आज जो जानकारी दे रहा हूँ वो बेहद चौकाने वाली बात है !! शायद आप मेरी बातो पर विश्वास न भी करे, पर मैं यह पोस्ट इसीलिए लिख रहा हूँ क्यूंकि इसके बारे में पुरी सच्चाई को करीब से जाना और परखा ! और मुझे लगा की लोगो को इसकी जानकारी होनी चाहिए ! आपने कई जगह इस तरह की बोर्ड लगे देखा होगा !
आपने कभी सोचा क्या की आखिर यह लकड़ी का कोयला आता कहाँ से है ? साधारणतया लकड़ी के अंगारों को बुझाने से बच रहे जले हुए अंश को ‘कोयला’ कहा जाता है। उस खनिज पदार्थ को भी कोयला कहते हैं जो संसार के अनेक स्थलों पर खानों से निकाला जाता है। अब यह लकड़ी का कोयला पटना शहर में कई जगह मिल जाता है !
इसकी जब पड़ताल शुरू किया तो पता चला की शमशान घाट पर जो चिताएं लकड़ी पर जलाये जाते है, और चिताए जलने के बाद जो लकड़ी पुरी तरह से जलती नहीं है वही लकड़ी के कोयला के रूप में कुछ लोगो के द्वारा बाजारों में बेचा जाता है ! एक दिन मैंने इन दुकानों में जाकर जानना चाहा की आखिर ये कोयला ये लोग लाते कहाँ से है ? तो पहले तो मुझे किसी दुकानदार ने नहीं बताया पर कुछ दिन बाद संयोग से मुझे किसी वजह से शमशान जाना पड़ा ! वहां एक ठेले पर बहुत सारी बोरिया में कोयला लदे देखा तो वहां के लोगो ने बताया की यह वही कोयला है जो चिताओ के जलाने के बाद बच जाती है ! चाहे तो थोड़ी देर आप यहाँ रुक कर यह देख सकते है ! और उसकी बात सही निकली उस समय एक चिता पुरी तरह से बुझने के कगार पर थी, मैंने देखा की चिता की लौ बुझ गयी तो कुछ लोग आगे आ कर गंगा जी के पानी से चिता को बुझाया और एक व्यक्ति ने वहां से जले हुए लकड़ी के ढेर को वहां से अलग रख दिया और लोगो के चले जाने के बाद 2-3 लोग आकर कोयले को पानी से धोकर उसे बोर में भरना शुरू कर दिया !
मुझे सबसे हैरानी तब हुई जब शमशान घाट पर कोयला इकटठा करने वाले एक 25 वर्षीय लड़के ने बताया की पटना शहर के अधिकतर होटलों के तंदूर में यही लकड़ी का कोयले का इस्तेमाल होता है ! और उसी तंदूर में तंदूरी रोटी , नान इत्यादि कई चीजे बनाये जाते है ! वहां पर एक और व्यक्ति जो करीब ४५ साल का था उसने जो बाते बताई और भी चौकाने वाली बात थी उन्होंने बताया की आप पूजा करने में हम लोग अगरबत्ती या धुप का इस्तेमाल करते है उसमे भी कुछ लोग के द्वारा इसी लकड़ी के कोयले का चुरा इस्तेमाल होता है और अगरबत्ती में जो लकड़ी का स्टिक होता है वो उसी बांस का बनाया जाता है जिस बांस पर लोगो की अर्थी ले जाई जाती है ! उस बांस से ही टोकरी बनाई जाती है , यहाँ तक की वही बांस को काटकर और छिल कर छोटे छोटे टुकडो में करके पान दुकानदार अपनी पान में “सिक” के रूप में लगाते है ! कारण यह है की वह बांस और कोयला बहुत ही कम दामो में मिलता है ! और प्राकृतिक रूप से बने लकड़ी के कोयले और बाजार में बिकने वाले बांस महंगे मिलते है !
इसीलिए आगे से कोई भी तंदूर पर बने रोटी को खाने से पहले ये जान ले की किस प्रकार की लकड़ी के कोयले से बनी हुई है !! यह जानकारी किसी को आहत करने के लिए नहीं दी बल्कि इसीलिए दी की हमारे आस पास बहुत से ऐसे चीज है जिसे बिना जाने उसका उपयोग कर रहे है ! उसे सुधारने की जरुरत है !
ये कहानी सिर्फ पटना की नहीं है अगर आप अपने शहर में इस पर काम करेंगे तो आपको भी ऐसे ही चोकाने वाले नतीजे मिल सकते है …
साभार – विनोद कुमार