ये अंग्रेज भारत की सबसे बड़ी खोज ले गया था

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1710 में डॉक्टर ऑलिवर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है,”मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं.” चेचक उस समय यूरोप के लोगों के लिए महामारी ही थी. इस बीमारी से लाखों यूरोपवासी मर गए थे. उस समय में वो लिखता है कि यहाँ लोग चेचक के टीके लगवाते हैं. वो लिखता है कि,”टीका एक सुई जैसी चीज़ से लगाया जाता था. इसके बाद तीन दिन तक उस व्यक्ति को थोड़ा बुखार आता था. बुखार ठीक करने के लिए पानी की पट्टियां रखी जाती थीं. तीन दिन में वो व्यक्ति ठीक हो जाता था. एक बार जिसने टीका ले लिया वो ज़िंदगी भर चेचक से मुक्त रहता था.

फिर ये डॉक्टर वापस लन्दन गया. डॉक्टरों की सभा बुलाई. सभा में भारत में चेचक के टीके की बात बताई. जब लोगों को यकीन नही हुआ तो वो उन सभी डॉक्टरों को अपने खर्च पर भारत लाया. यहाँ उन लोगों ने भी टीके को देखा. फिर उन लोगों ने भारतीय वैद्यों से पूंछा कि इस टीके में क्या है? तो उन वैद्यों ने बताया कि जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की नोंक के बराबर यानि कि बहुत ज़रा सा पस किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं. और फिर उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है.

डॉ.ऑलिवर आगे लिखता, “जब मैंने इन वैद्यों से पूंछा कि आपको ये सब किसने सिखाया? तो वे बोले कि हमारे गुरु ने. उनके गुरु को उनके गुरु ने सिखाया. मेरे अनुसार कम से कम डेढ़ हज़ार(1500) वर्षों से ये टीका भारत में लगाया जा रहा है.”

डायरी के अंत में वो लिखता है, “हमें भारत के वैद्यों का अभिनन्दन करना चाहिए कि वे निशुल्क रूप से घरों में जा-जाकर लोगों को टीका लगा रहे हैं. हम अंग्रेजों को इन वैद्यों ने बिना किसी शुल्क(फीस) के ये विद्या सिखाई है, हमें इनका जितना हो सके उतना आभार करना चाहिए.”

आज सारी दुनिया में जिस डॉ.ऑलिवर को चेचक के टीके का जनक माना जाता है वो खुद अपनी डायरी में भारत के वैज्ञानिकों को इस टीके का जनक स्वीकार कर रहा है.

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