लखीमपुर। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के मोहनपुरवा गाँव के किसान दिलजिंदर सहोता जो आज के चार साल पहले तक एयरवेज में नौकरी करते थे। आज अपने खेत में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का इस्तेमाल किए बगैर गन्ने की खेती कर रहे हैं। दिलजिंदर गाँव कनेक्शन के पाठकों से अपनी बातें साझा कर रहे हैं।
चौदह साल तक ओमान में रहने के बाद साल 1996 में भारत आया। अमृतसर में हाईस्कूल से बीए तक की पढ़ाई पूरी की, लेकिन पिता की अचानक मौत के बाद मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। मैं अपनी मां के साथ अपने गाँव आ गया।उसके बाद मेरी जॉब एयरवेज में लग गई, कई साल तक एयर सहारा और जेट एयरवेज में जॉब करने के बाद मुझे लगा कि अपने गाँव में ही कुछ करना चाहिए। मैंने अपनी जॉब छोड़ दी और घर आ गया।
वहीं से मेरी किसान बनने की शुरुआत हुई, पहले पहल तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था। क्योंकि खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लोग खेत की मेड़ पर खड़े कमर पर हाथ रख कर कहते, “पढ़ लिखकर खेती नहीं होती है, देखना कितनी जल्दी छोड़कर भाग जाएगा।” बस मैंने वहीं से गांठ बांध ली कि मुझे खेती में ही कुछ अलग करके लोगों को गलत साबित करना है. उस समय इंटरनेट मेरे लिए काफी मददगार साबित हुआ, वहीं से कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का नंबर लेकर उन्हें फोन करता, उनसे नई जानकारियां लेता। अब मैं अपने खेतों में पेस्टिसाइड का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करता हूं, बस सीड ट्रीटमेंट के लिए ही कीटनाशक का प्रयोग करता हूं, जिसके चलते हमारे खेतों में भारी मात्रा में केंचुए हैं। जिधर देखो केंचुए की बीट दिखाई पड़ती है। जमीन खोदिए तो केंचुओं के गुच्छे निकलते हैं।
केंचुए किसान के मित्र होते हैं। जमीन को पोला रखने में केंचुए बड़ी भूमिका निभाते हैं। वर्मी कम्पोस्ट और केंचुआ खाद से खेतों में केंचुओं की तादात धीरे धीरे बढ़ती चली गई। साथ ही हम अपने खेतों में गन्ने की पत्ती हो उसकी खोई कभी जलाते नहीं। खेतों में ही सड़ा देते हैं।
दूसरे प्रदेशों से लेकर विदेशों में गन्ने की खेती किस नए वैज्ञानिक ढंग से हो रही इसका पता इंटरनेट और यूट्यूब पर सर्च कर मिल जाता है। पूरा गन्ना ट्रेंच मेथड से ही लगाता हूं। केंचुओं के बदौलत ही मेरे खेतों में पांच सौ कुंतल प्रति एकड़ गन्ने की कम से कम पैदावार है।
किसानों के साथ कई परेशानियां भी हैं, गन्ने के मूल्य का सही समय पर भुगतान नहीं होता है, न ही सही दाम मिलता है। दूसरी फसलों के लिए किसान बाजार नहीं मिलता है। फसलों की विविधता की आवधारणा भी फेल हो जाती है।
किसानों को जैविक खेती अपनानी चाहिए, जिस तरह से किसान रासायनिक खाद इस्तेमाल कर रहे हैं, इससे खेत की उर्वरता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इसलिए किसानों को जैविक खेती अपनानी चाहिए। जैविक तरीके से उगाई फसलों का दाम भी अधिक मिलता है।
इस विडियो में देखिए जैविक खेती करने का सबसे उत्तम तरीका >>