इसे कहते हैं धरती से सोना पैदा करना, पत्थरों के बीच खेती से 12 साल तक 80 लाख सालाना

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मध्य प्रदेश के एक किसान ने कर दिखाया कमाल 
अक्सर किस्से कहानियों में सुनते हैं कि खेती की जमीन सोना उगल सकती है। एक फिल्म गाने के बोल भी है – मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती। ये बात मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के एक किसान रविंद्र चौधरी ने सच साबित कर दी है।

पत्थरों के बीच उगाया ‘सोना’ 
अगर आप समझते हैं कि, बंजर भूमि भला किसकी क्या किस्मत चमका पाएगी, तो अपनी सोच बदल लीजिए! हम आपको एक ऐसे किसान की कहानी बता रहे हैं जिसने पथरीली जमीन पर खेती कर हर साल 80 लाख रुपए कमाने की शुरुआत कर दी है।

छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना निवासी रविन्द्र चौधरी और इनके सहयोगी मनीष डोंगरे एवं लखन डोंगरे ने चार साल पहले ग्राम भटेवाड़ी के पास एक पथरीला खेत लिया। एक साल तक उन्होंने खेत को तैयार किया। दो साल पहले इस बारह एकड़ खेत में अनार के 4017 पौधे लगाए। बीते 22 महीनों में ड्रीप एरिगेशन से सिंचाई करते हुए अनुभवी किसानों के मार्गदर्शन में चौधरी परिवार ने खेती-किसानी के क्षेत्र में एक नई मिसाल खड़ी कर दी। आठ हफ्ते बाद इस खेत से अनार की पहली फसल मिलेगी। अनुमान है कि पहले साल इस बागान से करीब 80 लाख रूपए की फसल आएगी, यही नहीं अगले दस से बारह साल तक हर साल इतनी ही रकम की आमदनी होती रहेगी।

शिर्डी से लौटते समय मिली प्रेरणा 
खेती में नए आयाम छूने वाले कृषक रविन्द्र चौधरी बताते है कि तीन साल पहले वे शिर्डी गए थे। लौटते समय उन्होंने वहां एक अनार का बागान देखा। वहां एक साधारण किसान ने अनार की खेती कर सवा करोड़ से अधिक की फसल बेची थी। उसकी खेती और सफलता देखकर चौधरी परिवार को खेती में कुछ नया करने की प्रेरणा मिली। अब रविन्द्र चौधरी अपने ही खेत में अनार की कलम भी तैयार करते है। इसके अलावा वे किसानों को नि:शुल्क मार्गदर्शन भी दे रहे हैं।

विडियो में देखिए भाई राजीव दीक्षित जी द्वारा बताया गया खेती करने का सबसे उत्तम तरीका, इस तरीके से खेती पर होने वाला खर्च शून्य हो जायेगा >>>>

उपयुक्त है पांढुरना की जमीन 
कृषक रविन्द्र चौधरी ने बताया कि उन्होंने मुरमनुमा मिट्टी का सैंपल लैब में भेजा। लैब से आई रिपोर्ट में पता चला कि इस पथरिली जमीन में काली जमीन की अपेक्षा अधिक घटक तत्व है। यदि सिंचाई और खाद की व्यापक व्यवस्था हो तो यहां अनार की अच्छी खेती हो सकती है। इसके साथ एक पक्ष भी यह भी है कि अन्य फसलों में एक अरसे बाद रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए उद्यानिकी के क्षेत्र में भी फसलचक्र का पालन करना चाहिए।

मेहनत तारीफ के काबिल दोनों के प्रयोग को सरकारी विभाग भी सराह रहे हैं। उद्यानिकी विभाग के किशोर गजभिये कहते हैं कि में प्रयोगों को हमेंषा सफलता मिलती रही है। फसलचक्र का पालन करना चाहिए। इन किसान परिवार की मेहनत तारीफ के काबिल है। किसानों को इस तरह की खेती देखकर प्रेरणा लेनी चाहिए।