भारत में चल रही अंग्रेजी कानून व्यवस्था By: Rajiv Dixit Ji

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आज गम्भीर बातें नहीं हो रही हैं न समाज में न संसद में | जिनको देश को दिशा देनी चाहिये वो दिशाहीन हो गये हैं | दिशाहीन लोग समाज को दिशा नहीं दे पाते | मेरे जैसे आदमी को इस काम में लगना पड़ा ये मैं खुशी से नहीं लगा, देश की परिस्थितियाँ, देश के हालात, बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय दबाव, बढ़ती हुई गुलामी, टूटता हुआ समाज, शक्तिहीन होता हुआ समाज, बढ़ती हुई गरीबी, बेरोजगारी, ये तमाम बड़े कारण है जिन्होंने मेरे जैसे नौजवान को अन्दर से परेशान किया है | और उस परेशानी में ही मैं इस काम में लगा हूँ | मेरे सोचने का ढंग थोड़ा अलग है | किसी भी समस्या के बारे में जब विचार करता हूँ तो थोड़ा गहरे जाता हूँ उस समस्या में | उसका एक कारण ये भी हो सकता  है की मैं विज्ञान और तकनीकी का विद्यार्थी रहा हूँ | तो विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते जब तक किसी समस्या के इतिहास को समझ नहीं लेता तब तक वो समस्या मुझे समझ नहीं आती | तो जो वर्तमान में जो समस्याएं हैं उनको भी वैसे ही समझने की कोशिश की है और इस देश की समस्याओं को समझने में मैंने लगभग २० हज़ार दस्तावेज़ इकट्ठा किये है | ये जो दस्तावेज़ मैंने इकट्ठा किये हैं ये (Indian office of britain) के हैं लन्दन के, ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की लाइब्रेरी के हैं, दुनिया के और भी पुस्तकालय से हैं | कुछ दस्तावेज़ भारत की (archive) से निकाले हैं और उनके आधार पर मेरी जो समझ बनी वही आपको बताता हूँ |

अंग्रेजो की कानून व्यवस्था पर ये विडियो जरुर देखे >>

वो सही भी हो सकती है और गलत भी तो विनम्रता से कहता हूँ की आपको कहीं गलत लगे तो आप जरूर मुझे सुधारने की कोशिश करें | ये बड़ा अभियान है , देश का काम है जिसमें मैं लगा हुआ हूँ और मुझसे गलती होगी तो सारे देश को उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा तो ये आप की जिम्मेदारी है की मेरी गलतियों को सुधारे | देश आज़ाद हो गया है और आज़ादी के ५० साल पूरे हो गये हैं सारे देश में राजनीतिक स्तर पर जशन जैसा माहौल है हालाँकि उसकी आत्मा मरी हुई है | और माहौल इस तरह का है की हम तो आज़ाद हो गये हैं, ये देश गणतन्त्र हो गया है, और हिन्दुस्तान की संसद में भी आपने १४ अगस्त १९९७ को आपने जो कुछ हुआ वो आपने देखा ही होगा | आजादी का एक बड़ा मेला सा मनाया गया | इस देश में आजादी मनाने की भी कुछ ऐसी परम्पराएं पड़ रही हैं | जैसे उदाहरण के लिये देश में आज़ादी का जशन मनाने के लिये अमेरिका से एक संगीतज्ञ आ गया था यानी | तो हिन्दुस्तान की आज़ादी मनाने के लिये अमेरिका से संगीतकार बुलाया जाता है जो मेरी समझ के बाहर की बात है | उस यानी को हिन्दुस्तान की आज़ादी के बारे में क्या समझ है और कितनी समझ  है और साथ ही साथ उस यानी को संगीत की कितनी समझ है जो मेरे देश में चलता है और बजाया जाता है | फिर एक दिन अखबार में पढ़ा की हिन्दुस्तान की आज़ादी का जशन मनाने के लिये अमेरिका की एक नाटक कम्पनी आयी उसका नाम था पॉल टेलर की कम्पनी, तो पॉल टेलर की कम्पनी हिन्दुस्तान के १०-१२ शहरों में नाटक करती थी और पॉल टेलर उस नाटक के माध्यम से दिखाने की कोशिश करते थे | लेकिन उन को मालूम नहीं था की झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कौन थी और उस ने क्या-क्या किया  | वो कोशिश करते थे हिन्दुस्तान की आजादी का इतिहास बताते थे लेकिन उसी दृष्टि से कोशिश करते थे जैसे अमेरिका वाले हिन्दुस्तान को देखते थे और दुर्भाग्य ये है हिन्दुस्तान की आजादी के जितने कार्यक्रम हो रहे हैं वो सब विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित हो रहे हैं | माने जिन विदेशी कंपनियों के कारण इस देश की आजादी चली गई थी, जिस ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों के कारण इस देश की आजादी चली गयी थी | अभी उन्हीं देशों की कंपनियों को हमारी देश की आजादी से इतना प्यार कैसे हो गया | टीवी पर रात दिन आप विज्ञापन देखिये तो जितने विज्ञापन हिन्दुस्तान की आज़ादी के कार्यक्रम के आते हैं वो सब विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित किये हुए होते हैं | तो ये कुछ विदुषताएं हैं, विडम्बना है इस देश की और इसी विडम्बना के बीच मेरी बात आप से करने की कोशिश कर रहा हूँ की ये जो आजादी के ५० साल पूरे हुए हैं हम कहाँ आ गये हैं और हुआ क्या है पिछले ५० साल में | पिछले ५० साल में जो कुछ इस देश में हुआ है उसको अगर ठीक से समझना हो मेरे जैसे विद्यार्थी के लिये तो मैं हिन्दुस्तान के पिछले ५०० साल को भी समझना चाहता हूँ | की पिछले ५०० साल में इस देश में क्या हुआ और पिछले ५०० साल का इतिहास अगर समझ में आ जायेगा तो अभी जो कुछ चल रहा है वो भी आपके समझ में आ जायेगा | मैं मेरी बात यहाँ से शुरू कर रहा हूँ की इस देश में कोई आजादी आयी नहीं है | ये मेरे दिल का दर्द है | इस देश में कोई आजादी आई नहीं है ये देश अभी भी उतना ही गुलाम है जितना की अंग्रेजों के ज़माने में था | और कई बार मैं इस बात को एक कदम आगे जा के कहता हूँ की ये देश अंग्रेजों के ज़माने से ज्यादा गुलाम है | देश की व्यवस्थाएं अंग्रेजों के ज़माने से ज्यादा गुलाम हैं | तो (प्लानिंग) के तीन चरण निर्धारित किए गए थे | पहला चरण ये है सबसे पहले हिन्दुस्तान की व्यवस्था को खलास किया जाए और जो बात ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में चल रही है वो ये चल रही है की (इंडियन इकनोमिक सिस्टम) को (कोलाप्स) करा दिया जाए | और (इंडियन इकनोमिक सिस्टम) जब (कोलाप्स) हो जायेगा तो हिन्दुस्तान के व्यापारी, हिन्दुस्तान के उद्योगपति, हिन्दुस्तान के पूंजीपति, सब खलास हो जायेंगे | और ये व्यापारी, पूंजीपति, उद्योगपति अगर खलास हो जायेंगे हिन्दुस्तान में तो हमारी ईस्ट इंडिया कंपनी का माल हिन्दुस्तान के गाँव – गाँव में बिकने लगेगा और इस (डिबेट) को चलाते हुए बिलवर फ़ोर्स कह क्या रहा है एक मजेदार बात | बिलवर फ़ोर्स कह रहा है की हमको हिन्दुस्तान में फ्री ट्रेड करना है तो एक (एम् पी) पूछ रहा है उससे  “वाट डू यू मीन बय फ्री ट्रेड” |तो बिलवर फ़ोर्स कह रहा है फ्री ट्रेड माने ब्रिटिश सामान का हिन्दुस्तान के गाँव – गाँव में बिकना, ब्रिटेन के माल का हिन्दुस्तान के बाज़ार में भर जाना और ब्रिटेन के माल का हिन्दुस्तानी लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा उपभोग करना | ये है फ्री ट्रेड ! इसके दुसरे भाग में बिलवर फ़ोर्स इस फ्री ट्रेड की व्याख्या देते हुए एक और बात कह रहा है की ये जो फ्री ट्रेड चलेगा इसमें एक चीज़ और होनी चाहिए की हिन्दुस्तान में बहुत अच्छा कच्चा माल है जो इंग्लैंड में नहीं है जैसे कपास का कच्चा माल, स्टील का कच्चा माल, लोहे का कच्चा माल, और भी तमाम तरह का कच्चा माल | तो वो कह रहा है की कुछ इस तरह का फ्री ट्रेड चलना चाहिए की जिससे हिन्दुस्तान का कच्चा माल ब्रिटेन में आना शुरू हो जाए और उस कच्चे माल के लिए हमको एक नया पैसा खर्च करना ना पड़े और उस कच्चे माल से हम सामान बनाएं और वापस भारतीय बाज़ार में ले जाकर बचें | तो ये (डिबेट कंक्लुड़) हो रही है, (डिबेट) को (इम्प्लेमेंट) करने के लिए (पॉलिसीस) बनाई जा रही हैं और वो (पॉलिसीस) क्या बन रही हैं | पहली (पालिसी) बनी है और ईस्ट इंडिया कंपनी को (चार्टर इशू) किया गया है | ये ईस्ट इंडिया कम्पनी जब आई है तो २०-२० साल के (चार्टर) इशू किये जा रहे हैं, पहला (चार्टर) १६०१ में मिला है, फिर दूसरा (charter चार्टर) १६२१ में मिलता है, फिर इस तरह से २०-२० साल के (चार्टर) दिए जाते हैं, चार्टर माने अधिकार पत्र | १८१३ की ये (debate डिबेट) जब (conclude कांक्लुड़) हो गई है तो ईस्ट इंडिया कंपनी को एक (स्पेशल चार्टर इशू) किया गया है हाउस ऑफ कॉमन्स की तरफ से और उस (चार्टर) का नाम है “ चार्टर फॉर फ्री ट्रेड” | और में जोर दे रहा हूँ इस “फ्री ट्रेड” शब्द पर की ये जो “फ्री ट्रेड” शब्द है ये कोई नया नहीं है ये २५०-३०० साल पुराना शब्द है | आज जो कुछ अखबारों में पढ़ते हैं सुनते हैं की इस देश में (liberalisation लिबेरलिसतिओन) हो रहा है, (Globalisation ग्लोबलिसतिओन) हो रहा है, किसलिए हो रहा है | “फ्री ट्रेड” के लिए हो रहा है तो ये “फ्री ट्रेड” तो इस देश में अंग्रेजों ने भी चलाया और अंग्रेज इस देश में “फ्री ट्रेड” क्यूँ चला रहे हैं | भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना है और (ब्रिटिश इकोनोमिक सिस्टम) को इस देश में स्थापित करना है इसके लिए वो “फ्री ट्रेड” चला रहे हैं | तो उस फ्री ट्रेड में पालिसी क्या बन रही है जो सबसे पहली पालिसी बनी है कंपनी सरकार की, १८१३ में इस देश में कंपनी की सरकार है, ब्रिटेन की सरकार नहीं है | ब्रिटेन की सरकार आई है १८५८ के बाद, रानी की सरकार सीधे १८५८ के बाद आई है, उसके पहले कंपनी की सरकार है | माने ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार है तो ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार “फ्री ट्रेड” के लिए सबसे पहले पालिसी क्या बना रही है | वो ये है की हिन्दुस्तान में ब्रिटिश माल पर कोई (टैक्स) नहीं लगेगा और उसके बदले में जो हिन्दुस्तानी माल होगा उस पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाया जाए | नतीजा क्या निकलेगा अगर ब्रिटिश माल इस देश में (टैक्स फ्री) हो जायेगा तो गाँव – गाँव में ब्रिटिश माल सस्ता होगा और हिन्दुस्तानी माल पर लगातार (टैक्स ) बढ़ा दिया जायेगा तो हिन्दुस्तानी माल महंगा हो जायेगा | स्वदेशी माल महंगा हो जायेगा और विदेशी माल सस्ता हो जायेगा इसके लिए (पालिसी) बनाई है कंपनी सरकार ने जिसको कहा गया है “चार्टर फॉर फ्री ट्रेड” | उसके तहत अँगरेज़ इस देश में कुछ क़ानून बना रहे हैं | क़ानून क्या बना रहे हैं ? ब्रिटेन के माल पर तो (टैक्स) हटा दिया पूरी तरह से और कोई (इम्पोर्ट ड्यूटी) नहीं लगेगी ब्रिटेन के माल पर और हिन्दुस्तानी माल पर सबसे पहला टैक्स लगाया गया “ सेंट्रल एक्साइज एंड साल्ट टैक्स ” | और ये अंग्रेजों ने क्यूँ लगाया है “ सेंट्रल एक्साइज टैक्स ” ताकि हिन्दुस्तान में माल बनाने वाले लोगों का माल महंगा हो जाए | तो “सेंट्रल एक्साइज टैक्स” लगा दिया माने जो वस्तुएं बन रही हैं उस पर “उत्पाद कर” यानी उत्पादन पर कर | उसके बाद हिन्दुस्तानी व्यापारी उन वस्तुओं को बाज़ार में बेच रहे हैं तो कंपनी सरकार ने वस्तुओं के बाज़ार में बेचने पर भी कर लगाया है जिसको उन्होंने कहा है “सेल्स टैक्स” | फिर तीसरा कर लगाया है की उन वस्तुओं के बिकने पर जो आमदनी आये उस पर भी टैक्स | उसका नाम रखा “इनकम टैक्स” | तो उत्पादन पर “सेंट्रल एक्साइज टैक्स”, बिक्री पर “सेल्स टैक्स”, बिक्री से होने वाली आमदनी पर “इनकम टैक्स” | उसके बाद वस्तुओं का आवागमन जो है, यातायात जो है उसपर अंग्रेजों ने एक टैक्स लगाया है | जिसका नाम है “ओक्ट्रॉय टैक्स”, चुंगी नाका | उसके बाद एक आखिरी टैक्स और लगाया अंग्रेजों ने | कंपनी सरकार क्या करती कहीं-कहीं पुल बनती थी तो पुल पर से जब ट्रक माल लेकर गुजर रहा है तो आप को पुल का कर देना है क्यूंकि हमारी बनायीं हुई सड़क आप उपयोग कर रहे हैं | तो उसको उन्होंने नाम दिया “टोल टैक्स” | तो ये ५ टैक्स लगा दिए अंग्रेजों ने देश के उद्योगपतियों पर ताकि उद्योगपतियों का नाश किया जाए और इसके बदले में जितना भी ब्रिटेन से माल आ रहा है इस देश में उसपर से सारे टैक्स हटा लिए गए हैं | क्यूंकि ब्रिटेन का माल उनको इस देश में बेचना है | नतीजे क्या निकलते हैं जब ये पाँचों के पाँचों टैक्स लग जाते हैं तो हर १०० रुपए के व्यापार पर १२७ रुपए का टैक्स |  और इस बात की गंभीरता को समझिये की हर १०० रुपए के व्यापार पर १२७ रूपए का टैक्स है | तो एक दिन हाउस ऑफ कॉमन्स में (डिबेट) चल रही है तो एक सांसद कह रहा है की हिन्दुस्तान के व्यापारियों पर इतना टैक्स लगा दिया है की वो सब मर जायेंगे | तो दूसरा सांसद जवाब दे रहा है की यही हमें करना है | एक दूसरा सांसद खड़ा हो जाता है वो कहता है दोनों हाथ में लड्डू हैं हमारे या तो हिन्दुस्तानी व्यापारी मर जायेंगे मने १०० रूपए पर १२७ रूपए टैक्स देना पड़ जाए तो या तो वो आदमी मर जायेगा और या वो बेईमान हो जायेगा | और अगर वो बेईमान हो जायेगा तो भी हमारी गुलामी में आ जायेगा, और बर्बाद हो जायेगा तो हमारी गुलामी में आने ही वाला है | अब आप ध्यान करिए इन दो बातों को की इस देश में टैक्स प्रणाली क्यूँ लाई जा रही है ताकि हिन्दुस्तान के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, काम करने वालोँ को, उत्पादकों को बेईमान बनाया जाए या फिर उनको खलास किया जाए | इमानदारी से काम करें तो खलास हो जायें और बेईमानी से काम करें तो टैक्स की चोरी करें | और टैक्स की चोरी करें तो ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें क्यूंकि चोरी करने वाला आदमी आँख में आँख डालकर बात नहीं कर सकता और इसके लिए फिर उन्होंने विभाग बना दिए | “इनकम टैक्स” विभाग, “सेंट्रल एक्साइज टैक्स” विभाग, “टोल टैक्स” वाला विभाग, “सेल्स टैक्स” विभाग, “ओक्टरॉय टैक्स” विभाग और आप को मैं बताऊँ की ये पाँचों के पाँचों विभाग आज आजादी के ५० सालों में भी चल रहे हैं | अंग्रेजों ने इन विभागों को बनाया था हिन्दुस्तान के व्यापारियों को ख़त्म करने के लिए तो मुझे लगता था की जब १५ अगस्त १९४७ को इस देश में आजादी आई तो अंग्रेजों द्वारा बनाये गए ये पाँचों विभाग कर देने चाहिए थे लेकिन वो आज भी चल रहे हैं | और उसी दौर की एक और जानकारी दूँ अंग्रेजों ने सबसे पहले जब “इनकम टैक्स” लगाया तो उसकी दर क्या है, कितना “इनकम टैक्स” देना पड़ता है | तो जो अंग्रेजों का सबसे पहला इनकम टैक्स की दर है वो ९७ प्रतिशत की है | मने १०० रूपए की कमी है तो ९७ रूपए आपको देना पड़ेगा | मने सिर्फ ३ रूपए आप को मिलेगा और आपको शायद ये मालूम होगा की आजादी के २०-२५ साल तक “इनकम टैक्स” ९७ प्रतिशत चलता रहा है | आजादी के बाद १९७०-१९७२ तक ९७% ही “इनकम टैक्स” लगता रहा इस देश में जबकि आजादी आ गयी थी १९४७ में तो मेरा सबसे पहला और गंभीर प्रश्न ये है की जो कर-प्रणाली का (स्ट्रक्चर) अंग्रेजों ने बनाया वही कर-प्रणाली का “स्ट्रक्चर” इस समय देश में चल रहा है | अंग्रेजों ने क्यूँ बनाया हिन्दुस्तानी व्यापारियों को बर्बाद करने के लिए और हिन्दुस्तानी व्यापारी बर्बाद हुए | १८३५, १८४० में इस देश की क्या स्थिति है व्यापार के क्षेत्र में उसका एक आंकडा है और ये आंकड़ा ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की एक (डिबेट) से मिला | हाउस ऑफ कॉमन्स की एक (डिबेट) चल रही है तो एक सांसद कह रहा है की हिन्दुस्तान का व्यापार है कितना पूरी दुनिया में तो एक सर्वे किया है और वो सर्वे किया है यहाँ के (रेवेनुए ऑफिसर्स) ने जो ब्रिटेन की सरकार के जो भारत में कार्यरत हैं | उनका एक प्रमुख है विलियम एडम |

तो वो हिन्दुस्तान के कई (रेवेनुए ऑफिसर्स) को इस सर्वे में लगाता है की भारत का पूरा व्यापार कितना है | तो उसका आंकड़ा है १८५० तक हमारा पूरा व्यापार सारी दुनिया के व्यापार का एक तिहाई है | माने पूरी दुनिया में उस जमाने में १०० बिलियन डॉलर का व्यापार चल रहा हो तो ३३ बिलियन डॉलर का व्यापार अकेले हिन्दुस्तान का है | इसको एक दुसरे तरीके से भी कह सकते हैं की आज से १५० साल पहले इस देश का कुल व्यापार सारे दुनिया के व्यापार का ३३ टका है  और इस बात को एक तीसरे तरीके से ऐसे भी कहा जा सकता है की १८५० के आस पास तक दुनिया में जो पूरा एक्सपोर्ट हो रहा है, एक्सपोर्ट में हिन्दुस्तान का प्रतिशत ३३ प्रतिशत है और आज आजादी के ५० साल के बाद हिन्दुस्तान का हिस्सा पूरे विश्व बाजार में .०१ प्रतिशत | हम जब गुलाम हैं अंग्रेजों के और अंग्रेज इस देश का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं और १५० साल पहले की ये बातें है तब इस देश में कोई उच्च तकनीकी नहीं है तथाकथित उच्च तकनीकी माने उच्च तकनीकी तो है पर तथाकथित नहीं | कोई (मेगा स्ट्रक्चर) नहीं है तब हमारे देश का एक्सपोर्ट ३३% है और आज इस देश में लाखों-लाख के निवेश के बाद, २४४ राष्ट्रीय (सेक्टर) होने के बाद इतनी विदेशी कंपनियों को बुलाने के बाद, हिन्दुस्तान में इतने बड़े-बड़े घराने होने के बाद, इतनी उच्च तकनीकी लेने के बाद व्यापार कितना है .०१% | तो हम तरक्की की तरफ बढ़ रहे हैं या विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं | कहा ये जा रहा है की आप बहुत तरक्की कर रहे हैं | तो मैं मानता की तरक्की होती अगर ३३% वाला व्यापार हमारा ५०% हो गया होता, ७०% हो गया होता तो मैं मानता की हिन्दुस्तान ने तरक्की कर ली है | लेकिन ये तो घट कर .०१% पर आ गई | तो हम तरक्की कर रहे हैं या पीछे की तरफ जा रहे हैं | और एक बात विलियम एडम ने जो सर्वे कराया है उस सर्वे में कुछ ऐसे आश्चर्यजनक तथ्य हैं जो आप को पता चलेंगे तो आप चकरा जायेंगे | विलियम एडम अपनी रिपोर्ट में लिख रहा है १८३५, १८४० के आस पास हिन्दुस्तान में स्टील बनाने वाली १०,००० फैक्ट्री हैं आज से १५० साल पहले | और जो १०,००० फैक्ट्री हैं उनमे जो स्टील बनता है १८५० के आस पास वो स्टील इस क्वालिटी का है आप उसको वर्षों-वर्षों पानी में पड़ा रहने दीजिये उसमे जंग नहीं लग सकता | वो महरोली का खम्बा सालों से खड़ा है उसपर १% कहीं जंग नहीं है और आज आधुनिक तकनीकी से बनने वाले किसी भी स्टील को आप अपने आँगन में फ़ेंक दीजिये, तीन महीने उसको बारिश में पड़ा रहने दीजिये, उसपर जंग लग जायेगा | १५० साल पहले स्टील बन रहा है इस देश में उसपर १ प्रतिशत का जंग नहीं लगता, वर्षों वर्षों तक ऐसे ही है, और १०,००० फैक्ट्रीयाँ स्टील बना रही हैं | और स्टील का कुल उत्पादन कितना हैं ये सुनेंगे तो और आश्चर्य करेंगे | कुल उत्पादन है स्टील का हिन्दुस्तान में १८५० का करीब ८० से ९० लाख टन एक साल का | और आज जानते हैं कितना स्टील उत्पादन है इस देश में मुश्किल से ७० से ७५ लाख टन | इतना बड़े (प्रोजेक्ट) हैं, इतने बड़े बड़े निवेश हैं, इतने बड़े – बड़े सफ़ेद हाथी हमने खड़े किये हुए हैं तब स्टील उत्पादन है ७० लाख टन के आस पास | और हिन्दुस्तान १८५० में स्टील निर्यातक देश रहा है | ये दस्तावेज़ ब्रिटेन की संसद के हैं जब एक सांसद कह रहा है की ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने जहाज बनाये गए हैं सब हिन्दुस्तान के स्टील को आयात करके बनाये गए हैं | और उस जमाने में १८५० के आस पास सबसे बढ़िया जो स्टील बनता है वो हिन्दुस्तान में बनता है या फिर एक दूसरा देश है डेनमार्क में बनता हैं तो डेनिश स्टील जो माना जाता है वो भारतीय स्टील से हल्का है और भारतीय स्टील डेनिश स्टील से बढ़िया है | और १०,००० स्टील बनाने के कारखाने हैं और इतने बड़े स्टील के उत्पादन का तंत्र है तो जरूर कोई ना कोई उच्च तकनीकी रही होगी इस देश में | ये अलग बात है की हम उसको जानते नहीं क्यूंकि अंग्रेजों ने वो दस्तावेज़ नष्ट कर दिए | और उन्हीं अंग्रेजों के दस्तावेजों के कुछ दुसरे हिस्से हैं जिनके आधार पर पता चला है की हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा स्टील उत्पादन होता था १८५० के आस-पास सरगुजा, मध्यप्रदेश में | इस पूरे सरगुजा में स्टील बनाने के कारखाने रहे हैं और सरगुजा में स्टील बनाने के कारखाने क्यूँ रहे | तो ये बात सब जानते है की सरगुजा में लोह अयस्क बहुत ज्यादा है | इसलिए उस ज़माने में स्टील बनाने के कारखाने हैं वहां पर | और स्टील बनाने का काम कौन करते हैं वहां, तो जिनको आप आदिवासी कहते हैं वो उस जमाने के स्टील उत्पादक लोग हैं | जिनको हम मानते हैं की ये लोग तो पढ़े लिखे नहीं हैं क्यूंकि इनके पास डिग्री नहीं है | क्यूंकि इन्होने बी-टेक नहीं किया , ऍम- टेक नहीं किया, पी एच डी नहीं किया | जबकि सच्चाई यह है की हिन्दुस्तान के सबसे बड़े स्टील उत्पादक हैं वो | और अभी भी सरगुजा में मैंने अपनी आँखों से देखा है, आजादी के ५० साल भी कुछ लोग बचे हैं जो स्टील बनाने की तकनीकी जानते हैं | लेकिन दुर्भाग्य ये है की वो तकनीकी आगे तक पहुँच नहीं रही है | वो तकनीकी ख़त्म कैसे हुई? अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के स्टील बनाने वाले कारखाने बंद कराए | पहले जो स्टील बनाने वाले आदिवासी होते थे वो जंगलों में से जो खदानें होती थी उन में से स्टील का कच्चा माल ले आते थे और स्टील बनाते थे उससे | अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया की कोई भी आदिवासी खदानों में से कच्चा माल नहीं निकाल सकता | और इसको सख्ती से लागू भी करा दिया, फिर उन्होंने घोषणा कर दी की खदानों में से कोई आदिवासी अगर कच्चा माल निकलेगा तो उसको ४० कोड़े मारने की सज़ा | और उससे भी वो ना मरे तो उसको गोली मार दी जाए | इतना सख्ती से वो क़ानून लागू हो गया तो धीरे-धीरे आदिवासियों के स्टील के कच्चे माल पर पाबंदी लगा दी गयी और धीरे-धीरे वो ख़त्म होते चले गए | और क्रम के काल में वो करीब–करीब समाप्त हो गए | और आप को जानकर ये आश्चर्य होगा की ये जो क़ानून अंग्रेजों ने चलाया की आदिवासी लोह अयस्क नहीं ले सकते वो आज भी चल रहा है | आज भी वो लोग जो तकनीकी जानते हैं वो लोह अयस्क नहीं ले पाते और उसके दूसरी तरफ  क्या चल रहा है? की बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियां उस लोह अयस्क को खोद-खोद कर ले जा रही है | जापान की एक कंपनी है “निप्पन डेरनो” वो इसी धंधे में लगी हुई है | तो जापान की कंपनी को तो हिन्दुस्तान की खदानें खोद कर ले जाने की खुली छूट है लेकिन हिन्दुस्तान का कोई आदिवासी उन खदानों से लोह अयस्क लाकर स्टील बनाये तो उस पर पाबन्दी लगी हुई है | वो कच्चा माल नहीं ले सकता और ये मैं मान सकता हूँ की ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया, अंग्रेजों की सरकार थी, उनके अपने स्वार्थ थे, उनको ये देश बर्बाद करना था | मैं ये कैसे मान लूँ की आजादी के ५० साल बाद भी वही क़ानून चल रहा है, आज तो हमारी सरकार है, आज तो हमारे लोग हैं जो संसद में बैठे हैं, अब तो हम ये मानते हैं की ये देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया है | तो फिर वोही क़ानून जो अंग्रेजों ने चलाया इस देश को बर्बाद करने के लिए वो क्यूँ चल रहा है? और क्यूँ नहीं कोई राजनीतिक पार्टी इस बात पर सोचती ? की विदेशी कंपनी तो कच्चा माल खोद-खोद कर ले जा रही है, जापान की कंपनी “निप्पन डेरनो” जो कच्चा माल ले जाती है वो कोडी के दाम पर जाता है और उससे स्टील बनाकर वापस इसी देश में लाकर बेचती है और फिर दूसरी बार भी मुनाफा ले कर जाती है | ये धंधा तो अंग्रेजों के जमाने में चलता था वो तो आज भी चल रहा है | कैसे मैं मानू की ये देश आजाद हो गया है | और इस तरह से अंग्रेजों ने क्या किया है की इस देश के तमाम हुनरमंद लोगों को बर्बाद कर दिया | स्टील बनाने वालों को को तो ऐसे बर्बाद किया अंग्रेजों ने और एक दूसरा किस्सा है | हिन्दुस्तान में बहुत बढ़िया और बेशकीमती कपडा बनाने वाले कारीगर होते थे और उन कारीगरों के हाथ का बनाया हुआ कपडा सारा देश जानता है की एक छोटी से अंगूठी में से सारा थान पार निकलता था | ढाका की मलमल इस देश में बनती थी, ढाका उस जमाने में इस देश का हिस्सा था बांग्लादेश तो १९७२ में बना है | उससे पहले वो पाकिस्तान का हिस्सा था और १९४७ से पहले हमारे देश का हिस्सा था | और ये किस्सा में बता रहा हूँ १७५० से १८५० के बीच का | इतना बेहतरीन कपडा बनाने वाले जो कारीगर होते थे उनके हाथ का बुना हुआ कपडा कोई कल्पना नहीं कर सकता की कोई मशीन इतना महीन कपडा बना सकती है क्या, इस हुनर से वो कपडा बनाते थे | और सारी दुनिया में वो हिन्दुस्तान का कपडा मशहूर था | सबसे ज्यादा निर्यात से मुनाफा दो ही चीज़ों से होती थी, एक तो हमारे मसाले बिकते थे या हमारा कपडा बिकता था | तो कपडा बनाने वाले जो कारीगर थे अंग्रेजों को उनसे परेशानी थी | अंग्रेजों को क्या परेशानी थी, लंकाशायर और मानचेस्टर का कपड़ा इस देश में बिक नहीं पाता था, क्यूंकि हिन्दुस्तानी कपड़ा ही इतनी उच्च गुणवत्ता का बनता था की कोई खरीदता ही नहीं था मानचेस्टर और लंकाशायर के कपडे को | तो अंग्रेजों ने क्या किया “फ्री ट्रेड” के नाम पर हिन्दुस्तान के बेहतरीन कपड़ा बनाने वाले कारीगरों के अंगूठे काटे गए, उनके हाथ काटे गए | दस्तावेज बताते हैं की सूरत के इलाके में एक लाख से ज्यादा कारीगरों के अंगूठे कटे, अंग्रजों के समय में | बिहार में एक इलाका है मधुबनी, मधुबनी के इलाके में अंग्रेजों ने करीब २,५०,००० कारीगरों के हाथ काटे | और अंगेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ये काम करते हुए बड़ा गर्व महसूस कर रही है | जब लंकाशायर और मानचेस्टर का कपड़ा बिकना शुरू हो जायेगा तो हिन्दुस्तान की कपड़ा मीलें बंद हो जाएँगी और ये कपड़ा उद्योग हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा उद्योग है, जो सबसे ज्यादा निर्यात आमदनी देता है अगर ये (कोलाप्स) हो जायेगा तो भारतीय अर्थव्यवस्था (कोलाप्स) हो जाएगी ये (डिबेट) है ब्रिटिश संसद की | और उसके बाद उन्होंने ये कर दिया | बाद में क्या हुआ है की लंकाशायर और मानचेस्टर से आने वाले कपडे पर से टैक्स हटाया गया है और हिन्दुस्तान के व्यापारियों के ना सिर्फ अंगूठे और हाथ काटे गए हैं बल्कि हिन्दुस्तान के व्यापारी जो कपड़ा बना रहे हैं उन पर टैक्स भी बढ़ा दिया गया है | सूरत की (टेक्सटाइल) उद्योग पर १८४० के बाद अंग्रेजों ने एक हज़ार प्रतिशत टैक्स लगाया ताकि ये उद्योग बंद हो जायें | और लंकाशायर, मानचेस्टर का कपड़ा टैक्स फ्री कर दिया है ताकि गाँव-गाँव, गली-गली में वो ही कपड़ा बिकने लगे | बाद में यहाँ से कच्चा माल ले जा रहे हैं और जो कच्चा माल ले जा रहे हैं वो कपास के रूप में ले जा रहे हैं | और अंग्रेजों को कपास ले जाते समय कठिनाई आ रही है तो अंग्रेजों ने जानते हैं क्या किया ? रेल चलाई है इस देश में | कई लोग कहते हैं की अंग्रेज़ नहीं आते तो इस देश में रेल नहीं होती और रेल अंग्रेजों ने चलायी क्यूँ ? रेल अंग्रेजों ने चलाई है ताकि हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव से कपास इकट्ठा करके रेल में भरके बम्बई तक पहुँचाया जाए | और बम्बई से पानी के जहाज में भरके लन्दन ले जाया जाए | सबसे पहली रेल चली है इस देश में अहमदाबाद–बम्बई वाली | ये सबसे पुरानी रेल पटरी है | बम्बई से ठाणे रेल, परीक्षण के रूप में अंग्रेजों ने रेल चलायी है लेकिन जब परीक्षण सफल हो गया है तो फिर उन्होंने सबसे पहली रेल चलायी है अहमदाबाद और बम्बई के बीच में | ये जो अहमदाबाद और बम्बई का इलाका है ये सबसे अच्छे किस्म के कपास उत्पादक क्षेत्र रहे हैं तो यहाँ से क्या होता है जो रेल चल रही है उसमे कपास भर-भर के यहाँ आ रहा है बम्बई के बंदरगाह पर और बम्बई के बन्दरगाह से वो कपास जहाजों में भर कर इंग्लैंड जा रहा है | तो जहाजों में कपास भरकर इंग्लॅण्ड जाता था तो अंग्रेजों को खाली जहाज भेजने पड़ते थे | ताकि यहाँ का कपास जहाज भरकर लन्दन जाए तो अक्सर अंग्रेजों के जहाज खाली आते थे तो वो डूब जाया करते थे तो अंग्रजों ने उसकी युक्ति निकाली थी की यहाँ से जहाज खाली नहीं जाना चाहिए | तो अंग्रेज उसमे नमक भरके उस जहाज को हिन्दुस्तान में भेजा करते थे और वो नमक बम्बई के बंदरगाह पर निकाल दिया जाता था और फिर उसमे कपास भर कर लन्दन ले जाया जाता था | नतीजा क्या होने लगा की अंग्रजों के जहाज आते थे तो नमक आता था, नमक आता था तो नमक का ढेर लग जाता था तो अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी को दिक्कत हुई की इस नमक का करें क्या | तो उन्होंने एक नियम बना दिया की हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में बिकवाना शुरू करो | तो इसके लिए उन्होंने क्या किया ? इसके लिए उन्होंने ये किया की हिन्दुस्तान में जो अपना नमक बनता था स्वदेशी उसपर टैक्स लगा दिया और ब्रिटेन के नमक को टैक्स फ्री कर दिया ? नतीजा ये निकला की हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में अंग्रेजों का नमक भी बिकने लगा | और ये बात गाँधी जी को बर्दाश्त नहीं थी | गाँधी जी की उम्र उस समय मुश्किल से २०-२१ साल की थी | २०-२१ साल की उम्र में वो लन्दन में थे और लन्दन के “वेजीटेरियन काउंसिल” के सदस्य थे | तो लन्दन के “वेजीटेरियन काउंसिल” के सदस्य के हैसियत से उन्होंने एक लेख लिखा था १८९० में | उस लेख में गांधीजी लिख रहे हैं की ये अँगरेज़ कितने क्रूर हैं इन्होने हिन्दुस्तानी नमक पर भी टैक्स लगा दिया | और हिन्दुस्तानी नमक पर टैक्स लगा के इन्होनें क्या किया है गाँव-गाँव में हिन्दुस्तानी नमक महंगा हो गया है | अंग्रेजों की चाल यह है की उनका जो ब्रिटिश नमक है वो हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में बिके | वो कह रहे की अंग्रेजों के दोनों हाथों में लड्डू है, भारतीय नमक पर टैक्स लगा दिया है तो भारतीय नमक महंगा हो गया है उससे (रेवेनु कलेक्सन ) बढ़ गया है और ब्रिटेन का नमक गाँव-गाँव में सस्ता हो गया है, उसकी बिक्री हो रही है तो मुनाफा भी हो रहा है | और तब गाँधी जी कह रहे है की ये तो इतना क्रूर क़ानून है इसके खिलाफ तो कुछ होना चाहिए | उस समय उनकी उम्र २०-२१ साल की है, लेकिन उनके दिमाग में ये मंथन चल रहा है की कुछ होना चाहिए | और वो मंथन चलते-चलते १९३० में नमक सत्याग्रह के रूप में प्रकट हुआ | और गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह किया क्यूँ ? गांधीजी ने नमक सत्याग्रह इसलिए किया है क्यूंकि अंग्रेजों का नमक इस देश में बिक रहा है, भारतीय नमक पर टैक्स लगा हुआ है, हिन्दुस्तानी लोगों को नमक बनाने से रोका जाता है, अंग्रेजों के लोग इस देश में नमक बनाते हैं और बेचते हैं इस क़ानून को मैं तोडूंगा | और इसके खिलाफ मुझे सत्याग्रह करना है, गाँधी जी के साथ इस सत्याग्रह में आने के लिए कोई तैयार नहीं तो गाँधी जी कह रहे हैं मैं अकेले जाऊंगा | उस समय मोतीलाल नेहरु गांधीजी को चिड़ा रहे हैं और क्या कह रहे हैं मोतीलाल नेहरु ? की बापू अगर नमक सत्याग्रह करने से आजादी मिल जाए तो कोई भी आजादी ना ले ले इस देश में | तो मोतीलाल नेहरु को गांधीजी कह रहे हैं पंडित तुम एक बार नमक क़ानून तोड कर तो देखो तुमको पता चल जायेगा की आजादी आती है की नहीं | और इस देश में नमक सत्याग्रह आजादी के प्रतीक के रूप में उभर के आया और उस गाँधी नाम के व्यक्ति ने दांडी नाम के समुद्र तट पर एक मुट्ठी नमक हाथ में लेकर ६ अप्रैल १९३० को कसम खाई है की आज के बाद इस देश में अंग्रेजों का नमक नहीं बिकेगा | गाँव-गाँव में गली-गली में हम अपना नमक बनायेंगे और इसके लिए हम को नमक क़ानून तोडना पड़ेगा तो हम तोड़ेंगे | और उस नमक क़ानून को तोड़ने में लाखों-लाखों लोग जेल गए, पूरे देश में | लाखों-लाखों लोग अंग्रेजों की लाठीचार्ज से घायल हुए और हजारों लोग उसमें मर गए | बाद में अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और वो सारा का सारा वापस लिया | लेकिन मैं आज आपको दुर्भाग्य से कहूँ की जिस गाँधी जी ने १९३० में ६ अप्रैल को एक मुट्ठी नमक हाथ में लेके कसम खाई थी की इस देश में आज के बाद विदेशी नमक नहीं बिकेगा उस देश में आजादी के ५० साल के बाद विदेशी नमक बिक रहा है, कैप्टेन कुक और अन्नपूर्णा | अगर आजादी के पहले अंग्रेजों की सरकार के ज़माने में इस देश में अंग्रेजों का नमक बिकता था और स्वदेशी नमक पर टैक्स लगाके उस को महंगा कर दिया गया था | तो आज आजादी के ५० साल के बाद भी वही दृश्य इस देश में देख रहे हैं और क्या दृश्य देख रहे हैं की हिन्दुस्तान की सरकारों ने विदेशी कंपनियों को नमक बनाने के लिए खुली छूट दे दी है | इस नमक को बनाने में कौन सी उच्च तकनीकी है जरा मुझे बताइए ? नमक को बनाने में कौन सी मशीन लगती है ये मुझे बताइये ? सूरज की रोशनी होती है समुद्र का पानी होता है, सूरज की रोशनी और समुद्र के पानी के मिलन से नमक बन जाता है, हिन्दुस्तान में हजारों साल से ये तकनीकी इस्तेमाल होती है| सारे दुनिया के कई देशों में यही तकनीकी इस्तेमाल होती है और इस काम के लिए भी विदेशी कंपनियों को बुलाया जाए तो मैं कैसे मान लूँ की ये देश आज़ाद हो गया है | और कहीं गांधीजी की आत्मा देखती होगी स्वर्ग से तो आज आँसू रोती होगी की जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया इसलिए की उस विदेशी कंपनी का नमक ना खाया जाए, आज इस देश के लोग बाज़ार से विदेशी कंपनी का नमक खरीद रहे हैं | शायद हमको मालूम नहीं है की हम कितना बड़ा राष्ट्रीय अपराध कर रहे हैं, जब ये काम हम कर रहे हैं | और इसलिए मैं मानता नहीं की ये देश आजाद हो गया है | इस देश में गुलामी की पहले की जो व्यवस्थाएं थी, आजादी से पहले की जो व्यवस्थाएं थी वही व्यवस्थाएं चल रही हैं  | अंग्रेजों ने इस तरह से इस देश को खलास किया | एक दो और उदाहरण हैं की अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्थाएं कैसे चल रही हैं | १८६५ में अंग्रजों ने इस देश में क़ानून बना दिया उस क़ानून का नाम था “इंडियन फारेस्ट एक्ट” | और ये क़ानून अंग्रेजों ने क्यूँ बनाया ? ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया की हिन्दुस्तान में जंगल जो होते थे वो ग्राम समाज की संपत्ति होते थे, गाँव सभा की संपत्ति होते थे | तो गाँव के लोगों का जंगल पर अधिकार होता था | और जब जंगल गाँव समाज की संपत्ति होते थे, ग्राम सभा की संपत्ति होते थे तो जंगलों की रखवाली करने का काम गाँव के लोगों का होता था | और गाँव के लोग मानते थे की ये हमारी संपत्ति है तो उस संपत्ति को संरक्षित और सुरक्षित रखने के उन्होंने पचासों तरीके अपनाए थे | हिन्दुस्तान में आज भी एक ऐसी जाती है राजस्थान में जिस जाति का नाम है विश्नोई | और एक बार में ये विश्नोई जाति के लोगों के गाँव में जा कर आया | अलवर जिले के आस पास में ये लोग काफी रहते हैं | तो मैंने उनके गाँव के सरपंच और मुखिया से कहा आप मुझे अपने गाँव का इतिहास बताइए | तो गाँव के मुखिया ने बताया की राजीव भाई सन १८६५ में अंग्रेजों ने हमारी विश्नोई जाति के हज़रून लोगों का क़त्ल किया | मैंने पुछा – क्यूँ ? तो उन्होंने बताया की उसका मतलब ये था की अंग्रेजों ने क़ानून बनाया था उसका नाम था “ फारेस्ट एक्ट “| तो मैंने कहा “इंडियन फारेस्ट एक्ट” तो उन्होंने कहा “हाँ” | तो मैंने उनसे कहा की उसमे तो अंग्रेजों ने ये किया था की जंगल जो ग्राम समाज की संपत्ति होते थे उन जंगलों को सरकार की संपत्ति घोषित किया था | एक ही क़ानून से एक ही झटके में | तो सरकार की घोषित होने से पहले अँगरेज़ जंगलों को काटा करते थे तो अक्सर आदिवासियों के साथ उनके झगडे होते थे | आदिवासी पेड़ कटने नहीं देते थे और अंग्रेज़ पेड़ काटते थे | और विश्नोई गाँव के लोगों ने बताया की जब अंग्रेज़ लोग हमारे यहाँ पेड़ काटने आते थे, हमारी महिलाएं पेड़ पकड़ के खड़ी हो जाती थी, पहले महिला की गर्दन कटती थी फिर पेड़ कटता था | हमारे नौजवान पेड़ पकड के खड़े हो जाते थे, पहले नौजवान का शरीर कटता था, फिर पेड़ कटता था | और हजारों पेड़ को बचाने के लिए इस तरह हमारे जाति के लोगों ने कुर्बानियां दीं | और ये सब अंग्रेजों ने किया था १८६५ के “इंडियन फारेस्ट एक्ट” के क़ानून के आधार पर | और १८६५ में जैसे ही क़ानून पारित हो गया वैसे ही अंग्रेजों ने क्या घोषित कर दिया की अब जो पूरे हिन्दुस्तान के जंगल हैं वो अंग्रेजी सरकार की संपत्ति हैं | और जब वो सरकार की संपत्ति घोषित हो गए तो सरकार जैसे चाहे उनका इस्तेमाल करे | गाँव समाज के लोगों को कोई हक़ ही नहीं है, उन्होंने हजारों-हजारों साल से जंगलों को लगाया है उन्हीं लोगों का जंगलों पर कोई हक़ नहीं है, जिन्होंने जंगल लगायें हैं , जंगले खड़े किये हैं | और जिनको जंगलों से कुछ लेना देना नहीं और जो जानते नहीं की जंगल कैसे लगाये जाते हैं उनको पेड़ काटने का अधिकार मिल गया क्यूँकि “इंडियन फारेस्ट एक्ट” बना दिया अंग्रेजों ने | और अंग्रेजों के काम करने का तरीका क्या था की जब किसी को मारना हो, खलास करना हो, बर्बाद करना हो तो उसके लिए क़ानून बना दो | तो वो क्या कहते थे हम तो क़ानून का पालन कर रहे हैं मतलब आपकी जेब कट रही है, आपकी बर्बादी हो रही है और अंग्रेजों के लिए क़ानून का पालन हो रहा है | तो १८६५ में उन्होंने क़ानून बना दिया अब उसका पालन करने के लिए उन्होंने हजारों-हजारों आदिवासियों को मार दिया क्यूँकि वो जंगल बचने की लड़ाई लड़ते थे | उस क़ानून में एक (प्रोविसिन) है , (प्रोविसिन) क्या है ? १८६५ का जो “ इंडियन फारेस्ट एक्ट” है वो ये कहता है की कोई भी आदिवासी या कोई भी हिन्दुस्तानी व्यक्ति जंगल के पेड़ नहीं काट सकता और जंगल से लकड़ी भी नहीं ला सकता | भले ही अपने निजी इस्तेमाल के लिए क्यूँ ना हो | उसके उलटे तरफ अगर अंग्रेजी सरकार चाहे और अंग्रजो के ठेकेदार चाहें तो करोड़ों पेड़ कट सकते हैं | तो अंग्रेजी सरकार को और ठेकेदारों को तो लाइसेंस मिल गया पेड़ काटने का लेकिन हिन्दुस्तान के लोग जो जंगलों में रहते थे, अगर वो पेड़ काटकर लकड़ी ले आयें अपना खाना बनाने के लिए तो उन पर पाबन्दी लगा दी उन्होंने, क़ानून से | और अगर कोई भी व्यक्ति जंगल से लकड़ी लाया है खाना बनाने के लिए तो उसको जेल हो जाएगी और अंग्रेजों ने इसी काम के लिए एक पोस्ट बनाई जिसका नाम था “ डिस्ट्रिक् फारेस्ट ऑफिसर” “डी एस ओ “ | और ये पोस्ट बनी १८६५ में और इस पोस्ट के आदमी का काम क्या था यही की कोई भी हिन्दुस्तानी अगर जंगल से लकड़ी काट लाये तो उसको सजा दिलवाना, उसके ऊपर केस बनाना, उसको मारना, उसको पीटना और दूसरी तरफ अंग्रेजों के ठेकेदार और अँगरेज़ पेड़ काटें तो उनको लाइसेंस जारी करना | तो १८६५ में ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया | ठीक है १९४७ में अंग्रेज़ चले गए, लेकिन क़ानून अभी भी वो ही है और आज भी इस देश में १८६५ का वही “इंडियन फारेस्ट एक्ट” चल रहा है, जो अंग्रेज़ बनाकर गए थे | और उसके (प्रोविसन) क्या हैं, उसका वो (प्रोविसन) जिसमें आप पेड़ नहीं काट सकते लेकिन अंग्रेजी सरकार और अंग्रेजों की कम्पनियां पेड़ काट सकती हैं वो (प्रोविसन) आज भी वैसे का वैसे ही है | अगर आप की (सोसाइटी) में कोई पेड़ लगा हो और वो पेड़ आप की (सोसाइटी) की दीवार गिराने वाला हो आप उस पेड़ को काट नहीं सकते और आपने वो पेड़ काट दिया और कोई आदमी आप की शिकायत कर दे “डी ऍफ़ ओ” से आप के ऊपर केस चलेगा | ये क़ानून आज भी है | और दूसरी तरफ कुछ विदेशी कम्पनियां हैं इस देश में जो हर साल करोड़ों-करोड़ों पेड़ काटती है और इस देश का सत्यानाश कर रही हैं उनको लाइसेंस मिला हुआ है |  जैसे एक कंपनी है “आई टी सी”, “इंडियन टोबाको कंपनी”| नाम से ऐसे लगता है जैसे ये हिन्दुस्तानी है लेकिन मूलतः ये अमेरिका और ब्रिटेन के पैसे से चलने वाली कंपनी है, ये कंपनी क्या करती है सिगरेट बनती है | और एक साल में इस कंपनी के नब्बे अरब सिगरेट बनते हैं और वो नब्बे अरब सिगरेट बनाने के लिए इस कंपनी को कागज की जरुरत होती है क्यूंकि सिगरेट की जो तम्बाकू होती है वो तो खेतों में पैदा हो जाती है | लेकिन तम्बाकू के ऊपर जो कागज लपेटा जाता है वो तो बनाना पड़ता है और वो कागज लपेटकर जो स्टिक बन जाती है उसको पैकेट के अन्दर बंद करना पड़ता है | तो पैकेट के लिए भी कागज बनाना पड़ता है, फिर उनका विज्ञापन करना पड़ता है तो उसके लिए पोस्टर चाहिए तो उसका भी कागज बनाना पड़ता है | तो ये कंपनी लगभग ५०० सिगरेट बनाने के लिए एक पेड़ काटती है | और हर साल ये कंपनी १४०० करोड़ पेड़ काट देती है उसको लाइसेंस मिला हुआ है | आप अगर एक पेड़ काटें तो आप को जेल हो जाएगी | ये क़ानून किसका है, ये क़ानून अंग्रेजों के ज़माने का है | क्यूँ चल रहा है ? इसका जवाब कौन देगा | १९४७ में हम आजाद हो गए थे ये क़ानून ख़त्म हो जाना चाहिए था | लेकिन क्यूँ चल रहा है अभी भी ये क़ानून आजादी के ५० साल बाद भी | और अंग्रेजों ने जो जंगल गाँव समाज की संपत्ति थे वो छीन कर सरकार की संपत्ति घोषित कर दिए | १९४७ में जो सरकार आई थी उसको सबसे पहला काम ये करना चाहिए था की जंगलों को वापस ग्राम समाज की संपत्ति घोषित करना चाहिए था | लेकिन वो तो नहीं हुआ आज तक |  तो कैसे मैं मानूँ की ये देश आजाद हो गया है | १८९४ में अंग्रेजों ने एक क़ानून बनाया जिसका नाम था (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) | और ये क़ानून क्या था गाँव-गाँव के लोगों की जमीन हड़पने के लिए अंग्रेजों को एक क़ानून की जरुरत थी क्यूँकि अंग्रेजी पुलिस ऑफिसर जो होते थे वो गाँव-गाँव में जाते थे, लोगों को मारते थे, पीटते थे उनकी जमीन हड़प लेते थे | और ना सिर्फ जमीन हड़पते   थे बल्कि हिन्दुस्तान के बड़े-बड़े राज्य भी अंग्रेजों ने हड़प लिए थे | यहाँ के कई राजाओं के राज्य हड़प लिए थे अंग्रेजों ने | और ऐसा एक किस्सा तो आप सब को मालूम होगा झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के राज्य को अंग्रेजों ने हड़प लिया था | और अंग्रेजों ने झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के राज्य को हडपा इसलिए ही रानी लक्ष्मी बाई ने युद्ध लड़ा था | बाद में झाँसी की रानी की हत्या कराई थी, इसी देश के कुछ गद्दारों ने मिलकर झाँसी की रानी को मरवाया था अंग्रेजों से | उसको धोखे से, और वो गद्दार खानदान इस देश में अभी भी मौजूद है | तो झाँसी की रानी की हत्या हुई थी, मामला क्या था की झाँसी को हड़प लिया था, तो अंग्रेजों का एक अफसर था डलहौजी, डलहोजी अक्सर ये कहा करता था की हम को ये राज्य हडपने पड़ते हैं, गाँव-गाँव की संपत्ति हमको हडपनी पड़ती है और इसके लिए हमको बड़ी हिंसा करनी पड़ती है और अंग्रेजों को बड़ी मुश्किल सहन करनी पड़ती है | क्यूँ ना इनको हड़पने का एक क़ानून बना दिया जाए | तो उन्होंने संपत्ति गाँव की हड़पने का क़ानून बना दिया जिसका नाम हो गया (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) | और वो (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) १८९४ में बनाया था ताकि गाँव-गाँव की जमीन को छीना जाए | किसानों की जमीन को छीन लिया जाए और वो जमीन छीनकर अंग्रेजी सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी को बेचे या किसी विदेशी कंपनी को बेचे, ये धंधा करती थी उस जमाने की अंग्रेज़ सरकार | और आप को मैं बताऊँ के दुर्भाग्य आज हमारा ये है की वो क़ानून आज भी इस देश में चल रहा है | बस इतना फर्क हुआ है की उस ज़माने में अंग्रेजी सरकार गाँव के लोगों की जमीन छीन कर विदेशी कंपनियों को बेचती थी अब हमारी सरकारें गाँव के किसानों की जमीनें छीन कर विदेशी कंपनियों को बेचती हैं, इतना ही फर्क है | पहले जो धंधा अंग्रेज़ करते थे अब वही भारत की सरकारें कर रही हैं | तमाम प्रदेशों की सरकारें कर रही हैं और यह सरकारें तर्क क्या देती हैं की देश की प्रगति के लिए, देश के भले के लिए गाँव की जमीनें छीन कर विदेशी कंपनियों को देना बहुत जरुरी है | और उसी के आधार पर क्या हुआ है पिछले पांच वर्षों में सन १९९१ से लेकर १९९६ के बीच में महाराष्ट्र की हजारों हेक्टेयर जमीन विदेशी कंपनियों को बेची गयी है | हजारों हेक्टेयर जमीन गाँव के लोगों से छीन कर, उनकी पिटाई करके, उनको मारकर, उनको डराके, उनको धमका के उनकी जमीनें छीनी गयी हैं और विदेशी कंपनियों को दी गई हैं | गुजरात में पिछले पांच साल में हजारों हेक्टेयर जमीन किसानों की छीनकर विदेशी कंपनियों को बेचीं गई हैं | और हिन्दुस्तान का कोई एक प्रदेश ऐसा नहीं है, कर्णाटक में हजारों हेक्टेयर के जंगल कटवाए गए हैं ताकि विदेशी कंपनियों के कारखाने वहां लग सकें | (कोजेंत्रिक) की जो बिजली की परियोजना आ रही है कर्णाटक में वो इसी आधार पर आ रही है की जो पश्चिम घाट है वहां का, उसके जो बेहतरीन जंगल हैं उनको कटवाया जाए और विदेशी कंपनी की परियोजना चले वहां पर | ये धंधा तो अंग्रेज़ सरकार करती थी इस देश में | अगर वही धंधा आजादी के ५० साल बाद हमारी सरकार कर रही है तो इसको में अंग्रेजी सरकार कहूँ या हिन्दुस्तानी सरकार कहूँ | और मैं कैसे मान लूँ की ये देश आजाद है | जिस तरह से अंग्रेज़ जमीन छीना करते थे गाँव-गाँव की उसी तरह से जमीन छिन रही है और दी जा रही है विदेशी कंपनियों को तो कैसे मानें की ये देश आजाद हो गया | काम तो वो ही चल रहें हैं, देश तो वैसे ही चल रहा है, सरकारें तो वैसे ही काम कर रही हैं जैसे अंग्रेजों के ज़माने में काम करती थी | १८६० में अंग्रेजों ने क़ानून बनाया उसका नाम था “इंडियन पुलिस एक्ट” | ये १८६० का “इंडियन पुलिस एक्ट” अंग्रेजों ने इसलिए बनाया की १८५७ में इस देश में क्रांति हो गयी थी, विद्रोह हो गया था, बगावत हो गयी थी पूरे देश में | मंगल पाण्डे को फांसी की सज़ा हुयी थी बैरकपुर की छावनी में और सारे देश में आग लग गयी थी | गाँव-गाँव में नौजवान खड़े होने लगे थे, युवकों के मंडल आ गए थे और वो युवकों के मंडल अंग्रेजी सरकार के लिए खतरा पैदा करते थे तो अंग्रेजी सरकार नें हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों को पीटने के लिए, मारने के लिए, उनपर गोली चलाने के लिए एक (स्पेशल) क़ानून बनाया, जिसका नाम था “इंडियन पुलिस एक्ट” | और उस “पुलिस एक्ट” में उन्होंने क्या किया की हर अंग्रेजी सिपाही के हाथ में एक डंडा पकड़ा दिया की तुम हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज कर सकते हो | और क़ानून कैसे बनाया, क़ानून ऐसे बनाया की हर अंग्रेजी पुलिस अधिकारी को, हर अंग्रेजी सिपाही को हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज करने का अधिकार होता था जिसको तकनीकी भाषा में मैं कहता हूँ की हर अंग्रेज़ अधिकारी को “राईट टू ओफेंस” था लेकिन पिटने वाले को “राईट टू डिफेंस” नहीं था | और जैसे अंग्रेज़ सिपाही किसी को पीट रहा है और बदले में जो व्यक्ति पिट रहा है अंग्रेजी सिपाही को पीट दे तो केस उस व्यक्ति पर चलता था जिसने अँगरेज़ सिपाही को पीटा, न की अंग्रेज़ सिपाही के ऊपर जो पीट रहा है | इसी को तकनीकी भाषा में कहता हैं की हर अंग्रेज़ को “राईट टू ओफेंस” था लेकिन पिटने वाले को “राईट टू डिफेन्स” नहीं था | और इस काम के लिए अंग्रेजों ने हर सिपाही के हाथ में डंडा पकड़ा दिया और उस डंडे के बाद में इस देश में दनादन लाठीचार्ज होना शुरू हो गया | और जो क़ानून अंग्रेजों ने १८६० में बनाया था वही क़ानून आज भी चल रहा है इस देश में | और आप को शायद मालूम नहीं होगा की हिन्दुस्तान का हर कांस्टेबल हाथ में डंडा लिए क्यूँ घूमता है | ये हिन्दुस्तान के हर कांस्टेबल के हाथ में डंडा किसने दिया, क़ानून कौन सा है जो वो हाथ में डंडा लिए घूमता है | वो क़ानून अंग्रेजों के जमाने का है सन १८६० का | और वो डंडा क्यूँ दिया ताकि हिन्दुस्तानी लोगों को पीटो, अपने ही भाइयों को पीटो | हमारे बहुत से लोग अंग्रेजी सरकार में नौकरी करते थे, अंग्रेजी पुलिस में नौकरी करते थे तो हिन्दुस्तानी अधिकारियों से हिन्दुस्तानियों को पिटवाते थे अंग्रेज़ |

अंग्रेज़ ऑफिसर बाद में आते थे पहले हिन्दुस्तानी भाई हिन्दुस्तानी भाइयों को पीटते थे और ये दृश्य मैं मान सकता हूँ की १८६० में चलता होगा जब ये देश गुलाम होगा अंग्रेजों का, आज आजादी के ५० साल के बाद भी अगर वही दृश्य हमको देखने को मिले तो कैसे मैं मानूँ की ये देश आजाद हो गया है | और इसी १८६० के “इंडियन पुलिस एक्ट” के आधार पर क्यूंकि हर अंग्रेजी पुलिस अधिकारी को “राईट टू ओफेंस” होता था और मरने वाले को “राईट टू डिफेंस” नहीं होता था इसी आधार पर गोलीकांड हुआ था १३ अप्रैल १९१९ में जलियांवाला बाग में | और जलियांवाला बाग में जो गोलीकांड हुआ था १३ अप्रैल सन १९१९ में उसमें हुआ क्या था | २०,००० क्रांतिकारियों की सभा चल रही थी, शांतिपूर्वक | जिसमें कहीं कोई उत्तेजना नहीं थी, और एक भी क्रांतिकारी के हाथ में ना लाठी थी, ना डंडा था, ना बन्दूक थी और ना पिस्तौल थी, कुछ भी नहीं था | और उन क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था जनरल डायर ने | और डायर ने जिस तरह से गोली चलाई वो जलियांवाला बाग जिसने देखा हो, मैं तो वहाँ तीन बार गया हूँ उस में घुसने के लिए बहुत छोटा सा रास्ता है, मुश्किल से साढ़े तीन फीट का रास्ता, बहुत ही छोटा | उस रास्ते पर डायर ने ले जा के तोप लगा दी ताकि कोई भाग ना सके और चारों तरफ से वो घिरा हुआ है ऊँची दीवारों से | तो २०,०००  लोगों की सभा चल रही थी, डायर अन्दर घुसा, फ़ौज उसकी बिखर गयी और बिना चेतावनी दिए गोली चला दी | अठारह मिनट तक बराबर फायरिंग होती रही और अठारह मिनट की फायरिंग में २००० लोग मर गए वहीँ पर | और २००० आदमी मर गए तो बाद में डायर के ऊपर केस चला था तो उसने बयान दिया था की मेरे पास गोलियाँ खत्म हो गई थी अगर होती तो और आधा घंटा चलाता | तो जब वो गोलियाँ चली, २००० लोग मर गए और बाकी लोग जो मरे, वो भगदड़ से मरे | जो बच गए वो कुएँ में कूदे जान बचाने के लिए और कुएँ में कूदे तो भी वो मर गए | और उन गोलियों से मरने वाले लोगों के जो दृश्य होते थे, इतने वीभत्स तरीके से लोगों को मारा है, इतनी नृशंसता से, इतने क्रूर कृत्यों से मारा है लोगों को, बाद में डायर के ऊपर केस चला, तो डायर बाइज्ज़त बरी हो गया | उसको फांसी की सज़ा नहीं हुई, क्यूँ नहीं हुई | क्यूँकि जज ने कहा की – १८६० का जो “पुलिस एक्ट” है वो डायर को गोली चलने का अधिकार देता है, मरने वाले को “राईट टू डिफेन्स” नहीं देता, इसलिए डायर का कोई कसूर नहीं है | भारत माता की जय

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