भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट’ के लिए प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट

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भारत के नागरिको,
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यदि आप हिन्दू धर्म के प्रशासन एवं मंदिरो के प्रबंधन को सशक्त बनाना चाहते है, तो अपने सांसद को एस.एम.एस. द्वारा ये आदेश भेजे :
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माननीय सांसद मैं आपको आदेश करता हूँ कि, इस क़ानून को गैजेट में प्रकाशित किया जाए। मतदाता संख्या : ######

Right to Recall (22)
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प्रिय सांसद/विधायक,
अगर आपको एस.एम.एस. के द्वारा यू.आर.एल. मिला है तो उसे वोटर का आदेश माना जाये जिसने यह मैसेज भेजा है न कि जिसने ये लेख लिखा है।
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ये अधिनियम तब से लागू होगा जब इस ड्राफ्ट को प्रधानमंत्री राजपत्र में प्रकाशित करेंगे। यह ड्राफ्ट भारत के विभिन्न सम्प्रदायों को प्रबंधित करने से सम्बंधित है।

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हमारे विचार से, प्रधान मंत्री को सर्वप्रथम इसे संसद में पास कराना होगा। यह ड्राफ्ट जटिल (पेचीदा) है, क्योंकि जबकि हम मंदिरों पर व्यक्तियों के एक खास समूह के नियंत्रण (कंट्रोल) की जगह लोकतान्त्रिक नियंत्रण (कंट्रोल) लाने का प्रस्ताव रख रहे हैं, फिर भी ऐसा करने में किसी भी प्रकार के सरकारी बल अथवा कर-प्रलोभन (टैक्स की छूट का लालच) या कोई अन्य प्रलोभन देने का प्रस्ताव हम नहीं कर रहे।
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हमारे विचार से यह बदलाव भक्तों को समझा कर लाया जा सकता है, ताकि हरेक संप्रदाय के चेले (अनुयायी) कुलीनतंत्र (खास व्यक्तियों के हाथों में व्यवस्था का केंद्रीकरण) छोड़कर लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनाएं। साथ हीं यह प्रस्तावित अधिनियम सिर्फ भारतीय सम्प्रदायों पर हीं लागू होगा, जिसमें सिक्ख शामिल नहीं हैं। सिक्ख धर्म भारतीय है, किन्तु इसके लिए पहले से ही सिक्ख गुरुदवारा प्रबंधक कमिटी (SGPC) अधिनियम लागू है। इसलिए इस के लिए किसी नए अधिनियम की जरूरत नहीं है। क्योंकि क्रिश्चियन और इस्लाम मूल रूप से गैर हिन्दू हैं, इसलिए उनके लिए व्यवस्था किसी अन्य आज के अधिनियम या नए अधिनियम द्वारा होगी।
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यहाँ प्रस्तावित सिस्टम में बड़े आकार की जूरी भी है, जैसे- 1500 से भी अधिक सदस्यों वाली जूरी। क्या इतने बड़े आकार की जूरी संभव है ? बिलकुल ! यदि 600 ई. पू. में ग्रीस में 1500 सदस्यों की जूरी हो सकती थी तो आज के भारत में तो उस समय के ग्रीस से काफी अच्छी तकनीक है, इसलिए आज के भारत में भी यह संभव है। आज के भारत में आम हो चुके भ्रष्टाचार को मिटाने तथा जजों के बीच सांठ-गाँठ रोकने के लिए इस प्रकार की बड़े आकार की जूरी आवश्यक है।
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यहाँ तक कि अधिकांश छोटे-छोटे मुकदमों के लिए 10- 15 सदस्यों की छोटी जूरी भी काफी है। लेकिन भारत में लोगों को भय है कि छोटे आकार की जूरी को रिश्वत देना या जोर जबरदस्ती करना अथवा दोनों हीं संभव है, यदि दांव बड़ा हो तथा एक या दोनों पक्ष धनवान तथा शक्तिशाली हों। इसलिए इस प्रकार के मामलों (जहाँ पक्ष धनवान या शक्तिशाली हों या दांव बड़ा हो) के लिए 100-1500 तक की सदस्य संख्या वाली बड़ी जूरी का प्रयोग होना चाहिए। ग्रीस में सुनवाई के बाद सजा के लिए जूरी के सदस्य गोपनीय मतदान करते थे। आज के समय में अधिकांश देशों में, जूरी सदस्यों का मत कोर्ट में सबके सामने होता है, किन्तु रिकॉर्ड में नहीं रखा जाता। हमने जूरी सुनवाई के मामले में खुले मतदान का प्रस्ताव रखा है। लेकिन मत तथा नाम रिकॉर्ड में नहीं रखे जायेंगे।
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भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट (BSDPT) के लिए ड्राफ्ट :
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==========ड्राफ्ट का प्रारम्भ==========
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[अधिकारी, जिसके पद का नाम कोष्ठ [ ] में दिया गया है, वह अधिकारी होगा जो कि सम्बंधित प्रक्रिया को लागू करेगा]

[परिभाषाएं]

  • प्रस्तुत अधिनियम उन ट्रस्टों के लिए लागू होगा जो कि हिन्दूओं, बौद्धों, अथवा जैनों के धार्मिक जगह के मालिक हों या उन पर मालिकी रखने की इच्छा प्रकट करते हैं, किन्तु यह सिखों, इस्लाम, क्रिश्चियन या पारसी धर्म स्थान के मालिकी के लिए लागू नहीं होगा। इस अधिनियम में सभी भारतीय धर्म तथा संप्रदाय आते हैं, जैसे- जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव, आर्य समाज आदि। सिख पंथ भी एक भारतीय संप्रदाय है लेकिन यह पहले से ही सीख गुरुदुवारा प्रबंधक कमिटी (SGPC) अधिनियम में आता है, इसलिए सिख पंथ को इस अधिनियम के सीमा से बाहर रखा गया है।
  • ‘ट्रस्ट’ शब्द का तात्पर्य धार्मिक ट्रस्ट से है, जैसा कि ऊपर वाले खंड में भी परिभाषित किया गया है।
  • ‘ट्रस्टी’ शब्द का मतलब आज के ट्रस्टों में ट्रस्टी के ही समान है।
  • ‘अध्यक्ष’ का मतलब ट्रस्टियों का प्रमुख से है।
  • ‘सकता है’ (May) शब्द का मतलब है ‘सम्भावना है’ अथवा ‘जरूरी नही है।’ तथा साफ तौर पर इसका मतलब है ‘कोई बाध्यता नही है।’
  • NR तात्पर्य है राष्ट्रीय रजिस्ट्रार तथा DR का तात्पर्य है जिला रजिस्ट्रार, जिन्हें कि आगे परिभाषित किया गया है।

(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा-1: मुख्य राष्ट्रीय/ जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति
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1.1 [ प्रधानमंत्री ] प्रधान मंत्री एक अधिकारी की नियुक्ति करेगा जो कि भारतीय संप्रदाय ट्रस्टों का राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NRBST) या राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) के नाम से जाना जायेगा। राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) को बदलने का अधिकार सम्पूर्ण भारत के सभी हिन्दू मतदाताओं को होगा (जिनमें सिख मतदाता भी शामिल होंगे, चूँकि सिख भी सदियों से गुरुद्वारों के अलावा हिन्दू मंदिरों में भी जाते रहे है, मंदिरों को दान देते रहे हैं, तथा मंदिरों की सुरक्षा के लिए काफी काम भी किया है।)
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1.2 [ प्रधानमंत्री ] राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) को बदलने की प्रक्रिया प्रधान मंत्री को बदलने की प्रक्रिया (राईट टू रिकॉल-प्रधानमंत्री) के समान होगी। आज के राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) के बदलने के लिए किसी उम्मीदवार को कम से कम 20 करोड़ मतदाताओं की स्वीकृति प्राप्त करनी होगी, जो कि आज के राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) को प्राप्त स्वीकृतियों की कुल संख्या से कम से कम 1 करोड़ अधिक हो। इसे लागू करने के लिए प्रधानमंत्री राईट टू रिकॉल-प्रधानमंत्री के ड्राफ्ट को आधार बना सकता है।
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1.3 [ मुख्य मंत्री ] मुख्य मंत्री एक अधिकारी को नौकरी देगा जिसे भारतीय संप्रदाय ट्रस्टों के जिला रजिस्ट्रार (DRBST) या जिला रजिस्ट्रार (DR) के नाम से जाना जायेगा। इसे बदलने का अधिकार (राईट टू रिकॉल-जिला रजिस्ट्रार) सम्बंधित जिले के सभी हिन्दू मतदाताओं (जिनमें सिख भी शामिल हैं) को होगा। मुख्य मंत्री चाहे तो एक जिला रजिस्ट्रार (DRBST) को 1 से अधिक जिलों के लिए भी रख सकता है।
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1.4 [ मुख्य मंत्री ] जिला रजिस्ट्रार (DRBST) को बदलने की प्रक्रिया जिला शिक्षा अधिकारी को बदलने की प्रक्रिया (राईट टू रिकॉल-जिला शिक्षा अधिकारी) के समान होगी। जिला अधिकारी (DR) को बदलने के लिए जरुरी होगा कि किसी उम्मीदवार को जिले के कम से कम 51% मतदाताओं की स्वीकृति मिले जो कि आज के जिला रजिस्ट्रार (DR) को मिले स्वीकृतियों की कुल संख्या से कम से कम 5% अधिक हों । जिला रजिस्ट्रार (DR) को बदलने का अधिकार (राईट टू रिकॉल-जिला रजिस्रार) को लागू करने के लिए मुख्य मंत्री जिला शिक्षा अधिकारी को बदलने (राईट टू रिकॉल-जिला शिक्षा अधिकारी) के ड्राफ्ट को आधार बना सकते हैं।
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धारा-2 : ट्रस्टों के नाम, उनकी संपत्ति, तथा ट्रस्टियों के नाम आदि को इंटरनेट पर सार्वजनिक करना एवं ट्रस्टियों सम्बन्धी विवादों पर निर्णय (फैसला)
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2.1 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] जिला रजिस्ट्रार (DR) अपने जिले में हरेक ट्रस्ट का नाम, उसकी क्रम संख्या, ट्रस्ट विलेख (बिक्री-खरीद का दस्तावेज), सभी ट्रस्टियों के नाम तथा उनकी ट्रस्टी संख्या, तथा बाद में होने वाले परिवर्तनों की पूरी जानकारी ट्रस्ट के लिए बनाये गए जिला वेबसाइट पर रखेगा। यह सूचना राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) भी ट्रस्ट के राष्ट्रीय वेबसाइट पर डालेगा।
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2.2 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] शुरू में जिला रजिस्ट्रार (DR) ट्रस्टी संख्या जारी करेगा। आगे चलकर, राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) के द्वारा जारी की गयी ट्रस्टी संख्या को हीं जिला रजिस्ट्रार (DR) भी उपयोग करेगा। यदि ट्रस्टी चाहे तो अपनी आधार संख्या को ही ट्रस्टी संख्या के रूप में उपयोग कर सकता है। ऐसी स्थिति में जिला रजिस्ट्रार (DR) भी उसके आधार संख्या को ही उपयोग करेगा।
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2.3 [ ट्रस्टी, जिला रजिस्ट्रार (DR) ] सभी लिखित कार्यों के लिए ट्रस्टी को जिला रजिस्ट्रार (DR) के पास अथवा जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा ट्रस्टों की व्यवस्था व कामकाज के लिए निश्चित कार्यालय में जाना होगा। यदि ट्रस्टी उसी जिले में रहता है जिसमें कि ट्रस्ट का पंजीकृत कार्यालय भी है, तो वह उसी जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय जायेगा। यदि ट्रस्टी किसी अन्य जिले में रहता है, तो वह अपने निवास वाले जिले के जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय अथवा जिस जिले में वह ट्रस्ट पंजीकृत है वहां के जिला रजिस्ट्रार (DR) कार्यालय में जा सकता है।
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2.4 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ]
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( 2.4.1 ) जिला रजिस्ट्रार (DR) हरेक ट्रस्ट से 1000 रूपये प्रति वर्ष का शुल्क तथा हरेक ट्रस्टी / अध्यक्ष से प्रति ट्रस्ट जितने ट्रस्टों का वह ट्रस्टी / अध्यक्ष है, 1000 रूपये प्रति वर्ष का शुल्क लेगा।
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( 2.4.2 ) यदि ट्रस्टी जिस जिले में ट्रस्ट पंजीकृत है उससे अलग किसी अन्य जिले में रहता है तो उसे प्रतिवर्ष 1000 रूपये प्रति ट्रस्ट जिनका कि वह सदस्य है तथा जो उसके निवास वाले जिले से बाहर है, अधिक देना होगा।
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2.5 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] इस अधिनियम के उपर्युक्त तथा समस्त खण्डों में बताये गए भारतीय सम्प्रदायों से प्राप्त की गयी रकम का आधा भाग जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) को भेजा जायेगा।
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2.6 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] अध्यक्ष तथा ट्रस्टी अपनी जानकारी के अनुसार जहाँ तक संभव हो, ट्रस्ट के मालिकी (स्वामित्व) में जितनी संपत्ति है उसका ब्यौरा (विस्तृत जानकारी) जिला रजिस्ट्रार को देंगे। इस सूची में ट्रस्ट के मालिकी वाली भूमि की स्थिति, इमारतों का क्षेत्र, नकदी, एफ.डी, शेयर, बांड, सोना, चांदी, फर्नीचर, किसी को दिया गया तथा किसी से लिया गया कर्ज या संपत्ति, के साथ साथ जिस इलाके में भूमि या इमारत स्थित है उसका सिर्कल दर (उर्फ़ जंत्री) शामिल होंगे।
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2.7 [ राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) , जिला रजिस्ट्रार (DR) ] राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) हरेक जिला रजिस्ट्रार (DR) से कहेगा कि वह सम्पूर्ण भारत के सभी ट्रस्टों की सूची में शामिल हरेक संपत्ति का अपने जिले में सिर्कल दर (चक्रीय दर) प्राप्त करे। ट्रस्टी तथा जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा दिए गए दो अनुमानित मूल्यों में से अधिकतम मूल्य हीं जिला रजिस्ट्रार (NR) द्वारा मान्य होगा।
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2.8 [ राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR), जिला रजिस्ट्रार (DR) ] राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) तथा हरेक जिला रजिस्ट्रार (DR) जिले के ट्रस्टों की संपत्ति के अनुमान के मूल्यों की सूची तैयार करेंगे। यदि राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) तथा जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा बताये गए अनुमान के मूल्यों में अंतर पाया जाता है तो ट्रस्ट की संपत्ति को पता करने के लिए दोनों अनुमान किये गए मूल्यों में से अधिकतम (सबसे ज्यादा) मूल्य हीं लिया जायेगा ।
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(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा-3: ट्रस्टी सम्बन्धी विवादों का निबटारा
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3.1 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , शिकायतकर्ता ] यदि कोई व्यक्ति दावा करता है कि उसका नाम गलती से ट्रस्टियों की सूची में शामिल हो गया है, तो वह जिला रजिस्ट्रार (DR) के सामने प्रस्तुत होकर अपना नाम उस सूची से हटवा सकता है। यदि ट्रस्टी किसी अन्य जिले में निवास करता है तो वह जिला रजिस्ट्रार (DR) के सामने उपस्थित होकर सार्वजनिक रूप से अपना नाम हटाने की मांग कर सकता है। नाम हटाने के लिए उसके द्वारा दी गयी अर्जी इंटरनेट पर राखी जायेगी, तथा 3 महीने के बाद उसका नाम हटा दिया जायेगा, यदि इस समय में वह यह दावा न करे कि यह अर्जी फर्जी था।
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3.2 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , शिकायतकर्ता ] यदि कोई व्यक्ति दावा करता है की वह किसी ट्रस्ट का ट्रस्टी है, किन्तु उसके नाम का उल्लेख ट्रस्टी के तौर पर नही किया गया है, तो इस कानून के पारित (पास) होने के 90 दिनों के अंदर वह जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय जायेगा तथा अपना दावा पेश करेगा। 5000 रूपये प्रति ट्रस्ट, जितने ट्रस्टों के लिए ऐसा दावा प्रस्तुत किया गया, जमा करा कर जिला रजिस्ट्रार (DR) उसके दावे को नेट पर रखेगा। 90 दिन बीतने के बाद यह शुल्क हर 1 महीने की देर पर 1000 रूपये की दर से बढ़ेगा। इस कानून के पारित होने के 10 साल के बाद कोई दावा स्वीकार नहीं किया जायेगा |
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3.3 [ जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी ] यदि दावा प्राप्त करने के 30 दिनों के अंदर सभी ट्रस्टी जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय में स्वयं आकर दावा स्वीकार करते हैं, तो दावाकर्ता का नाम ट्रस्टी के तौर पर दर्ज कर लिया जायेगा। यदि किसी ट्रस्टी ने इसे स्वीकार नही किया तो उसका मत नहीं में माना जायेगा। ऐसी स्थिति में जिस जिले में ट्रस्ट है उसी जिले से जिला रजिस्ट्रार (DR) एक जूरी का निर्माण करेगा।
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3.4 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] ट्रस्टी के मामले पर निर्णय (फैसला) लेने के लिए बनायी गयी जूरी का आकार इस बात पर निर्भर करेगा कि सम्पूर्ण भारत में ट्रस्ट की कितनी संपत्ति है। जिला रजिस्ट्रार (DR) जिले की सीमा के अंदर निवास करने वाले 40-55 साल की उम्र के हिन्दू मतदाताओं में से क्रम-रहित रूप से निम्नलिखित निर्देशों के अनुसार जूरी का निर्माण करेगा- 15 जूरी सदस्य + 1 और जूरी सदस्य हरेक एक करोड़ की संपत्ति पर, जहाँ जूरी सदस्यों की अधिकतम संख्या 1500 होगी।
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3.5 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , जूरी ] जूरी सदस्य उस व्यक्ति की बात को सुनेंगे जो ट्रस्टी होने का दावा कर रहा है। साथ हीं वे उन ट्रस्टियों की बात भी सुनेंगे जो उस व्यक्ति के खिलाफ बोलना चाहते हैं। यह सुनवाई कम से कम 67% जूरी सदस्यों की उपस्थिति में होगी। हरेक पक्ष बारी-बारी से 1-1 घंटे एक दूसरे के बाद बोलेंगे। इस समय वे अपने पक्ष में गवाह भी प्रस्तुत कर सकते हैं। जब 50% जूरी सदस्य दोनों पक्षों से समाप्त करने को कहेंगे, तो सुनवाई 2 दिनों के बाद समाप्त हो जाएगी | लेकिन 2 दिनों के बाद, यदि 50% से अधिक जूरी सदस्य इसे जारी रखने का निर्णय (फैसला) लेते हैं, तो सुनवाई जारी रहेगी ।
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3.6 [ जिला रजिस्ट्रार (DR), जूरी] यदि ट्रस्ट की संपत्ति का राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) द्वारा हिसाब किया गया मूल्य 200 करोड़ से ऊपर है, तथा 50% से अधिक जूरी सदस्यों ने किसी खास गवाह / ट्रस्टी का सार्वजनिक रूप से नार्को टेस्ट कराये जाने की मांग की, तथा यदि वह गवाह भी इसके लिए राजी है, तो जिला रजिस्ट्रार (DR) फोरेंसिक विशेषज्ञ का प्रबंध करेगा तथा उस गवाह का नारको टेस्ट सार्वजनिक रूप से करायेगा। बिना गवाह की सहमति के उसका नार्को टेस्ट नही कराया जायेगा। जिला रजिस्ट्रार (DR) नार्को टेस्ट से पूर्व 15 जूरी सदस्यों का क्रम-रहित रूप से चयन करेगा।
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हरेक जूरी सदस्य नार्को टेस्ट के दौरान गवाह से पूछने के लिए सार्वजनिक रूप से 2 प्रश्न प्रस्तुत करेंगे। फिर सभी जूरी सदस्य उन प्रश्नों पर वोट देंगे। जिस जूरी सदस्य का प्रश्न चुना जायेगा उसे 1 और प्रश्न रखने की अनुमति मिलेगी, जिसपर फिर से सभी सदस्य वोट देंगे। इस तरीके से गवाह से पूछे जानेवाले प्रश्नो की सूची जिला रजिस्ट्रार (DR) तैयार करेगा |
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3.7 [जिला रजिस्ट्रार (DR), जूरी] सुनवाई के बाद हरेक जूरी सदस्य घोषणा करेगा कि व्यक्ति ट्रस्टी है या नही। यदि बहुमत में जूरी सदस्य इस बात से सहमत हैं कि व्यक्ति ट्रस्टी है, तो जिला रजिस्ट्रार (DR) उसके नाम की घोषणा ट्रस्टी के रूप में कर देगा। नहीं तो जिला रजिस्ट्रार (DR) यह घोषित करेगा कि वह व्यक्ति ट्रस्टी नही है।
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3.8 [जिला रजिस्ट्रार (DR)] जूरी सदस्य उस व्यक्ति पर जो कि ट्रस्टी होने का दावा कर रहा था, अथवा उस ट्रस्टी या ट्रस्टियों पर जो उसके दावे का समर्थन या विरोध कर रहे थे, आार्थिक दंड भी लगा सकते हैं, यदि बहुमत में जूरी सदस्य यह घोषणा करते हैं कि इनमें से कोई भी व्यक्ति जानबूझकर गलत सूचना दे रहा था। ऐसे मामले में जूरी सदस्य जिन ट्रस्टियों पर फाइन लगने वाला है, उन्हें प्रति ट्रस्टी 1 दिन का समय सुनवाई के लिए देंगे। फाइन के तौर पर 15000 से कम की कोई भी रकम + जिस व्यक्ति को झूठ बोलने का दोषी पाया गया उसकी कुल संपत्ति का 1-5% के बीच का कोई भी भाग होगा।
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3.9 [जिला रजिस्ट्रार (DR)] यदि हारनेवाला पक्ष आगे अपील करना चाहता है तो वह 15000 रूपये जमा कर सकता है, तथा जिला कलेक्टर राज्य के 3 जिलों को क्रम-रहित (यादृच्छिक) रूप से चुनेगा। हारनेवाला पक्ष उन जिलों के जिला रजिस्ट्रार (DR) के सामने अपनी अपील दायर कर सकता है। हरेक जिले का जिला रजिस्ट्रार (DR) 10,000 रूपये की एक और जमाराशि प्राप्त करने के बाद पहले बताई गयी जूरी के आकार की हीं एक जूरी का गठन करेगा। 2 जूरी का निर्णय अंतिम माना जायेगा।
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धारा-4: मतदाता सदस्यों की सूची बनाना तथा उसे इंटरनेट पर रखना
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4.1 [ जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी]
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(4.1.1) प्रस्तुत कानून के पारित (पास) होने के 6 माह के अंदर अध्यक्ष एवं हरेक ट्रस्टी स्वयं जिला रजिस्ट्रार (DR) के पास जाकर ट्रस्ट के सभी मतदाता सदस्यों की सूची, जो कि ट्रस्ट के दस्तावेजों तथा भविष्य के प्रस्तावों के अनुसार होगा, प्रस्तुत करेंगे।
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(4.1.2) हरेक सूची के पहले 1000 मतदाता सदस्यों के लिए जिला रजिस्ट्रार (DR) प्रति सदस्य 50 रूपये का शुल्क, तथा उससे आगे की संख्या पर 20 रूपये प्रति सदस्य का शुल्क लगाएगा।
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(4.1.3) ट्रस्टी जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय में स्वयं आकर इस सूची पर हस्ताक्षर करेंगे।
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(4.1.4) दो या दो से अधिक अथवा सभी ट्रस्टी मिलकर सम्मिलित रूप से एक हीं सूची दे सकते हैं या अलग-अलग सूची भी दे सकते हैं। उपर्युक्त शुल्क प्रति सूची लगाया जायेगा, इससे कोई मतलब नही कि कितने ट्रस्टियों ने उस सूची पर हस्ताक्षर किये हैं।
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4.2 [ ट्रस्टी ] सूची प्रस्तुत करते समय ट्रस्टी को हरेक मतदाता सदस्य के मत का मान (वजन) भी बताना होगा। अथवा ट्रस्टी को यह अवश्य कहना होगा कि “सभी सदस्यों के मतों का मान (वजन) बराबर है।” यदि मतों का वजन अलग-अलग है तो उनका योग 100 होना चाहिए। यह वजन दशमलव के अंकों में होना चाहिए, भिन्न में नही, तथा दशमलव के बाद अधिकतम 15 अंक होने चाहिए। यदि सभी वजनों का योग 100 नहीं हो रहा हो तो जिला रजिस्ट्रार (DR) प्रति सदस्य 50 रूपये का अतिरिक्त शुल्क लेकर वजनों (मानों) का आनुपातिक रूप से फिर से विभाजन (बंटवारा) सदस्यों के बीच करायेगा ताकि योग 100 हो जाये।
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4.3 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , ट्रस्टी ] मतदाता सदस्यों के पास एक चुनाव मतदाता संख्या होनी चाहिए। इंटरनेट पर दर्शाने के लिए केवल चुनाव मतदाता संख्या का उपयोग किया जायेगा।
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4.4 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , अध्यक्ष ] जिला रजिस्ट्रार (DR) ट्रस्ट पर प्रति वर्ष निम्नलिखित शुल्क लगाएगा-
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(i) 10 से कम मतदाता सदस्य- 500 रूपये प्रति मतदाता सदस्य प्रति वर्ष

(ii) 10-99 मतदाता सदस्य- 5000 रूपये + 50 रूपये प्रति मतदाता सदस्य प्रति वर्ष

(iii) 100-1000 मतदाता सदस्य- 10,000 रूपये + 20 रूपये प्रति मतदाता सदस्य प्रति वर्ष
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यह शुल्क सभी सदस्यों पर लागू होगा, न कि प्रति सूची के आधार पर।
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4.5 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] ट्रस्टियों द्वारा प्रस्तुत की गयी हरेक सूची को जिला रजिस्ट्रार (DR) जिला वेबसाइट पर रखेगा। यदि एक हीं सूची प्रस्तुत की गयी है जो सभी ट्रस्टियों द्वारा अनुमोदित (स्वीकृत) है, अथवा सभी ट्रस्टियों द्वारा अलग-अलग प्रस्तुत की गयी सभी सूचियों में मतदाता सदस्यों के नाम तथा उनके मतों का वजन (मान) एक सा हो, तो जिला रजिस्ट्रार (DR) कोई अतिरिक्त सूची तैयार नही करेगा। यदि विभिन्न ट्रस्टियों द्वारा प्रस्तुत की गयी सूचियों में मतदाता सदस्य और / अथवा उनके मतों के वजनों (मानों) में भिन्नता हो तो जिला रजिस्ट्रार (DR) हरेक ट्रस्ट के लिए नीचे बताये गयी अलग-अलग सूची तैयार करेगा
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(i) समान मतदाता सूची, जिसमे वे सारे नाम शामिल होंगे जो सभी सूचियों में समान रूप से हों।

(ii) संयुक्त सूची, जिसमें सभी सदस्यों के नाम होंगे जिनके मतों का वजन (मान) मध्यम हो, तथा सभी ट्रस्टियों द्वारा दिए गए मान होंगे।

(iii) वैसे मतदाता सदस्य जो आधे से अधिक ट्रस्टियों की सूची में शामिल हों तथा जिनके मत का मूल्य शून्य न हो।

4.6 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , मतदाता सदस्य ] यदि कोई मतदाता सदस्य दावा करता है कि वह एक मतदाता सदस्य नहीं है, तो वह जिला रजिस्ट्रार (DR) के सामने स्वयं आकर ‘नॉट मेंबर’ की अर्जी पर हस्ताक्षर कर सकता है। उसकी अर्जी वेबसाइट पर रखी जायेगी। तथा 30 दिनों के बाद उस ट्रस्ट की मतदाता सूची से उसका नाम हटा दिया जायेगा। उसका नाम हटाने के बाद उसके मत का वजन (मान) अन्य सभी सदस्यों के बीच आनुपातिक रूप से वितरित कर दिया जायेगा। तथा जिला रजिस्ट्रार (DR) फिर से नई मतदाता सूची ट्रस्ट की वेबसाइट पर रखेगा। हरेक नाम के हटने पर जिला रजिस्ट्रार (DR) ट्रस्ट पर 100 रूपये का शुल्क लगाएगा।
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4.7 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , मतदाता सदस्य ] यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि वह ट्रस्ट का मतदाता सदस्य है, किन्तु उसका नाम मतदाता सदस्यों की सूची में नही है, अथवा सूची में उसके मत का मूल्य (वजन) उचित से कम है, तब वह जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा ट्रस्ट के वेबसाइट पर मतदाता सदस्यों की सूची के रखे जाने के 90 दिनों के अंदर अपनी शिकायत जिला रजिस्ट्रार (DR) के सामने दर्ज करा सकता है। जिला रजिस्ट्रार (DR) उसकी इस शिकायत को जिला वेबसाइट पर रखेगा ; 90 दिन का समय बीत जाने पर यदि व्यक्ति शिकायत दर्ज करता है तो 100 रूपये प्रति माह की दर से अतिरिक्त शुल्क (अलग से फीस) लगेगा। 10 वर्ष का समय बीत जाने पर कोई नाम शामिल नही किया जायेगा।
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4.8 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] इस प्रकार के मामलों पर निर्णय के लिए जिला रजिस्ट्रार (DR) जिले की मतदाता सूची से 40-55 साल की उम्र के 15-1500 हिन्दू नागरिकों का क्रम-रहित (यादृच्छिक) रूप से चयन कर एक जूरी का गठन (निर्माण) करेगा। जूरी का आकार ट्रस्ट की संपत्ति पर निर्भर करता है, जो कि 15 जूरी सदस्य + 1 और जूरी सदस्य हरेक एक करोड़ की संपत्ति पर होगा।
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4.9 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , ट्रस्टी, जूरी सदस्य ] हरेक ट्रस्टी जूरी सदस्यों के सामने सदस्यों के नाम की सूची उनके मतों के वजन (मान) के साथ रखेगा। तथा जिला रजिस्ट्रार (DR) भी अपनी राय तथा जानकारी के आधार पर सूची देगा । साथ हीं जूरी सदस्य यह अनुमति देंगे कि कोई भी व्यक्ति अपनी ओर से मतदाता सदस्यों के नाम उनके मतों के वजन (मान) के साथ प्रस्तुत कर सकता है।
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4.10 [ जूरी सदस्य ] हरेक जूरी सदस्य हरेक सूची को 0-100 अंक देगा। यदि किसी सूची को जूरी सदस्य ने कोई अंक नही दिया तो उसे प्राप्त अंक शून्य मान लिया जायेगा। जिस सूची को सर्वाधिक अंक मिलेंगे उसे हीं अंतिम सूची माना जायेगा।
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4.11 [ जूरी सदस्य , जिला रजिस्ट्रार (DR) ] सूची को अंतिम रूप देने के बाद हर जूरी सदस्य 0 रूपये से लेकर ट्रस्ट की कुल संपत्ति के 1% तक की शुल्क रकम बताएगा । जिला रजिस्ट्रार (DR) जूरी सदस्यों द्वारा दिए गए शुल्क आंकड़ों के बीच के मूल्य को शुल्क के रूप में लेकर शुल्क का 50% सूची बनाने वाले व्यक्ति को बराबर-बराबर देगा और प्राप्त शुल्क का 50% जूरी सदस्यों के वेतन के लिए कोष में जायेगा ।
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4.12 [ मतदाता सदस्य, शिकायतकर्ता ] यदि कोई व्यक्ति मतदाता सदस्यों की सूची अथवा उनके मतों के वजन (मान) के विभाजन (बंटवारा) से संतुष्ट नही है तो वे जिला रजिस्ट्रार (DR) से अनुरोध कर सकते हैं कि वे 3 जिलों का क्रम-रहित (यादृच्छिक) रूप से चयन कर उन जिलों के जिला रजिस्ट्रार (DR) को उसकी शिकायत भेजें। प्रथम जिले में जिस आकार की जूरी का गठन (निर्माण) किया गया था उसी आकार की जूरी का गठन हरेक जिला रजिस्ट्रार (DR) 30 दिनों के अंदर करेगा। पहली सुनवाई में प्रस्तुत सूची पर हरेक जूरी सदस्य 0-100 अंक देगा। इस अपील में कोई नई सूची प्रस्तुत नहीं की जा सकती। तीनों जूरियों के द्वारा अधिकतम अंक प्राप्त करनेवाली सूची ही सभी जिला रजिस्ट्रार (DR) द्वारा अंतिम मानी जाएगी।
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4.13 [ जूरी सदस्य ] यदि जूरी सदस्यों को लगता है कि शिकायत व्यर्थ की थी तो वे 0 से लेकर शिकायतकर्ता की कुल संपत्ति का 1% तक फाइन लगा सकता है। जिस जिले में प्रथम सुनवाई हुई थी उसका जिला रजिस्ट्रार (DR) मध्यस्थ के रूप में फाइन लेकर उस रकम को प्रशासनिक खर्चों में लगा देगा।
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4.14 [जूरी सदस्य, जिला रजिस्ट्रार (DR)] सूची को अंतिम रूप देने के बाद हर जूरी सदस्य 0 रूपये से लेकर ट्रस्ट की कुल संपत्ति के 2% तक की शुल्क रकम बताएगा । जिला रजिस्ट्रार (DR) जूरी सदस्यों द्वारा दिए गए शुल्क आंकड़ों के बीच के मूल्य को शुल्क के रूप में लेकर शुल्क का 50% सूची बनाने वाले व्यक्ति को बराबर-बराबर देगा और प्राप्त शुल्क का 50% जूरी सदस्यों के वेतन के लिए कोष में जायेगा ।
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(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा-5: मतदाता सदस्यों की सूची को अंतिम रूप देने के बाद अध्यक्ष तथा ट्रस्टियों का बदलाव करना
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5.1 [ मतदाता सदस्य ] मतदाता सदस्य राइट टू रिकॉल की प्रक्रिया के द्वारा अध्यक्ष / ट्रस्टी को बदल सकते हैं। इस प्रक्रिया के अंतर्गत कोई भी सदस्य किसी भी दिन अपनी स्वीकृति दर्ज या रद्द करा सकता है।
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5.2 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] जो स्वीकृतियां दर्ज करायी जाएँगी वे जिला रजिस्ट्रार (DR) तथा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) की वेबसाइट पर आएँगी।
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5.3 [ उम्मीदवार ] कोई भी व्यक्ति जो अध्यक्ष या ट्रस्टी बनना चाहेगा, जिला रजिस्ट्रार (DR) के कार्यालय में ट्रस्ट की कुल संपत्ति का 1% के बराबर रकम का शुल्क जो कि कम से कम 2000 रूपये तथा अधिकतम 20000 रूपये हो सकता है, चुकाकर अपना नाम दर्ज करायेगा। उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी वहीँ से पेश करेगा जहाँ का वह पंजीकृत मतदाता होगा अथवा जहाँ वह ट्रस्ट पंजीकृत होगा। यदि जहाँ ट्रस्ट मौजूद है वहां से जिला रजिस्ट्रार (DR) कार्यालय अलग है तो अतिरिक्त शुल्क (अलग से फीस) (1000 रू. + ट्रस्ट की संपत्ति का 1%), जो कि 3000 रूपये से अधिक नही होगी, लागू होगा।
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5.4 [ मतदाता सदस्य ] एक मतदाता सदस्य अध्यक्ष के पद के लिए 5 उम्मीदवारों के नामों के लिए अपनी स्वीकृति तहसीलदार के कार्यालय में जाकर अपना पहचान पत्र दिखाकर दर्ज करा सकेगा। उसकी पसंद जिला रजिस्ट्रार (DR) तथा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) की वेबसाइट पर मतदाता सदस्य के वोटर आई.डी. नंबर के साथ रखी जाएँगी। जिला रजिस्ट्रार (DR) तथा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) चाहें तो एस.एम.एस / ए.टी.एम माध्यम भी इसके लिए निर्मित व उपलब्ध करा सकते हैं। सदस्य किसी भी दिन अपनी स्वीकृति रद्द कर सकेगा। स्वीकृति दर्ज अथवा रद्द करने के लिए शुल्क होगा जो कि 50 रू. +ट्रस्ट की कुल संपत्ति का 0.0001%, तथा अधिकतम 1000 रूपये। शुल्क के सम्बन्ध में जिला रजिस्ट्रार (DR) का निर्णय (फैसला) अंतिम होगा।
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5.5 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] यदि किसी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को प्राप्त स्वीकृतियों की कुल संख्या 50% या उससे अधिक हो जाये तथा यह वर्तमान अध्यक्ष को प्राप्त कुल स्वीकृतियों से 10% अधिक हो, तब जिला रजिस्ट्रार (DR) उसे नया अध्यक्ष नियुक्त करेगा। यहाँ मतदाता सदस्यों के मतों को दिए गए वजन (मान) को भी ध्यान में रखा जायेगा।
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5.6 [ मतदाता सदस्य ] यदि ट्रस्ट के विलेख / दस्तावेजों के अनुसार ट्रस्ट के ट्रस्टियों की संख्या अवश्य हीं N होनी चाहिए, तो एक मतदाता सदस्य उस संख्या के दोगुनी संख्या तक उम्मीदवारों के लिए अपनी स्वीकृति दर्ज करा सकते हैं। अध्यक्ष के पद के लिए 2N उम्मीदवारों का अनुमोदन मतदाता सदस्य तहसीलदार के कार्यालय जाकर तथा अपना पहचान पत्र दिखाकर करेगा। उसकी पसंद को उसके वोटर आई.डी. नंबर के साथ जिला रजिस्ट्रार (DR) तथा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) की वेबसाइट पर रखा जायेगा। जिला रजिस्ट्रार (DR) तथा राष्ट्रीय रजिस्ट्रार (NR) चाहें तो एस.एम.एस.\ए.टी.एम सिस्टम भी बना सकते है तथा चालू करा सकते हैं। तथा सदस्य अपनी स्वीकृति किसी भी दिन रद्द कर सकता है।
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5.7 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] यदि किसी ट्रस्टी पद के उम्मीदवार को 50% से अधिक मतदाता सदस्यों की स्वीकृति प्राप्त हो जाये और जो कि न्यूनतम स्वीकृति प्राप्त ट्रस्टी से 5% अधिक हो, तब उस न्यूनतम स्वीकृति प्राप्त ट्रस्टी को हटा कर उसकी जगह उस उम्मीदवार को ट्रस्टी बना दिया जायेगा।
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धारा-6: नए मतदाता सदस्यों के प्रवेश तथा मतदाता सदस्यों के निष्कासन सम्बन्धी नियम
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6.1 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] सभी ऐसे मामलों में जहाँ मतदाता सदस्य के मत का महत्व होता है, मत के मान (मूल्य) पर भी विचार किया जायेगा।
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6.2 [ मतदाता सदस्य , जिला रजिस्ट्रार (DR) ] एक मतदाता सदस्य अपने मताधिकार को अपने जीते जी किसी को हस्तांतरित नहीं कर सकता।
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6.3 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) ] यदि कोई मतदाता सदस्य किसी अन्य धर्मपरिवर्तन कर लेता है या किसी ऐसे संप्रदाय में शामिल हो जाता है जो कि परंपरागत रूप से अथवा ट्रस्ट के विलेख / दस्तावेजों के अनुसार अलग संप्रदाय माना जाता हो, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। यदि इस मुद्दे पर ट्रस्ट की संविदान कुछ नही कहती, तथा यदि वह ट्रस्ट भारतीय धार्मिक संप्रदाय है, तो ट्रस्ट एक उपखण्ड में यह लिख सकता है कि ” मतदाता सदस्य यदि अपना धर्म अथवा संप्रदाय परिवर्तन करते हैं, तो ट्रस्टियों तथा अन्य मतदाता सदस्यों के बहुमत द्वारा उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जाएगी।” यदि उसका पुत्र भी पहले से एक मतदाता सदस्य है, तो उसके मत का वजन (मान) बढ़ जायेगा।
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6.4 [ अध्यक्ष , जिला रजिस्ट्रार (DR) , ट्रस्टी ] यदि एक मतदाता सदस्य की मृत्यु हो जाती है अथवा वह धर्म या संप्रदाय परिवर्तन कर लेता है तो उसके पुत्र तथा पुत्रियां मतदाता सदस्य बन जायेंगे, तथा उस व्यक्ति के मत का मान समानुपातिक रूप से पुत्र-पुत्रियों की संख्या के अनुसार उनके बीच बराबर बंट जायेगा। हालाँकि उस संप्रदाय के नियमानुसार अथवा ट्रस्ट की विलेख / दस्तावेजों के अनुसार यदि औरतें मतदाता सदस्य नही बन सकती, तो सिर्फ पुत्र हीं मतदाता सदस्य बनेंगे। यदि मतदाता सदस्य के बच्चे जीवित नही हैं, तो उसकी मृत्यु होने पर या धर्म परिवर्तन करने पर सदस्यता उसके पोते-पोतियों को हस्तांतरित हो जाएगी। यदि उसके पोते-पोतियां भी नही हैं तो सदस्यता का हस्तांतरण उसके भाई को अथवा भाई के बच्चों को हो जाएगी। यदि वे भी नहीं हैं, तो सदस्यता अगले नजदीकी रिश्तेदार को मिल जाएगी जैसा कि जूरी द्वारा तय किया जायेगा।
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6.5 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , ट्रस्टी ] ट्रस्ट सभी ट्रस्टियों के अनुमोदन के बाद तथा 75% से अधिक मतदाता सदस्यों के अनुमति से निम्नलिखित में से कोई एक या एक से अधिक खंड ट्रस्ट के विलेख (दस्तावेज) में जोड़ सकता है –
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(i) मतदाता सदस्य आजीवन के लिए मतदाता सदस्य होगा।

(ii) मतदाता सदस्य के सभी बच्चे मतदाता सदस्य होंगे, तथा सदस्य के मत का वजन (मान) उसके बच्चों के बीच बराबर बांटा जायेगा।

(iii) मतदाता सदस्य यदि किसी अन्य धार्मिक ट्रस्ट का मतदाता सदस्य बन जाता है (राष्ट्रीय हिन्दू ट्रस्ट तथा राज्य हिन्दू ट्रस्ट के अलावा), तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। एक बार यदि ये वाक्य ट्रस्ट के दस्तावेजों में आ गए तो फिर कभी हटाये नही जा सकते।
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6.6 [ जिला रजिस्ट्रार (DR) , ट्रस्टी ] ट्रस्ट सभी ट्रस्टियों तथा 75% से अधिक मतदाता सदस्यों की अनुमति से यह निर्णय (फैसला) ले सकते हैं कि औरतों को मतदाता सदस्य बनाया जाना चाहिए अथवा नही। यह निर्णय (फैसला) सम्प्रदाय के परम्पराओं पर निर्भर कर सकता है। एक बार औरतों को मतदाता सदस्य बना देने के बाद ट्रस्ट उनसे यह अधिकार वापस नही ले सकता। साथ हीं यदि औरतें मतदाता सदस्य बनी, तो पिता की मृत्यु के बाद विवाहित तथा अविवाहित पुत्रियों को भी मताधिकार प्राप्त हो जायेगा।
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6.7 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी ] ट्रस्ट सभी ट्रस्टियों तथा 75% से अधिक मतदाता सदस्यों की अनुमति से यह खंड ट्रस्ट के विलेख (दस्तावेज) में जोड़ सकता है कि “सभी मतदाता सदस्यों के मतों का मान बराबर होगा।” एक बार यदि यह खंड जोड़ दिया गया तो फिर कभी हटाया नही जा सकता। तथा भविष्य में सभी मतदाता सदस्यों को ट्रस्ट के चुनावों तथा इसके संपत्ति की व्यवस्था में समान अधिकार प्राप्त होगा। इस प्रकार के ट्रस्ट में मतदाता सदस्य के बच्चे भी 30 साल की उम्र हो जाने पर मतदाता सदस्य बन जायेंगे। यदि ट्रस्ट में औरतें भी मतदाता सदस्य बन सकती हैं तो मतदाता सदस्य की पत्नी भी शादी के 5 साल के बाद मतदाता सदस्य बन जाएगी।
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6.8 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] यदि एक मतदाता सदस्य किसी अन्य संप्रदाय ट्रस्ट का मतदाता सदस्य बन जाता है या धर्म परिवर्तन कर लेता है तो उसकी सदस्यता तथा मताधिकार समाप्त हो जायेगा।
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6.9 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] एक मतदाता सदस्य स्वेच्छा से भी अपनी सदस्यता का त्याग कर सकता है, तथा ऐसी स्थिति में उसके बच्चों को मतदाता सदस्यता प्राप्त हो जाएगी। एक बार सदस्यता का त्याग करने पर वह इसे फिर से प्राप्त नही कर सकता, तथा इसके लिए उसे फिर से नए सदस्य के तौर पर जुड़ने के लिए प्रक्रिया से होकर गुजरना होगा |
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(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा-7: संप्रदाय का विभाजन (बंटवारा)
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7.1 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] यदि सभी ट्रस्टी तथा 75% से अधिक मतदाता सदस्य ट्रस्ट को दो या दो से अधिक भागों में विभाजित करने को तैयार हो जाते हैं तो ऐसा वे 3 नए विलेख / दस्तावेज बनाकर कर सकते हैं। एक ट्रस्ट जिसमें सर्वाधिक सदस्य होंगे, मुख्य ट्रस्ट होगा, तथा अन्य छोटे (गौण) ट्रस्ट होंगे।
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7.2 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] विभाजन का कोंट्राक्ट (अनुबंध) में ही सभी सम्पत्तियों की सूची तथा किस ट्रस्ट को कौन सी संपत्ति मिलेगी इसका ब्यौरा होगा। जिन सम्पत्तियों की चर्चा नही की गयी वे मुख्य ट्रस्ट के पास रहेंगी। संपत्ति बंटवारे का आधार यह होगा कि किस ट्रस्ट के पास कितने मूल्य (मान) के मत जा रहे हैं।
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7.3 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] नए ट्रस्टों में मताधिकार अनुपात पहले वाली (पूर्ववर्ती) ट्रस्ट के समान ही होगा।
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7.4 [जिला रजिस्ट्रार (DR)] जिला रजिस्ट्रार (DR) न्यूनतम 10000 रूपये तथा मूल ट्रस्ट के संपत्ति का 1% शुल्क के रूप में लेगा।
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धारा-8: दो ट्रस्टों का आपस में विलय
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8.1 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] यदि दो ट्रस्टों के सभी ट्रस्टी तथा 75% से अधिक मतदाता सदस्य आपस में विलय पर सहमत हो जाते हैं तो दोनों ट्रस्टों का आपस में विलय हो जायेगा।
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8.2 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] प्रथम तथा द्वितीय ट्रस्ट के सदस्यों के मताधिकारों का कुल योग का अनुपात विलय के कोंट्राक्ट (अनुबंध) में स्पष्ट होना चाहिए, तथा इस पर दोनों ट्रस्टों के सभी ट्रस्टियों एवं 75% मतदाता सदस्यों के हस्ताक्षर भी अवश्य होने चाहिए।
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8.3 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] पहले वाली (पूर्ववर्ती) ट्रस्ट के दो सदस्यों का मताधिकार मूल्य (मान) का अनुपात अपरिवर्तित रहेगा।
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8.4 [जिला रजिस्ट्रार (DR), ट्रस्टी] जिला रजिस्ट्रार (DR) उपर्युक्त दो नियमों के अनुसार नए मताधिकार जारी करेगा।
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8.5 [जिला रजिस्ट्रार (DR)] जिला रजिस्ट्रार (DR) न्यूनतम 10000 रूपये तथा हरेक ट्रस्ट के संपत्ति का 1% शुल्क के रूप में लेगा।
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(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा-9: कर एवं शुल्क
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9.1 [जिला रजिस्ट्रार (DR)] ट्रस्ट की संपत्ति का 0.1% जिला रजिस्ट्रार (DR) वार्षिक शुल्क के रूप में रिकॉर्ड रखने के लिए लेगा।
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9.2 [सभी] ट्रस्ट दान और अपनी कुल आय का 30% कर के रूप में चुकाएगा। ट्रस्ट अपने संपत्ति की बाजार दर का 1% कर के रूप में चुकाएगा।
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9.3 [सभी] ट्रस्ट को करों में मिलने वाली छूट उतनी ही होगी जितनी कि उसे प्राप्त टैक्स राहत यूनिट्स की कुल संख्या को प्रति यूनिट पर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित रकम को गुना करने पर प्राप्त होगा।
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धारा-10: ट्रस्ट की व्यवस्था
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10.1 [सभी] अध्यक्ष तथा ट्रस्टी आज के नियम, कानून तथा ट्रस्ट दस्तावेजों के अनुसार ट्रस्ट का प्रबंधन करेंगे।
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धारा 11. जनता की आवाज 1
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[जिला कलेक्टर]
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यदि कोई भी नागरिक इस कानून में परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट को नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ 20 रूपए प्रति पन्ने की फ़ीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर स्कैन करके डाल देगा ताकि कोई भी उस एफिडेविट को बिना लॉग-इन देख सके ।
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(भारतीय संप्रदाय देवालय प्रबंधक ट्रस्ट) धारा 12. जनता की आवाज 2
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[तलाटी (अर्थात पटवारी/लेखपाल) या उसका क्लर्क]
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यदि कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ डाल दिया जाएगा ।
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===========ड्राफ्ट की समाप्ति============

ऊपर प्रस्तावित कानून ड्राफ्ट के अनुसार ट्रस्ट को अपनी प्रचलित विशेषतायें छोड़कर तथा स्वयं को बदलकर सिखवाद की तरह लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनाने की आवश्यकता नही होगी। लेकिन जैसे-जैसे एक या एक से अधिक संप्रदाय अपने सदस्यों को बराबर मताधिकार देना शुरू करेंगे, अन्य समान विश्वास वाले सम्प्रदायों जिनमें ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था नही है, के अनुयायियों (चेलों) का सामूहिक पलायन (बहार जाना) उन सम्प्रदायों की ओर होने लगेगा जिनके विश्वास तो समान हैं तथा लोकतान्त्रिक ढांचा भी है। अथवा कम से कम नए सदस्य बनने तो बंद हो जायेंगे। अतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले संप्रदाय ट्रस्टों के अनुयायियों की संख्या बढ़ेगी, जबकि लोकतान्त्रिक संरचना (व्यवस्था) नहीं अपनाने वाले संप्रदाय ट्रस्ट अपने अनुयायियों को खोते जायेंगे।
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हालाँकि अलोकतांत्रिक ट्रस्टों को संपत्ति का नुकसान नही होगा, लेकिन उन्हें नए दानकर्ता तथा नए दान / चंदा मिलना कम हो जायेगा। समय बीतने के साथ साथ हिन्दू \ भारतीय सम्प्रदाय ट्रस्टों के धार्मिक विश्वास कम-ज्यादा आज की तरह हीं होंगे, लेकिन उनकी व्यवस्था प्रभावशाली बन जाएगी। उनके खातों में पारदर्शिता आएगी, इसलिए अज्ञात (बेनामी) रूप से धन इकठ्ठा करने के अवसर (मौके) भी कम होंगे।
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अध्यक्ष एवं ट्रस्टी हरेक 3-5 वर्ष पर बदल जायेंगे, इसलिए दान / चंदे की राशि के जमाख़ोरी की संभावना कम होगी। इस प्रकार व्यवस्थापक (मैनेजेर) देश व समुदाय की रक्षा के लिए घायल सैनिकों, पुलिसकर्मियों, तथा शहीद होनेवाले सैनिकों, पुलिसकर्मियों, अथवा आम नागरिकों के रिश्तेदारों के भलाई को पहले देखेंगे। इससे समुदाय ताकतवर (सशक्त) बनेगा। साथ हीं क्योंकि धन की जमाखोरी कम होगी, गणित / विज्ञान / कानून / शिक्षा तथा हथियार चलाने की शिक्षा जैसे कल्याणकारी कार्यों को बढ़ावा मिलेगा। फिर से इससे समुदाय ताकतवर (सशक्त) होगा।
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सभी भारतीय सम्प्रदायों के लिए यह जरूरी नही है कि वे एक ही व्यवस्था के तहत (अंतर्गत) एकजुट हो जाएँ। महत्वपूर्ण मुद्दा उनके बीच असहमति (झगडा) को कम करना है। इसके लिए एक सामान्य जूरी प्रणाली होगी जो मतभेदों को घटा कर कम से कम करेगी। तथा हरेक संप्रदाय के मैनेजेर को ऐसा होना चाहिए कि उसका झुकाव संग्रह की ओर न हो।
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अब एक पाठक जिसे इस विषय में बहुत रूचि है, यह पूछ सकता है कि यदि किसी संप्रदाय ट्रस्ट का प्रमुख उसके अनुयायियों को मतदाता सदस्य बनाने से मना करता है तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? कोई बात नही, तब ऐसी स्थिति में संप्रदाय के कुछ संत उस ट्रस्ट को छोड़ कर अलग दूसरा ट्रस्ट शुरू कर देंगे जिसके धार्मिक विश्वास तो पहले ट्रस्ट की तरह हीं होंगे, किन्तु इसका हर अनुयायी (चेला) मतदाता सदस्य होगा। इसलिए ज्यादा से ज्यादा अनुयायी पहले ट्रस्ट को छोड़कर नए ट्रस्ट में शामिल होने लगेंगे।
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इसी प्रकार एक और प्रश्न महत्वपूर्ण है। यदि लोकतान्त्रिक संरचना ही इतनी सशक्त अवधारणा है तो सभी हिन्दू सिख क्यों नही बन गए? मेरे विचार से कारण यह था कि सिखों की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को तो अधिकांश हिन्दू पसंद करेंगे, किन्तु इनके कुछ विश्वासों जैसे मूर्तिपूजा का नापसंद करने को अधिकांश हिन्दुओं ने अस्वीकृत कर दिया।
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हमारे द्वारा प्रस्तावित इस तरीके में आध्यात्मिक विश्वास तथा रीति रिवाज में बदलाव की जरुरत नही, केवल दान की प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन आएगा, और वह भी अनुयायियों की भलाई के लिए। अतः हमारे विचार से बदलाव आएगा और ये बदलाव कम से कम है और आवश्यक बदलाव है और इस बदलाव को समर्थन भी प्राप्त होगा ।
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इसके अलावा, एक अलोकतांत्रिक संप्रदाय ट्रस्ट को लोकतान्त्रिक संप्रदाय ट्रस्ट में बदलने के लिए कोई सरकारी ताकत का उपयोग नही किया जायेगा, न ही कोई टैक्स प्रलोभन (टैक्स छूट का लालच) दिया जायेगा। दोनों (अलोकतांत्रिक और लोकतान्त्रिक) ट्रस्टों पर टैक्स सामान दर से टैक्स लगेगा। ये प्रस्तावित कानून केवल एक व्यवस्था बनाता है, ताकि यदि कोई संप्रदाय लोकतान्त्रिक बनता है तो ट्रस्ट प्रमुख बाद में ट्रस्ट को अलोकतांत्रिक नही बना सके। इससे उनके द्वारा निर्मित लोकतान्त्रिक व्यवस्था में एक प्रकार का कानूनी स्थिरता आएगी।
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