राजस्थान के ग्राम खड़ब के ढाणी बामणा वाली के सत्यनारायण यादव उनकी धर्मपत्नी सजना यादव ग्रामीण क्षेत्र में सीप मोती पालन की खेती कर स्वरोजगार के क्षेत्र को बढावा दे रहे है। इसके लिए उन्होंने आईसीएआर भुवनेश्वर उड़ीसा में 15 दिन के ट्रेनिंग के बाद अपनी ढाणी में स्वरोजगार के लिए सीप मोती की खेती करने लगे। उन्होंने ट्रेनिंग के बाद अपने घर में ही मात्र 10 हजार रुपए की लागत से इसकी शुरूआत की। जिससे आज वो प्रति माह 20-25 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त कर लेते है। जानें कैसे होती है ये खेती…
सत्यनारायण यादव से आसपास के राज्यों से आसाम, मध्यप्रदेश, जम्मू, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि राज्यों के लोग विद्यार्थी ट्रेनिंग के लिए आते है। अब तक वो 150 विद्यार्थियों को ट्रेनिंग दे चुके है। उन्होंने बताया कि मोती पालन के लिए पानी का हॉज बनाया जाता है। सर्जरी के लिए सर्जिकल टूल्स, डाइट (ठप्पा) सीप के लिए भोजन तथा सप्ताह में केवल एक दो बार ही संभालना पड़ता है।
मोती क्या होता है
प्राचीन काल से ही मोती का उपयोग अलग-अलग तरह से किया जाता है। मोती एक प्राकृतिक रत्न है जो सीप में पैदा होता है। भारतीय बाजारो में इसकी मांग को बढ़ता देख अंतर्राष्ट्रीय बाजारो से इसकी आपूर्ति की जाती है। प्राकृतिक रूप से एक मोती का निर्माण तब होता है जब एक बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के अंदर भीतर प्रवेश कर जाते है या अंदर डाले जाते है और सीप उन्हें बाहर नहीं निकाल पाता जिसकी वजह से सीप को चुभन पैदा होती है इस चुभन से बचने के लिए सीप अपने से रस (लार जैसा लिक्विड) स्राव करती है। जो इस कीट या रेत के कण पर जमा हो जाती है जो की चमकदार होती है। इस प्रकार उस कण या रेत पर कई परत जमा होती रहती है इसी आसान तरीके को प्राकृतिक मोती उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। और यह कैलशियम कार्बोनेट, जैविक पदार्थों पानी से बना होता है।
इस तरह की जाती है खेती
खेती शुरू करने के लिए पहले तालाब या हॉज में सींपो को इकट्ठा करना होता है इसके बाद छोटी सी सीप में शल्य क्रिया के उपरांत इसके भीतर 4 से 6mm व्यास वाले साधारण डिजाइनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध, ओम, स्वास्तिका वाली आकृतियां डाली जाती है फिर सीप को बंद किया जाता है। लगभग 8 से 10 माह के बाद सीप को चीर कर डिजाइनर मोती निकाल लिया जाता है। जिंदा सीप से मोती प्राप्त किया जाता है तथा प्राप्त करने के बाद भी वो महत्वपूर्ण रहती है जिससे गमले, गुलदस्ते, मुख्य द्वार लटकाने वाली सजावटी झूमर, स्टैंड, डिजाइनिंग दीपक आदि तैयार करते है तथा इसके कवर को आयुर्वेदिक उपयोग के लिए बाजार में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। जिससे इसका पाउडर तैयार किया जाता है जो काफी कीमती होता है।
लोगों को कर रहे जागरुक
सत्यनारायण यादव ने बताया कि सीप को केरल, गुजरात, गंगाजी, हरिद्वार जैसी जगहों से लाकर इनका पालन करते है अभी यहां तीन प्रजातियों की खेती की जा रही है जिसमें लेकीलेन्डेन्स मार्गीनेलीस, लेमीहेन्डैन्स कोरियन्स और पेरेसिया कॉरूगाटा जैसी प्रजातियों की खेती की जा रही है।
सत्यनारायण यादव ने बताया कि नारेहड़ा सहायक अधिकारी कार्यालय से सुपरवाइजर राजकुमार रमेश मीणा ने सीप मोती पालन की खेती देखकर लोगो को कम आमदनी में ज्यादा मुनाफा के लिए सीप की खेती के लिए जागरूक कर रहे है। जिससे आसपास के लोग सत्यनारायण यादव से आकर जानकारी प्राप्त कर रहे है।