कल 1 फरवरी को देश का आम बजट (Union Budget 2018 ) आया है। आम आदमी की भाषा में कहें तो बजट वह है जिससे घर का खर्चा-पानी चलता है, बचत की जाती है और पर्व-त्योहार पर दिल खोल के खर्च किया जाता है। जरा सोचिए, एक घर के खर्चे को चलाने के लिए जिस बजट पर इतनी माथा-पच्ची की जाती है, तो पूरे देश के बजट को बनाने में कितना समय और दिमाग लगाना पड़ता होगा!
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन एक डिवीजन है– इकोनॉमिक अफेयर्स, और इसके अंदर एक विभाग है– बजट डिविजन। यह बजट डिविजन ही है जो हर साल भारत सरकार के लिए बजट बनाता है। बजट बनाने की प्रक्रिया प्रति वर्ष अगस्त-सितंबर माह में शुरू हो जाती है। इस प्रक्रिया को और बजट के प्रारूप को बहुत ही गोपनीय रखा जाता है।
सुरक्षा के लिहाज से बजट बनने की प्रक्रिया बननी शुरू होने से लेकर बजट पेश होने वाले दिन तक करीब 1 हजार कुत्तों की टीम बराबर बजट की सुरक्षा और गोपनीयता के लिए तैनात की जाती है। बजट का ड्राफ्ट बनने से लेकर बजट प्रिटिंग का कागज, प्रिटिंग, पैकेजिंग और संसद पहुंचने की प्रक्रिया के बीच कई बार बजट को लीक न होने देने के लिए सुरक्षा जांच करते हैं।
अगस्त-सितंबर: कब और कैसे होती है शुरुआत
बजट डिविजन अगस्त के आखिर में या सितंबर के शुरू होते ही बजट सर्कुलर जारी करता है। इस सर्कुलर में भारत सरकार और उसके सभी मंत्रालयों और विभागों से संबंधित कंटेंट और स्टेटमेंट का पूरा विवरण होता है, जिसके आधार पर बजट की रूप-रेखा तैयार करनी होती है।
सितंबर के आखिर तक अगले वित्त वर्ष के लिए सरकारी खर्चे का अनुमानित आंकड़ा तैयार किया जाता है। वर्तमान में एक वर्ष का सरकारी खर्च उतना है, जितना देश में लोग खाने पर खर्च करते हैं।
अक्टूबर-नवंबर: कैसे तय किया जाता है कि किन मंत्रालयों को कितना बजट देना है
हर मंत्रालय अधिक से अधिक फंडिंग चाहता है। इसके लिए प्रत्येक मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी वित्त मंत्रालय के साथ खूब निगोशिएट करते हैं। इतने सारे मंत्रालयों और विभागों के कारण यह प्रक्रिया नवंबर तक चलती है।
दिसंबर: फर्स्ट कट ऑफ बजट की तैयारी
दिसंबर आते ही बजट की पहली ड्राफ्ट कॉपी (इसे फर्स्ट कट ऑफ बजट कहा जाता है) को वित्त मंत्री के सामने रखा जाता है। फर्स्ट कट ऑफ बजट का पेपर ब्लू कलर का होता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्लैक इंक लाइट ब्लू कलर के पेपर पर ज्यादा उभर कर सामने आता है।
जनवरी: सरकार और मंत्रालय के अलावा विभिन्न लोगों से ली जाती है सलाह
जनवरी में बैंक एसोसिएशन, विभिन्न उद्योग समूह के प्रतिनिधियों और जाने-माने अर्थशास्त्रियों से वित्तमंत्री की मीटिंग होती है। वित्तमंत्री सबकी सलाह सुनते हैं, पर उसे बजट में शामिल करने या न करने का अंतिम फैसला उनके पास ही होता है।
जनवरी-फरवरी: क्या-क्या किया जाता है बजट की गोपनीयता के लिए
जनवरी के शुरुआत से मीडिया को वित्त मंत्रालय से दूर कर दिया जाता है, ताकि कोई भी बजट संबंधी खबर मीडिया के हाथ न लगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो के लोग वित्त मंत्रालय को पूरी तरह से सिक्योर करते हैं। बजट से संबंधित प्रमुख लोगों का फोन भी टेप किया जाता है, जिससे कोई घर का ही भेदिया न बन सके । इंटरनेट कनेक्शन भी हटा दिया जाता है।
वित्त मंत्रालय में आने-जाने वाले लोगों पर सीसीटीवी के जरिए कड़ी नजर रखी जाती है। सीसीटीवी के रेंज के बाहर किसी को भी बैठने की मनाही होती है।
बजट की प्रिंटिंग
वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में बजट डॉक्यूमेंट की प्रिंटिंग की जाती है। इस प्रिंटिंग प्रेस में लगभग 100 लोगों को बजट से एक सप्ताह पहले पूरी जांच-पड़ताल करके भेजा जाता है और बजट प्रिंट होने तक वहीं रुकना होता है। प्रिंटिंग रूम में सिर्फ एक फोन होता है, जिस पर फोन सिर्फ आ सकता है। हालांकि, बात करते वक्त इंटेलिजेंस का एक आदमी हमेशा खड़ा रहता है।
डॉक्टरों की एक टीम हमेशा मौजूद रहती है ताकि प्रेस में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी की तबीयत खराब होने पर उसका तुरंत उपचार किया जा सके। यहां के प्रिंटिंग प्रेस में मुख्य तौर पर प्रूफ रीडिंग, ट्रांसलेशन और प्रिंटिंग का काम होता है।
अगर किसी इमरजेंसी में कोई प्रिंटिंग कर्मचारी प्रेस से बाहर निकलता है तो इंटेलिजेंस का एक आदमी और दिल्ली पुलिस का एक आदमी हमेशा उसके साथ रहता है।
वित्त मंत्रालय के प्रिंटिंग प्रेस में काम करने वालों को जो खाना दिया जाता है, उसे भी टेस्टिंग से गुजरना पड़ता है, ताकि पता लगाया जा सके कि खाने में जहर तो नहीं मिलाया गया है
क्या होता है बजट के दिन
वित्त मंत्री संसद में बजट पेश करने से पहले भारत के राष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष बजट का संक्षेप पेश करते हैं। इसके बाद बजट को संसद में रखा जाता है। सामान्यतः बजट दिन के 11 बजे संसद में रखा जाता है और वित्त मंत्री संसद को बजट के मुख्य बिंदुओं से अवगत कराते हैं।