सोशल मीडिया पर भले ही चीनी लाइटों के बहिष्कार की मांग उठ रही है लेकिन जबलपुर के रांझी में बन रही झालरों (लाइटिंग) ने चीनी रोशनी को फेल कर दिया है। चाइनीज रोशनी से ज्यादा टिकाऊ और कम बिजली खपत की इन झालरों ने चार सालों में चीनी रोशनी का व्यापार ठंडा कर दिया है। यही कारण है कि देशी रोशनी का सालाना कारोबार सवा करोड़ के आंकड़े को पार कर चुका है।
जबलपुर संभाग की बात करें तो दशहरे-दीपावली के सीजन में चार साल पहले तक यहां चीनी लाइटों का सालाना कारोबार करीब 5 से 7 करोड़ रुपए का था जो अब घटकर 2-3 करोड़ रुपए तक रह गया है। उम्मीद है कि अगले दो-तीन सालों में दोनों का कारोबार बराबरी के स्तर पर आ जाएगा।
रांझी मानेगांव में चार साल पहले कृष्णा गुप्ता (अब स्वर्गीय) ने सबसे पहले देशी झालर बनाना शुरू की। इसके लिए दिल्ली से अलग-अलग सामान लाए। इलेक्ट्रिशियन कृष्णा ने देशी लाइट के लिए कई तरह के प्रयोग किए। लाइट महंगी होने के कारण पहले नहीं चली। बाद में उसे टिकाऊ बनाया तो डिमांड बढ़ती गई। उनके बेटे कार्तिक गुप्ता के अनुसार पिता के काम को बढ़ता देखकर अब रांझी में ही आधा दर्जन से ज्यादा व्यापारी इस क्षेत्र में आ गए हैं। सैकड़ों घरों में ठेके पर लाइट बनाई जा रही है।
चीनी की तुलना में देशी लाइट
-चाइनीज लाइट की गारंटी नहीं होती। देशी लाइट तीन-चार सीजन तक चल जाती है। -चीनी लाइट में एक बल्ब खराब हो तो पूरी लाइट खराब हो जाती है। देशी लाइट में खराब बल्ब बदला जा सकता है। – चाइनीज लाइट की वायरिंग कमजोर होती है। इसके टूटने, फाल्ट का खतरा ज्यादा। देशी लाइट की वायरिंग बेहतर। -24 बल्बों की चाइनीज लाइट में बिजली खपत देशी के मुकाबले तीन गुना तक ज्यादा है। -24 बल्बों की चीनी लाइट 40 रुपए की है तो देशी लाइट लगभग 70 रुपए की है। लेकिन टिकाऊ चार गुना है।
प्रदेश में बढ़ी डिमांड
शहर की दुकानों में देशी लाइट डिमांड में आ गई है। लोग चाइना का माल सस्ता लेने की बजाए देशी लाइट खरीदना पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह रखरखाव में भी ये चाइनीज लाइट से बेहतर है। चलती ज्यादा हैं। थोक विक्रेता प्रशांत केशरवानी ने बताया कि पिछले दो साल से चाइना लाइट का बाजार मंदा हो गया है। जल्द खराब होने के कारण लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। हर साल कोई सजावट में पैसा नहीं खर्च करना चाहता। देशी लाइट टिकाऊ होने के कारण डिमांड संभाग के कई जिलों के अलावा इंदौर तक भेजी जा रही है।