वीर्यवेग कभी न रोके और हमारे शरीर में वेगों को रोककर हम सबसे बड़ी गलती करते है

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अच्छे स्वास्थ्य और लंबी जिंदगी के लिए योगाभ्यास तो जरूरी है ही पर इसके अतिरिक्त कुछ सामान्य नियमों और सावधानियों का पालन भी आवश्यक है. इन नियमों-सावधानियों व जानकारियों के पालन से दिनचर्या व्यवस्थित होने लगती है और हम लंबे समय तक युवा बने रह सकते हैं.

स्वस्थ रहने के टिप्स :-

प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठने का नियम बनाएं. इसके लिए रात में जल्दी सोने की आदत डालें. सुबह उठने के बाद शौचादि से निवृत्त होकर ऊषापान करें. ऊषापान के लिए रात में पानी तांबे के बर्तन में भर कर रख दें और सुबह उसमें से लगभग दो गिलास पानी खाली पेट पीएं. सर्दी के मौसम में पानी थोड़ा गुनगुना कर लें, सूर्योदय से पहले ही नित्यकर्म से निवृत्त होकर खुले वातावरण में जाकर योगाभ्यास करें.

अपनी दिनचर्या में शारीरिक श्रम को महत्व दें. कई रोग इसीलिए पैदा होते हैं, क्योंकि हम दिमाग से अधिक और शरीर से कम काम लेते हैं. आलस्य त्यागकर पैदल चलने, खेलने, सीढ़ी चढ़ने, व्यायाम करने, घर के कामों में हाथ बंटाने आदि शारीरिक श्रम वाली गतिविधियों में लगें, भूख लगने पर ही भोजन करें. जितनी भूख हो, उससे थोड़ा कम खाएं. अच्छी तरह चबा कर खाएं. दिन भर कुछ न कुछ खाते रहने का स्वभाव छोड़ दें. दूध, छाछ, सूप, जूस, पानी आदि तरल पदार्थों का अधिकाधिक सेवन करें, प्रकृति के नियमों के अनुरूप चलें, क्योंकि ‘कुदरत से कुश्ती’ करके कोई निरोगी नहीं हो सकता.

प्रतिदिन योगाभ्यास का नियम बनाएं, भोजन पौष्टिक हो और सभी आवश्यक तत्वों से भरपूर हो, मिष्ठान, पकवान, चिकनाई व अधिक मसालों के इस्तेमाल से परहेज करें, सोने, जागने व भोजन का समय निश्चित करें और साफ-सफाई का हर हाल में ध्यान रखें, बढ़ती उम्र के साथ यदि यह भाव मन में घर कर गया कि मैं बूढ़ा हो रहा हूं, तो व्यक्ति अपने इसी मंतव्य के कारण जल्दी बूढ़ा होने लग जाता है.

शरीर का वजन न बढ़ने दें, क्रोध, चिंता, तनाव, भय, घबराहट, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या आदि भाव बुढ़ापे को न्यौता देने वाले कारक हैं. हमेशा प्रसन्नचित्त रहने का प्रयास करें. उत्साह, संयम, संतुलन, समता, संतुष्टि व प्रेम का मानसिक भाव हर पल बना रहे, मन में रोग का भाव बीमारियों में बढ़ोत्तरी ही करता है. स्वास्थ्य का भाव सेहत में वृद्धि करता है इसलिए दिन भर इस भाव में रहें कि मैं स्वस्थ हूं. मन में यह शंका न लाएं कि भविष्य में मुझे कोई रोग होगा, जीभ पर नियंत्रण रखें, क्योंकि जीभ के दो ही कार्य होते हैं-बोलना और स्वाद लेना, अतः अधिक बोलने से बचें. आधि- मन का रोग, व्याधि- तन का रोग और उपाधि- मद, ये तीनों यौवन के भयंकर शत्रु हैं. इनसे दूर रहें.

प्रायः देखा जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति पढ़ना-लिखना छोड़ देता है. इससे उसके मस्तिष्क के तंतु निष्क्रिय होने लगते हैं और नाड़ी तंत्र भी मंद पड़ने लगता है. इसका असर शरीर की समस्त क्रियाओं पर पड़ता है. व्यक्ति जल्दी बूढ़ा होने लगता है. अतः बढ़ती आयु के साथ स्वाध्याय और आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि होती रहनी चाहिए, बीड़ी-सिगरेट जैसे नशीले व हानिकारक पदार्थों से बचें, क्योंकि ये सभी बुढ़ापे की ओर ले जाते हैं.

कुछ स्वास्थ्य उपयोगी जानकारियां :-

आंखों में जलन रहती हो, तो दिन में तीन से चार बार मुंह में ठंडा पानी भर कर 15-20 बार आंखों को ठंडे पानी से धोएं और सुबह के समय नंगे पैर हरी घास पर चलें, चुस्त (टाइट) पैंट के पीछे दिन भर मोटा पर्स रखने से कमर दर्द व साइटिका का दर्द होने की संभावना बढ़ जाती है, नहाने से पहले सरसों का तेल दोनों नासारन्ध्रों में लगाकर नहाने के बाद नाक को अच्छी तरह साफ कर लें. ऐसा करने से नजला-जुकाम नहीं होता.

यदि ठंडे मौसम में प्रातः काल छींक आती हो, नजला-जुकाम व कफ आदि की शिकायत रहती हो तो बिस्तर से उठने से पहले कानों को ढक लें व बिस्तर से उतरते ही पैरों में चप्पल पहन लें, शरीर में जहां भी अधिक चर्बी हो, नहाते समय वहां रगड़ कर मालिश करने से चर्बी दूर होने लगती है, नहाने से पहले प्रतिदिन पांच-दस मिनट के लिए सरसों के तेल की मालिश करने से शरीर स्वस्थ और त्वचा मुलायम बनी रहती है.

रात को सोने से पहले हाथ-पैर-मुंह अच्छी तरह धोकर सरसों का तेल तलवों और घुटनों पर मलने से नींद गहरी आती है, रात को सोने से पहले भ्रामरी प्राणायाम करने पर अनिद्रा रोग दूर होने लगता है, स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए रात को सोने से पहले आंखें बंद करके बैठ जाएं और दिनचर्या पर मनन करें, रात को भिगोए पांच बादामों को प्रातः काल छील कर खाने से स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है.

भोजन करने के बाद दस मिनट तक वज्रासन में बैठने से भोजन जल्दी पचने लगता है और कब्ज, गैस, अफारा आदि से छुटकारा मिलता है. यदि घुटनों में दर्द रहता हो, तो वज्रासन नहीं करना चाहिए, अधिक खा लेने के बाद यदि बेचैनी का अनुभव हो, तो वज्रासन में बैठें, तत्काल लाभ मिलेगा, रात में दही का सेवन करने से मोटापा, जोड़ों का दर्द, वायु विकार इत्यादि होने की आशंका बढ़ जाती है, प्रातः काल दाएं (सीधे) हाथ की मध्यमा अंगुली से दांत व मसूड़ों की धीरे-धीरे मालिश करने से दांत मजबूत हो जाते हैं.

सुबह के समय दांत साफ करते समय दाएं (सीधे) हाथ का अंगूठा मुंह के अंदर ले जाकर उससे तालू साफ करने से बालों का झड़ना, नजला-जुकाम व कफ दोष दूर होने लगते हैं, रात में सोने से पहले नाभि में सरसों का तेल लगाने से होंठ नहीं फटते, दूध के साथ मांस-मछली, नमकीन, खट्टा खाने से चर्म रोगों की संभावना बढ़ जाती है, जो बच्चे देर से बोलना शुरू करते हैं या कम बोलते हैं, उन्हें पानी का सेवन अधिक मात्रा में कराएं, एक साथ अधिक पानी पीने से कफ बढ़ता है, अतः पानी मुंह में रोक-रोक कर पीएं, भोजन के बाद, नहाने से पहले, सोने से पहले पेशाब करने अवश्य जाएं.

टहलते समय गहरी श्वास-प्रश्वास करें. इससे शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है, गर्म चीज खाने के तुरंत बाद ठंडा पानी, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक लेने से दांत तो कमजोर होते ही हैं, इसका पाचन तंत्र पर भी बुरा असर पड़ता है, कमर दर्द रहता हो तो सीधे लेट कर कमर के नीचे मध्यम आकार का तौलिया रोल करके दर्द वाले स्थान पर लगाएं और शवासन में पांच-दस मिनट के लिए लेट जाएं.

शरीर में खाज रहती हो, तो नारियल के तेल में डली वाला कपूर डाल कर धूप में रख दें. इसकी मालिश करने से आराम मिलने लगता है. नीम के आठ-दस पत्ते थोड़े से पानी में उबाल कर नहाने के पानी में मिला लें. राहत मिलेगी. यह तेल सिर में लगाने से डैंड्रफ (रूसी) से छुटकारा मिलने लगता है.

अधिक खटाई खाने से गला खराब हो सकता है. ज्यादा चीनी खाने से रक्त विकार हो सकता है. भोजन में मैदा के अधिक प्रयोग से पेट के रोग व ज्यादा नमक खाने से गुर्दों के खराब होने की आशंका बढ़ जाती है, हमेशा कमर व गर्दन सीधी करके बैठें. इससे शरीर में उत्साह, ऊर्जा व फुर्ती बढ़ती है और शरीर स्वस्थ बना रहता है, दिन भर चेहरे पर प्रसन्नता बनाए रखें. जब भी मौका मिले, खिलखिलाकर हंसें.

सिर दर्द रहता हो तो कानों को खींचें. कानों के पास मालिश करने से भी आराम मिलता है, भरपूर पानी पीने से शरीर में मलों का जमाव नहीं हो पाता. इससे शरीर में हल्कापन व तरोताजगी बनी रहती है, लेटते व बैठते समय दाईं करवट का सहारा लें. इससे कमर व हृदय पर दबाव नहीं पड़ेगा, वात रोग होने पर रात को भिगोई हुई लहसुन की दो कलियां प्रातः काल उन्हें तोड़कर ताजे पानी से निगलने से लाभ मिलता है.

एसिडिटी की शिकायत होने पर भोजन के पश्चात एक लौंग या गुड़ की एक डली चूसने से आराम मिलता है, पांच पत्ते तुलसी, पांच काली मिर्च, पांच नीम के पत्ते व पांच बेल पत्र को पीस कर उसकी गोली बनाकर सुबह खाली पेट पानी से लेने से शुगर (डायबिटीज) में लाभ मिलता है, पैरों में दर्द रहता हो, तो नहाते समय पिंडलियों से नीचे टखनों के पास पैरों की कसकर मालिश कर लें. दिन भर पैरों में आराम रहेगा.

तीन-चार बूंद गाय का घी रात को सोने से पहले दोनों नासारन्ध्रों में डालने से माइग्रेन में आराम मिलता है, यदि गैस की शिकायत रहती हो, तो सुबह खाली पेट सेब आदि फल और दूध का सेवन सुबह न करके दिन में किसी अन्य समय कर सकते हैं. सेब व दूध को खाली पेट लेने पर गैस में वृद्धि हो सकती है, आंव की शिकायत हो, तो मट्ठा में सेंधा नमक व सोंठ पाउडर डालकर प्रतिदिन सेवन करने से लाभ मिलने लगता है, दिन में तीन-चार बार पानी में नींबू निचोड़ कर पीने से उच्च रक्तचाप में कमी आने लगती है.

नजला-जुकाम में काली मिर्च, पीपली, सोंठ व मुलहठी- इन चारों का समान मात्रा में पाउडर लेकर मिला लें. यह मिश्रण चौथाई चम्मच शहद के साथ चाटने से लाभ मिलने लगता है, रात को सोते समय सिर उत्तर दिशा में नहीं होना चाहिए. इससे मानसिक रोग की संभावना बढ़ जाती है, सुबह-शाम, दो बार शौच जाने से कब्ज की शिकायत कम हो जाती है. अतः यह नियम अपनी दिनचर्या में शामिल करें, कुर्सी पर पैरों को आगे-पीछे करके बैठने से कमर में खिंचाव नहीं होता.

सोने के लिए पलंग पर अधिक मुलायम गद्दों व मोटे तकियों का प्रयोग करने से रीढ़ की हड्डी में दर्द पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है, शरीर में दर्द हो, तो श्वासन में लेटकर लंबे-गहरे सांस धीरे-धीरे भरें व मन से प्राण वायु को दर्द के स्थान पर ले जाएं और यह भाव रखें कि प्राण शक्ति इस रोग को दूर कर रही है, उपवास के दिन अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें. उपवास पूरा करने (तोड़ने) के लिए पूरी, परांठे, कचौड़ी आदि गरिष्ठ भोजन की बजाय हल्का भोजन करें.

शौच या पेशाब के समय दांतों के जबड़ों को आपस में दबाकर रखने से दांत मजबूत बने रहते हैं, लू से बचने के लिए कानों को कपड़े से ढकें व घर से निकलने से पहले अधिकाधिक पानी पी लें, यदि ठंडी हवा लगने पर नाक से पानी आता हो, तो रात में दोनों कानों में रुई लगाकर सिर को मफलर से ढक कर सोएं, यदि लगातार बैठे रहने से कोई पैर सुन्न हो जाए, तो उसके विपरीत वाला कान पकड़ कर खींचें.

प्राकृतिक वेगों को न रोकें : कई बार व्यक्ति शरीर के प्राकृतिक वेगों को बार-बार रोकता रहता है, जिसकी वजह से शरीर में अनेक व्याधियां पैदा हो जाती हैं. अतः शरीर के किसी भी प्राकृतिक वेग को नहीं रोकना चाहिए, मलवेग को रोकने से पेट के निचले हिस्से में दर्द, कब्ज, गैस, अफारा पैदा होता है और रक्त दूषित होने लगता है, मूत्रवेग को रोकने से मूत्राशय व मूत्र नलिका में दर्द व शरीर में बेचैनी होने लगती है.

वीर्यवेग को रोकने से पेड़ू, अण्डकोष, किडनी व मूत्राशय में दर्द व सूजन हो सकती है, डकार को रोकने से छाती में भारीपन, पेट में गुड़गुड़ाहट व गले में फांस-सी लग सकती है, छींक रोकने से गर्दन में पीड़ा, सिर दर्द, माइग्रेन, मस्तिष्क विकार व इंद्रियां निर्बल होने की आशंका रहती है, उल्टी को रोकने से रक्त दोष, सूजन, लिवर विकार, खाज, जलन, छाती में भारीपन, खाने के प्रति अरुचि हो सकती है, अपान वायु (गैस) को रोकने से अफारा, थकान, पेट में दर्द, मल-मूत्र रुकावट व शरीर में वायु प्रकोप हो सकता है.

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