अगर दिल्ली मेट्रो की हेरिटेज लाइन नवंबर तक शुरू हो जाती है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। इससे पहले अगस्त में बदरपुर-आईटीओ लाइन का ट्रायल शुरु हुआ तब इसमें भी कई दिक्कतें आई थीं लेकिन इंजिनियरों और टेक्निशनों ने यह साबित कर दिया का मेहनत से मनमाफिक नतीजा जरूर मिलता है। हालांकि हेरिटेज लाइन का काम मेट्रो के लिए अब तक का सबसे मुश्किल टास्क रहा है। इस मेट्रो लाइन के रास्ते में इतिहास से लेकर जमीनी हक का मसला और भीड़भाड़ वाले इलाके आए।
इस कॉरिडोर में आठ सूचीबद्ध ऐतिहासिक धरोहर आते हैं। इसमें भी सबसे बड़ी चुनौती है दिल्ली गेट से जामा मस्जिद तक का स्ट्रेच। डीएमआरसी के प्रवक्ता अनुज दयाल ने बताया,’ऑर्कीअलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने हमारे काम शुरू करने से पहले ही कह दिया था कि हमें अपनी लोकेशन बदलनी पड़ेगी क्योंकि यहां स्टेशन बनाना ऐतिहासिक धरोहरों के पास निर्माण के नियमों का उल्लंघन होगा।’ पहले जामा मस्जिद स्टेशन को दरियागंज के सुभाष पार्क में बनाया जाना था। वहां सड़क पर ‘शाही सुनहरी मस्जिद’ है जोकि एक ऐतिहासिक इमारत है। डीएमआरसी का कहना था कि मेट्रो स्टेशन मस्जिद से 100 मीटर दूर है। लेकिन एएसआई ने कहा कि यह 100 मीटर की दूरी परिसर की दीवार से नापी जानी चाहिए। इसका मतलब था कि स्टेशन को चार-पांच मीटर और बढ़ाना। लेकिन यह परेशानी की शुरुआत भर थी।
जुलाई 2012 में स्थानीय लोगों ने सुभाष पार्क में सैकड़ों साल पुरानी एक दीवार पाई। दबा हुआ मस्जिद का ढांचा मिलने पर प्रॉजेक्ट के डिरेल होने की आशंका हुई क्योंकि यह मसला ऐतिहासिक और राजनीतिक दोनों एंगल ले सकता था। दयाल याद करते हुए बताते हैं,’लोगों का कहना था कि यह सम्राट अकबर के वक्त की मस्जिद का ढांचा था। यह सब तब हुआ जब हम जनपथ से मंडी हाउस की तरफ काम शुरू कर चुके थे।’ एएसआई ने यह तो कन्फर्म कर दिया कि यह ढांचा ऐतिहासिक स्मारक है लेकिन इसका सही तिथि-निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है। इस मसले पर इतिहासकार अभी काम कर रहे हैं। कुछ महीनों बाद प्रॉजेक्ट में और ज्यादा देरी होने के डर से डीएमआरसी ने स्टेशन को 25 मीटर बगल की तरफ और 75 मीटर आगे की तरफ बढ़ा दिया।
अगर दिल्ली मेट्रो की हेरिटेज लाइन नवंबर तक शुरू हो जाती है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। इससे पहले अगस्त में बदरपुर-आईटीओ लाइन का ट्रायल शुरु हुआ तब इसमें भी कई दिक्कतें आई थीं लेकिन इंजिनियरों और टेक्निशनों ने यह साबित कर दिया का मेहनत से मनमाफिक नतीजा जरूर मिलता है। हालांकि हेरिटेज लाइन का काम मेट्रो के लिए अब तक का सबसे मुश्किल टास्क रहा है। इस मेट्रो लाइन के रास्ते में इतिहास से लेकर जमीनी हक का मसला और भीड़भाड़ वाले इलाके आए।
इस कॉरिडोर में आठ सूचीबद्ध ऐतिहासिक धरोहर आते हैं। इसमें भी सबसे बड़ी चुनौती है दिल्ली गेट से जामा मस्जिद तक का स्ट्रेच। डीएमआरसी के प्रवक्ता अनुज दयाल ने बताया,’ऑर्कीअलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने हमारे काम शुरू करने से पहले ही कह दिया था कि हमें अपनी लोकेशन बदलनी पड़ेगी क्योंकि यहां स्टेशन बनाना ऐतिहासिक धरोहरों के पास निर्माण के नियमों का उल्लंघन होगा।’ पहले जामा मस्जिद स्टेशन को दरियागंज के सुभाष पार्क में बनाया जाना था। वहां सड़क पर ‘शाही सुनहरी मस्जिद’ है जोकि एक ऐतिहासिक इमारत है। डीएमआरसी का कहना था कि मेट्रो स्टेशन मस्जिद से 100 मीटर दूर है। लेकिन एएसआई ने कहा कि यह 100 मीटर की दूरी परिसर की दीवार से नापी जानी चाहिए। इसका मतलब था कि स्टेशन को चार-पांच मीटर और बढ़ाना। लेकिन यह परेशानी की शुरुआत भर थी।
जुलाई 2012 में स्थानीय लोगों ने सुभाष पार्क में सैकड़ों साल पुरानी एक दीवार पाई। दबा हुआ मस्जिद का ढांचा मिलने पर प्रॉजेक्ट के डिरेल होने की आशंका हुई क्योंकि यह मसला ऐतिहासिक और राजनीतिक दोनों एंगल ले सकता था। दयाल याद करते हुए बताते हैं,’लोगों का कहना था कि यह सम्राट अकबर के वक्त की मस्जिद का ढांचा था। यह सब तब हुआ जब हम जनपथ से मंडी हाउस की तरफ काम शुरू कर चुके थे।’ एएसआई ने यह तो कन्फर्म कर दिया कि यह ढांचा ऐतिहासिक स्मारक है लेकिन इसका सही तिथि-निर्धारण अभी तक नहीं हो पाया है। इस मसले पर इतिहासकार अभी काम कर रहे हैं। कुछ महीनों बाद प्रॉजेक्ट में और ज्यादा देरी होने के डर से डीएमआरसी ने स्टेशन को 25 मीटर बगल की तरफ और 75 मीटर आगे की तरफ बढ़ा दिया।