मुसलमानों ने गाय को नहीं काटा था! देखिए किन लोगो ने गाय को काटा और दंगा करवाया

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भारत देश में गोहत्या निषेध के लिए एक जबरदस्त आंदोलन शुरू हुआ था सन 1870 में और इस आंदोलन का इतिहास अंग्रेजो ने दबा कर रखा  अभी तक अंग्रेजों ने इस आंदोलन का इतिहास दबा कर रखा और हमारे इतिहासकारों ने भी इस बात पर ज्यादा शोध नहीं किया 1870 से लेकर 1894 तक  माने 24 साल इस देश में गौ हत्या निषेध का जबरदस्त आंदोलन था और अंग्रेजों की खुफिया विभाग की रिपोर्ट के अनुसार में आपसे कहना चाहता हूं अंग्रेजो के खुफिया अधिकारी का यह कहना था की  1857 का आंदोलन जितना बड़ा था उससे कई गुना बड़ा यह गौ हत्या निषेध का आंदोलन था जो 1870 में शुरू हुआ और 1894 तक चला बहुत गर्व से  बहुत गौरव से मुझे यह कहना है कि इस आंदोलन की शुरुआत आर्य समाज के लोगों ने की थी आर्य समाज के कार्यकर्ताओं ने की थी आप जानते हैं परम पूजनीय महर्षि दयानंद जी की  शिक्षाओं से प्रेरित और प्रभावित होकर बहुत सारे युवक आजादी के आंदोलन में कूदे थे परम पूजनीय महर्षि दयानंद  से ही प्रभावित होकर बहुत सारे युवक गौरक्षा आंदोलन और गोहत्या निषेध के आंदोलन में 1870 में कूदे थे आर्य समाज की स्थापना तो 1875 में हुई थी लेकिन आर्य समाज की नींव परम पूजनीय स्वामी दयानंद  के कार्यों से पहले ही पड़ चुकी थी सन 1870 में ये आंदोलन शुरू हुआ

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आज जिस स्थान पर हरियाणा है पहले यह पंजाब हुआ करता था हरियाणा आजादी के बाद बना है इस इलाके से यह आंदोलन शुरू हुआ और अंग्रेजो के खुफिया रिपोर्ट बताती है कि सबसे पहले यह आंदोलन जींद से शुरू हुआ था जींद एक बड़ी रियासत हुआ करती थी उस जमाने में वहां से गौ रक्षा आंदोलन 1870 में शुरू हुआ गौरक्षा सभा बनाई गई थी जींद में उसमें कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया था कि गाय को कटने नहीं देंगे और जो अंग्रेज गाय काटेगा उस अंग्रेज को हम काटेंगे

ऐसे करके आंदोलन फैला जींद  एक छोटे से स्थान से शुरू हुआ आंदोलन धीरे धीरे  संपूर्ण भारत में फैल गया 1894 तक आते-आते 1 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता इस गौरक्षा आंदोलन में शामिल हो गए एक करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता पूरे देश में और इन कार्यकर्ताओं ने  जगह-जगह कत्लखाने बंद करवाना शुरू कर दिया और यह कत्लखाने बंद करवाने का काम कैसे किया करते थे अंग्रेजो के कत्लखाने जो चला करते थे उनके सामने जाकर यह लेट जाते थे और जो गाड़ियां पशुओं को भरकर ले जाती थी उनके सामने ये कार्यकर्ता लेट जाते थे और कहते थे कि हमारे ऊपर से ले कर जाओ तब पशुओं का कत्ल होगा हम पहले मरेंगे बाद में यह पशु कटेंगे इतना जबरदस्त आंदोलन था  परिणाम यह होने लगा जगह-जगह अंग्रेजों को कत्ल करने के लिए जानवर मिलना बंद हो गए इन 1 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने  गाँव गांव के किसानों को समझाना शुरू किया कि अंग्रेज तो गाय काटते हैं हम तो गाय पालते हैं हम गाय बेचेंगे  नहीं अंग्रेजों को गाय देंगे नहीं अंग्रेजों को तो अंग्रेज काटेंगे कैसे तो इस तरह से यह आंदोलन बड़ा और अंग्रेजों की हालत खराब हो गई जब जगह-जगह कत्लखानों को गाय मिलना बंद हो गई तो गाय का मांस खाना अंग्रेजों को बहुत आवश्यक था

बिना गाय का मांस खाए वह एक दिन भी रह नहीं सकते थे तो अंग्रेजी सेना में विद्रोह की स्थिति आ गई और अंग्रेजी सैनिकों ने कहा कि गायक का मांस नहीं मिलेगा तो हम बगावत करेंगे विद्रोह करेंगे अब अंग्रेजी सरकार के लिए एक तरफ कुआँ और एक तरफ खाई ये  गौ रक्षा करने करने वाले कार्यकर्ता गाय  मिलने नहीं दे रहे थे कटने को और अंग्रेजी सैनिक गाय का मांस ना मिले तो बगावत करने को तैयार तो अंग्रेजों की महारानी ने एक हस्तक्षेप किया विक्टोरिया  ने विक्टोरिया  ने लैंसडाउन नाम के एक अंग्रेज अधिकारी को पत्र लिखा लैंसडाउन उस समय गवर्नर जनरल था 1894 के आसपास वो  पत्र इसके पास आया और उस विक्टोरिया ने उस पत्र में लिखा कि यह जो गाय  भारत में कटती है यह तो हमारे लिए ही कटती है बात तो सही है क्योंकि भारतवासी तो गाय का मांस खाना पसंद करते नहीं हैं आप इस बात पर ध्यान देना विक्टोरिया खुद लिख रही है

इस बात को वह कह रही है कि गाय भारत में कटती है तो वह हमारे लिए कटती है भारतवासी गाय खाना पसंद नहीं करते हैं और वह कहती है कि भारत के मुसलमान भी गाय खाना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि इनके पूर्वज सब हिंदू थे और हिंदुओं ने गाय के मांस को खाना कभी स्वीकार  किया नहीं  इसलिए भारत के मुसलमान भी गाय  खाना पसंद नहीं करते थे उस पत्र में एक अनेक्स्चर  लगा हुआ है जिसमें एक वाक्य है विक्टोरिया लैंसडाउन को लिख रही है कि मुझे जानकारी मिली है कभी किसी मुस्लिम भाई के घर में गलती से गाय का मांस आ गया और जिस बर्तन में वो रख गया और मुस्लिम भाई को पता चल गया कि यह गाय का मांस था तो वह उस मुस्लिम परिवार उस बर्तन को हमेशा के लिए घर के बाहर फेंक देता है वह मानते हैं कि यह गलती हुई है यह भूल हुई है

तो विक्टोरिया लिख रही है पत्र में कि ना तो भारत में मुसलमान गाय का मांस खा रहे हैं ना हिंदू खा सकते हैं गाय कट रही है तो अंग्रेजों के लिए कट रही है अब गौ रक्षा आंदोलन जो चल पड़ा है पूरे भारत में हमको गाय मिलना बंद हो गई है हमारे कत्लखाने बंद हो रहे हैं इसका अब एक ही उपाय है लैंसडाउन को वो कह रही है चिट्ठी मैं इसका एक ही उपाय है क्या उपाय हैं लैंसडाउन को वह कह रही है कि तुम ऐसा करो की भारत के जो कत्लखाने अंग्रेजों के लिए चल रहे हैं और मॉस अंग्रेजों के लिए पैदा हो रहा है इन कत्लखानों में गाय का कत्ल करने के लिए मुसलमानों की भर्ती करो इस बात पर ध्यान दीजिए वाक्य पर वह कहती है कि मुसलमानों की भर्ती करो इसका माने  गाय  काटने का काम  मुसलमान नहीं उन कत्लखानों में वो अंग्रेज  ही करते  रहे होंगे तो अंग्रेजों को हटाकर मुसलमानों की भर्ती करो और हिंदुओं को यह बताओ भारत में की तुम्हारी गाय  मुसलमान काट रहे हैं तो  यह हिंदू और मुसलमान जो मिलकर गौ रक्षा के आंदोलन में लड़ रहे हैं यह आपस में लड़ने लगेंगे और हमारा रास्ता खुल जाएगा और हमारी नीति  डिवाइड एंड रूल बांटो और राज करो फूट डालो और राज करो सफल हो जाएगी  और हमारी सेना में भी बगावत नहीं होगी और हमारे सेना के लोगों को मॉस भी  मिलता रहेगा कत्लखाने भी चलते रहेंगे यह पत्र लिखा उसने लैंसडाउन को लैंसडाउन ने पत्र पढ़ा उसने एक मीटिंग बुलाई मीटिंग बुलाकर उसने आदेश दिया कि जितने सरकारी कत्लखाने हैं उनमें मुसलमानों की भर्ती की  जाए तो मुसलमानों में से कोई तैयार ही नहीं हुआ भर्ती के लिए कोई आया ही नहीं तो उन्होंने कहा कि ढूंढो कोई तो मुसलमानों में  जाति समूह होगा जिसको  हम इस काम में लगा सकें

तो कुरैशी जाति समूह के मुसलमानों को प्रताड़ित कर के अत्याचार करके मारपीट कर अंग्रेजों ने गाय के कत्ल के काम में लगा दिया और इनको इतना प्रताड़ित करते थे कि गाय काटो गाय काटो| फिर होता क्या था कि यह गाय काटते थे कुरेशी समाज के लोग अंग्रेजों के दबाव में आकर फिर अंग्रेज इसको पूरे देश में प्रचारित करते थे हिन्दुओ  के बीच में देखो तुम्हारी गाय तो मुसलमान काट रहे हैं तो 1870 से 1894 तक जो आंदोलन चला गोरक्षा का जिसमे हिंदू मुसलमान दोनों साथ मिलकर गाय को बचाने के लिए लड़ रहे थे आपको सुनकर ताज्जुब होगा कि जींद की  जो गौ रक्षा समिति 1870 में बनी उस में 11 हिंदू थे और 7 मुसलमान थे 18 लोगों की समिति थी हर जगह गौ रक्षा की समिति में हिंदू मुसलमान साथ में मिलकर काम कर रहे थे विक्टोरिया ने लेंसडाउन को आदेश देकर मुसलमानों से जबरदस्ती गाय कटवाकर कुरेशी समाज के लोगों को दबाव डालकर एक घ्रणित काम शुरु किया और सारे देश में यह लहर फैल गई कि हिंदू और मुसलमान जो मिलकर गाय को बचा रहे थे

विक्टोरिया के इस पत्र के बाद जो नीति बनी उस में हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ने लगे मुसलमानों के बीच में प्रचार किया गया कि कुरेशी को बहिष्कार करो क्योंकि यह गाय काट रहे हैं हिंदुओं में प्रचार किया गया कि कुरेशियों को मारो पीटो क्योंकि तुम्हारी गाय काट रहे हैं और अंग्रेज पूरे सुरक्षित हो गए 1894 से यह नीति बनी और 1897 में इस नीति ने पूरे देश में एक विस्फोट कर दिया और पहली बार मुझे दुःख है यह कहते हुए कि हिंदू मुसलमान का पहला दंगा 1897 में अंग्रेजों ने कराया वो इस  नीति के तहत करवाया ताकि ये  हिंदू मुसलमान अलग अलग हो जाएं और इस देश की गाय कटती रहे और अंग्रेजों का शासन सुरक्षित रहे लैंसडाउन वह खतरनाक अंग्रेज अधिकारी था जिसने हिंदू मुसलमानों को लडवाया और हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ और मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ बरगलाया यह लैंसडाउन ने कुछ टीम बना रखी थी आपको सुन के लगेगा कि कितना घ्रणित आदमी था वो उसकी टीम के लोग जाते थे और किसी मस्जिद के सामने रात को ढाई 3:00 बजे सूअर काट कर डाल कर चले जाते थे

लैंसडाउन की टीम के लोग और सवेरे हल्ला मचता  था कि देखो हिंदुओं ने सूअर काट के मस्जिद में डाल दिया फिर लैंसडाउन के लोग जाते थे  और किसी मंदिर के सामने गाय को काट कर छोड़ जाते थे और लैंसडाउन के कर्मचारी प्रचार करते थे  देखो मुसलमानों ने गाय को काट दिया इस तरीके से दंगा भड़काया और 1897 में जब दंगा भड़का इस देश में दंगा भड़कते-भड़कते 1905 तक कितना खतरनाक हो गया कि अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमानों के आधार पर देश का विभाजन करने का तय कर लिया और बंगाल राज्य को पूर्वी  बंगाल और पश्चिम बंगाल में बांट दिया जिस अंग्रेज अधिकारी लैंसडाउन ने ये विष का  बीज बोया हिंदू और मुसलमानों में उस  लैंसडाउन के नाम से इस  उत्तराखंड में एक पूरा शहर बसा हुआ है एक नगर बसा हुआ है उसका नाम लैंसडाउन है आत्मा को दुख होता है कष्ट होता है क्रोध आता है कि लैंसडाउन ने  हिंदू मुसलमानों को लड़ाया  गाय का मांस अंग्रेजों को खाने को मिलता रहे इसके लिए गाय का कत्ल करने के लिए कत्लखाने चालू करवा कर रखे उस लैंसडाउन का नाम हम क्यों लें  और उसके नाम पर शहर का नाम क्यों बने मैं अपील करना चाहता हूं लैंसडाउन की नगरपालिका से लैंसडाउन की नगर परिषद से मैं अपील करना चाहता हूं उत्तराखंड की सरकार के मुख्यमंत्री से उत्तराखंड की सरकार से अपील करना चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो यह लैंसडाउन नाम के  कलंक को  इस पाप  को उत्तराखंड से  जितनी जल्दी मिटा दिया जाए उतना अच्छा है

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