मोदी साहेब = मनमोहन-2 की गोल्ड मोनेटाईजेशन स्कीम एक कपट है, और सोना धारको को ठगने के लिए गढ़ी गयी है ——- यह दावा कि इस स्कीम से सोने के आयात में कमी आएगी झूठी बात है तथा आगे चलकर एक बड़ी धोखाधड़ी साबित होगी ।
लेकिन मोदी साहेब=मनमोहन-2 के सभी अंधभक्त, मतदाता और समर्थक यह सिद्ध करने में जुटे हुए है कि इस स्कीम से आयात में कमी आएगी ।
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मान लीजिये कि कोई मंदिर या व्यक्ति A 1000 किलो सोना इस स्कीम के तहत SBI में जमा करता है ।
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SBI इस सोने पर 1% सालाना की दर से 5 वर्ष पश्चात 1060 किलो सोना देने का वादा करता है ।
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लेकिन तथ्य यह है कि सोना मोदी साहेब के अंधभक्तो के खेतो में नही उगता ।
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अत: 5 वर्ष बाद या तो सरकार टाट उलट देगी या भुगतान के लिए आयात करेगी ।
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तो किस तरह यह स्कीम दीर्घकालीन स्थिति में आयात में कमी लाएगी ??
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यह योजना अल्पावधि के लिए आयात में कमी ला सकती है, किन्तु दीर्घावधि में या तो आयात और भी ज्यादा बढ़ेगा या फिर सरकार हाथ खड़े कर देगी ।
कुछ वास्तविक आंकड़े
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भारत ने पिछले 12 महीनो में 1000 टन सोने का आयात किया है, तथा भारत के मंदिरों समेत निजी हाथों में लगभग 20,000 टन सोना है । यह आंकड़े अनुमान पर आधारित है क्योंकि अधिकृत और वास्तविक आंकड़े किसी के पास नहीं है, अत: हमें अनुमानित आंकड़ो का ही प्रयोग करना होगा ।
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मान लीजिये कि 1000 टन सोना बेंको में जमा किया जाता है तो स्कीम पिट जायेगी और आयात में कोई कमी नही आएगी ।
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मान लीजिये कि इस स्कीम के तहत 10000 टन सोना जमा किया जाता है । ऐसा हो सकता है, क्योंकि मोदी और उनके अधिकारी मंदिरों के ट्रस्टियों को सोना जमा कराने के लिए धमका रहे है ।
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तब 5 वर्ष बाद सरकार को 10600 टन सोना चुकाना होगा ।
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ऐसी स्थिति में सरकार को 600 टन का आयात करना पड़ेगा !!! या सरकार मंदिरों से कहेगी कि, ‘माफ़ कीजिये पर अभी हमारे पास आपको देने के लिए प्रयाप्त कोष नही है, अत: कृपया आप अपने सोने को अगले 10 वर्ष के लिए हमारे पास फिर से जमा कर दीजिये, इसके एवज में हम आपको 1% की जगह 2% ब्याज देंगे’ ।
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इस तरह बिना किसी जादू के ही मंदिरों में पड़ा सारा सोना लेमिनेटेड सर्टिफिकेट्स में बदल जाएगा ।
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इसके अलावा मोदी=मनमोहन-2 FDI से आये निवेश की पूँजी, उस पर कमाए गए मुनाफे, उसके ब्याज आदि के पुनर्भुगतान की गारंटी के रूप में इस सोने को गिरवी रखने जा रहे है । अत: यदि हमारा निर्यात आयात के मुकाबले तेजी से नही बढ़ता है तो यह सभी सोना विदेशी कर्जे का ब्याज, FDI नेवेशित पूँजी और उसके मुनाफे को चुकाने में ही चुक जाएगा । अत: सरकार के पास मंदिरों को चुकाने के लिए मुद्दत सोना भी नही रहेगा ब्याज वगेरह को तो भूल ही जाइये ।
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समाधान :
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समस्या यह है कि हम बहुत प्रकार की वस्तुएं जैसे ऑडी कार वगेरह बेतहाशा आयात कर रहे है, जिससे गैर जरुरी आयात का बोझ हम पर बढ़ रहा है । सरकार को इन्हें आयात करने के लिए आयातको को डॉलर देना बंद करना चाहिए । यदि कोई आयात करना चाहता है, तो उसे चाहिए कि वह मुक्त बाजार से अपने लिए डॉलर की व्यस्था करे । इसी तरह यदि कोई व्यक्ति सोने का आयात करे तो इस आयात का स्वागत है, किन्तु आयात के लिए डॉलर जुटाने का भार अमुक व्यक्ति पर ही रहना चाहिए, सरकार पर नही । इससे सरकार पर पड़ने वाले डॉलर के बोझ में कमी आएगी ।
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इसके अलावा जो कोई आयात करता है, उसे आयात को व्यावसायिक खर्चो के रूप में दिखा कर आयकर में छूट प्राप्त करने की अनुमति नही दी जानी चाहिए ।
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और अंत में आखिर हम ऑडी आयात क्यों कर रहे है, क्योंकि हम ऑडी जैसी कार देश में बना नही पा रहे है !! अत: हमें देश में जूरी सिस्टम, राईट टू रिकाल शिक्षा अधिकारी, राईट टू रिकाल पब्लिक प्रोसिक्यूटर, राईट टू रिकाल पुलिस प्रमुख, राईट टू रिकाल प्रदुषण बोर्ड अध्यक्ष, राईट टू रिकाल श्रम आयुक्त, वेल्थ टेक्स और टी सी पी आदि कानूनों की जरुरत है ताकि भारत में भारत की स्वदेशी इकाइयों को सरंक्षण मिले और तकनीकी औद्योगिक विकास हो ।
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लेकिन इन कानूनों को गेजेट में प्रकाशित करने की मांग करने की जगह मोदी साहेब के अंधभक्त इस कपटपूर्ण गोल्ड स्कीम का समर्थन कर रहे है, जिसे सिर्फ देश भर का सोना खींचने के लिए लांच किया गया है। इस लिहाज से मोदी-अंधभक्त मनमोहन के समर्थको से भी ज्यादा गए गुजरे है । क्योंकि जब मनमोहन ने यह गोल्ड मोनेटाईजेशन स्कीम लांच की थी तो मनमोहन समर्थको ने इस स्कीम का समर्थन नही किया था। जबकि मोदी साहेब के अंधभक्त इस स्कीम के समर्थन में खंबो से छज्जो तक छलांगे लगा रहे है जो कि मौलिक रूप से मनमोहन की ही स्कीम है ।
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प्रस्तावित समाधान
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1. कृपया सभी नागरिको और मंदिरो को यह जानकारी दें कि वे इस स्कीम के जाल में न फंसे ।
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2. हमारी स्थानीय औद्योगिक इकाइयों की क्षमता सुधारने के लिए आवश्यक राईट टू रिकाल, ज्यूरी सिस्टम, वेल्थ टेक्स और टी सी पी क़ानून ड्राफ्ट के बारे में अधिक से अधिक नागरिको तक जानकारी पहुंचाए, ताकि हमारा निर्यात बढ़ सके ।
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