, शरीर में भारीपन, अन्न का न पचना, अरूचि, सिर दर्द, हाथ-पैरों की जलन, शरीर का गर्म रहना, खुजली, चकत्ते आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं.

एसिडिटी होने के कारण

अम्लपित्त रोग उत्पन्न होने के कई कारण होते हैं, जैसे- समय पर भोजन न करना, अधिक उपवासकरना, बाहरी सड़ी-गली चीजों का सेवन करना, अधिक मिर्च-मसाले वाले भोजन करना, अधिक चाय पीना, कॉफी पीना, शराब पीना आदि। इस सभी कारणों से पाचनशक्ति कमजोरी हो जाती है जिससे वह भोजन को ठीक से नहीं पचा पाती और अम्लपित्त का रोग उत्पन्न हो जाता है।

एसिडिटी होने के लक्षण

पेट से निकलने वाला अम्ल जब अधिक लार के साथ गले तक आ जाता है तो पेट में जलन व खट्टापन प्रतीत होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को छाती में जलन व गले में खट्टापन महसूस होता है। दोनों प्रकार के अम्लपित्त रोग में मंदाग्नि, कब्ज, भूख का कम लगना, पेशाब कम आना, पेट में गैस बनना, गले व छाती में जलन, चक्कर आना, हाथ-पैर, कमर व जोड़ों में दर्द होना, उल्टी होना, थकावट, भोजन का ठीक से न पचना, नींद का कम आना, अधिक आलस्य आना, भोजन करने के 1-2 घंटे बाद खट्टी उल्टी होना तथा अरूचि पैदा होना आदि लक्षण पैदा होता है। इस रोग में भोजन के बाद छाती और गले में जलन तथा खट्टी डकार के साथ खट्टा पानी मुंह में आता रहता है। बीड़ी-सिगरेट पीने वाले को अन्य लोगों की तुलना में रात में भारी भोजन करने से अम्लपित्त,शुगर, हृदय रोग, खांसी और दमा आदि बीमारी होने की अधिक संभावना रहती है।

भोजन और परहेज

तोरई, टिण्डा, परवल, पालक, मेथी, मूली, आंवला, नारियल का पानी, पेठे का मुरब्बा, आंवले का मुरब्बा, अमरूद, पपीता आदि का सेवन करना अम्लपित्त के रोगियों के लिए लाभकारी होता है। पुराने शालि चावल, पुरानी जौ, पुराने गेहूं, बथुआ का साग, करेला, लौंग, केला, अंगूर, खजूर, चीनी,घी, मक्खन, सिंघाड़ा, खीरा, अनार, सत्तू, केले का फूल, चीनी, कैथ, कसेरू, दाख, पका पपीता, बेलफल, सेंधानमक, पेठे का मुरब्बा, नारियल का पानी, जंगली जानवरों का मांस व छोटी मछलियों का सूप पीना भी लाभकारी होता है। रात को भोजन अपने सामान्य भूख से थोड़ा कम ही करना चाहिए और भोजन करने के बाद थोड़ी देर घूमना चाहिए व ढीले कपड़े पहनकर सोना चाहिए।

चाय, कॉफी, अंडा, मछली, शराब, तले भोजन, खीर और हलवा का कम से कम सेवन करना चाहिए। बासी या ज्यादा समय से रखा हुआ खाना, मिर्च-मसालेदार खाना, भारी भोजन, मिठाइयां, लालमिर्च, खटाई, अधिक नमक आदि का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। गुड़, खट्टा और चरपरा रस, भारी और अम्ल द्रव्य, नयी फसल का अनाज नहीं खाना चाहिए। तिल का बीज, उड़द की दाल, कुल्थी के तेल में बना पदार्थ, दही, बकरी का दूध, कचौड़ी, पराठे, बेसन से बना पदार्थ, फूलगोभी, आलू, टमाटर, बैंगन आदि का कम से कम सेवन करना चाहिए। अम्लपित्त के रोग से पीड़ित रोगी को अधिक परिश्रम व अधिक स्त्री-प्रसंग से बचना चाहिए। मानसिक अंशाति, गुस्सा, दिन में सोना, रात को जागना और मल-मूत्र का वेग रोकना अम्लपित्त के रोगियों के लिए बहुत हानिकारक होता है।

आयुर्वेदिक ओषधियों से उपचार

आंवला

आंवले का 2 चम्मच रस और 2 चम्मच मिश्री मिलाकर पीने से अम्लता व खट्टी डकारे दूर होती है।

आंवला के बीजों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम को 250 मिलीलीटर दूध के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से अम्लता ठीक होता है।

आंवले का रस एक चम्मच, चौथाई चम्मच भुना हुआ जीरा का चूर्ण, आधा चम्मच धनिये का चूर्ण और मिश्री को मिलाकर लेने से अम्लपित्त कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

आंवला, सफेद चंदन का चूर्ण, चूक, नागरमोथा, कमल के फूल, मुलेठी, छुहारा, मुनक्का एवं खस बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह 2-2 चुटकी चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से अम्लपित्त व पेट की गैस दूर होती है।

आंवला, हरड़, बहेड़, ब्राह्मी और मुंडी बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें मिश्री मिलाकर 6-6 ग्राम चूर्ण बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन पीने से गैस की परेशानी दूर होती है।

आंवले के चूर्ण को दही या छाछ के साथ प्रयोग करने से अम्लता में आराम मिलता है।

आंवला के रस में शहद मिलाकर पीने से अम्लपित्त शान्त होता है और डकार के साथ मुंह में पानी आना बंद होता है।

आंवले के 2 ग्राम चूर्ण नारियल पानी के साथ लेने से अम्लपित्त का रोग नष्ट होता है।

शहद

धनिया तथा जीरे का चूर्ण शहद के साथ खाने से खट्टी उल्टी आनी बंद होती है।

शहद में 2 चुटकी हरड़ का चूर्ण मिलाकर चाटने से चक्कर आना व गैस दूर होती है।

त्रिफला (हरड़, बडेड़ा और आंवला) :

त्रिफला का चूर्ण आधा-आधा चम्मच दिन में 2 से 3 बार पानी के साथ लेने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है।

त्रिफला, पीपल, जीरा और कालीमिर्च बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से पेट की गैस दूर होती है।

त्रिफला को अच्छी तरह पीसकर गर्म लोहे के बर्तन में लेप करके रात भर रख दें। सुबह इसी मिश्रण को शहद या चीनी में मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त के रोग में लाभ मिलता है।

त्रिफला के चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से बच्चों के पेट में होने वाली अम्लपित्त दूर होकर पेट साफ होता है।

त्रिफला, कुटकी और परवल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर मिश्री मिलाकर पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है।

नारियल

कच्चे हरे नारियल का 100 से 500 मिलीलीटर पानी दिन में 2 बार पीने से अम्लपित्त रोग ठीक होता है। इसका सेवन प्रतिदिन करने से पेट की जलन एवं छाती की जलन दूर होती है।

नारियल की गिरी की राख को 6 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह सेवन करने से अम्लपित्त की बीमारियां दूर होती है

चूना

चूने का साफ पानी 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से अम्लपित्त और बदहजमी दूर होती है।

लहसुन

लहसुन की एक कली को देशी घी में भूनकर धनिया 5 ग्राम व 5 ग्राम जीरा के साथ पीसकर दिन में 3 बार लेने से अम्लपित्त का रोग दूर होता है।

लहसुन को खाली पेट सुबह खाने से अम्लपित्त दूर होती है

शतावर

शतावर की जड़ का आधा ग्राम रस और शहद मिलाकर दिन 2 बार सेवन करने से अम्लपित्त का रोग ठीक होता है।

अंगूर

दाख (मुनक्का) हरड़ और चीनी बराबर-बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली सुबह-शाम ठंडे पानी के साथ सेवन करने से अम्लपित्त, हृदय व गले की जलन दूर होती है।

रात को 100 मिलीलीटर पानी में मुनक्का 10 ग्राम और सौंफ 5 ग्राम भिगोकर रख दें और सुबह इस उसी पानी में मसलकर पीएं। इससे अम्लपित्त में लाभ मिलता है

राजीव जी द्वारा बताये गए इलाज के लिए-

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