नमस्कार दोस्तों, आपका एक बार फिर से हमारी वेबसाइट में बहुत बहुत स्वागत है. यहाँ आपको राजीव जी द्वारा बताये गये हर प्रकार के घरेलू नुस्खे एवं औषधियां प्राप्त होंगी. तो दोस्तों आज की हमारी चर्चा का विषय है भारत के डॉक्टरों का सच्. तो जैसा की हम सबने पिछले आर्टिकल्स में पढ़ा है कि अधिकतर बीमारी होने के दो ही कारण है. एक तो गरीबी. जिन लोगो को खाना नही मिल पाता एनीमिया की कमी से मर जाते है. या फिर अमीरों को जिनको दवाईयां ऐसी दी जा रही है जिनका कोई फायदा ही नही है.
आपके मन में एक और प्रश्न आ सकता है कि सरकार के अधिकारी और मंत्री तो रिश्वत खाके इनको लाइसेंस दे देते हैं फिर हमारे डॉक्टर इन दवाओं को क्यों लिखते हैं? सरकार ने तो ठीक है अपनी इज्जत बेच दी, सम्मान बेच दिया रिश्वत खाकर, लाइसेंस दे दिया लेकिन डॉक्टर लिखता है प्रिस्क्रिप्शन में। दवा बनाएं कोई भी, लेकिन बिकवाता है उस दवा को डॉक्टर, बनाए कोई भी लेकिन प्रिस्क्रिप्शन में डॉक्टर लिखेगा, तभी तो कोई मरीज खरीदेगा।
बिना प्रिस्क्रिप्शन में लिखे यह दवाएं तो बिकती नहीं है तो डॉक्टर क्यों लिखते हैं प्रिस्क्रिप्शन में यह दवाएं? हमने इस पर जब रिसर्च किया तो पता चला कि डॉक्टर भी इस करप्शन में आकंठ डूबे हुए हैं। यह जो बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां है ,दवा बेचने वाले, यह डॉक्टर को भी रिश्वत देती हैं। मुझे बहुत खराब लग रहा है यह बोलते हुए कि हमारे दवा कंपनियों का कमीशन ले रहे हैं और उनके कमीशन के लालच में वह दवाएं लिख रहे हैं। जिन दवाओं को बंद करने की सिफारिश डब्ल्यूएचओ ने कर रखी है और हमने देखा, डॉक्टर जितना बड़ा है, उसका कमीशन उतना ही बड़ा है और अभी तो सीधे पैसा देते हैं। होता यह है कि आपको डॉक्टर ने एक प्रिस्क्रिप्सन स्लिप लिखी।
आप अगर दवा खरीदने गए तो मैंने जो इसमें कैलकुलेशन किए हैं और प्रमाण इकट्ठे किए हैं कि औसत हजार रुपए की दवा जो आप खरीद रहे हैं उसमें से 400 रुपय डॉक्टर के पास जा रहे हैं। जिसने वह स्लिप लिखा है ,40% कमीशन और यह कमीशन पैसे के रूप में डॉक्टर के पास सीधे जाता है। और भी कई कई स्वरुप में पहुंचता है। जैसे कई कंपनियां डॉक्टर को कार खरीद कर गिफ्ट देती है ,कई कंपनियां मोटरसाइकिल स्कूटर खरीद कर गिफ्ट कर देती है, कभी एसी और रेफ्रिजरेटर खरीदकर गिफ्ट कर देती है, कभी उनके फैमिली को स्विट्जरलैंड का टिकट दे देती है, हांगकांग सिंगापुर चले जाते हैं और खरीदारी करके आते हैं, वही पैसा पे करते हैं उनकी खरीददारी का। इसके बदले में प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं उस कंपनी का ।
इससे भी ज्यादा शर्मनाक स्थिति है वह यह कि डॉक्टर के बच्चे जो पढ़ाई करने के लिए विदेशों में हैं, उनका खर्चा ही यह कंपनियां उठाती हैं और डॉक्टर के घरों में जो कार चलती है, उसमें डीजल भरने का खर्चा कंपनी उठाती है, टेलीफोन बिल कंपनी भरती है, उनके घरों के बिजली बिल कंपनी भर्ती है, इतना बुरा हाल है तो डॉक्टर क्या करते हैं, जिन कंपनियों से कमीशन आ रहा है, जहां से गिफ्ट आ रहा है, उनका वह फेवर करते हैं और फेवर उनका यही होता है कि जो दवाएं कंपनियां कहती हैं, वह उसका प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं। हमारे देश में सभी कंपनियों ने मेडिकल रिप्रजेंटेटिव नाम के प्राणियों को पाला हुआ है, यह मेडिकल रिप्रजेंटेटिव का प्रोग्राम एक ही है, हर डॉक्टर को भ्रष्ट बनाना। सीधे सीधे या परोक्ष रूप से। एम आर जाते हैं क्लीनिक में और सीधे-सीधे कहते हैं कि इस मेडिसिन का प्रिस्क्रिप्शन करो तो इतना पैसा और डॉक्टर उसके कहने पर सब करते हैं। अब यह जो मेडिकल प्रोफेशन है, यह सेवा नहीं है, ये धंधा है. अंत में जो मरता है और फँसता है, वह आप हैं और मैं हूं, हमसब हैं, जो एक बीमार के रूप में किसी डॉक्टर के पास जाते हैं। पता नहीं, कब किसको लालच आए और वह कौन सी मेडिसिन लिखे और हमारी जान निकल जाए। हम क्या कर पाएंगे? कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि डॉक्टर मतलब, मार देने का लाइसेंस लिया हुआ एक व्यक्ति। उसने कुछ भी उल्टा सीधा कर दिया ,आप कुछ नहीं कर सकते, ऐसे ही रोगी मरते हैं।
आपको मैं सुनाऊंगा तो हैरान हो जाएंगे। दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में कानून है कि अगर कोई सज्जन किसी माँ बहन का गर्भाशय रिमूव करें तो उसको यह प्रूफ करना पड़ता है कि गर्भाशय निकालना क्यों जरूरी था और प्रूव करने के लिए यह प्रूव करना पड़ता है कि ऐसा कौन सा कारण था गर्भाशय में? ऐसा कौन सा कारण था कि उस मां की जान जाने वाली थी ?यह प्रूव करना पड़ता है और बाय द वे, किसी गर्भाशय को काटकर डॉक्टर ने अगर फेंक दिया, मर जायेगा, ऐसा बुरी तरह से रगड़ देते हैं। गर्भाशय आपने रिमूव किया, दिखाना पड़ता है उनको। काउंसिल चेक करती है कि यह ऑपरेशन सही किया या फालतू में किया। अगर कोई मां का गर्भाशय ऐसे ही निकाल दिया और उसमें कुछ नहीं है, ना ट्यूमर है, ना कोई गांठ है, डॉक्टर ने निकाल दिया, वह डॉक्टर तो मर जाएगा। अमेरिका-कनाडा न्यूजीलैंड में जिंदगी भर जेल में काटनी पड़ेगी उसको, जमानत नहीं होती उसकी। 50 देशों में ऐसे कानून है
तो ये कडवा सच है की दवाई चाहे कोई भी बनाये बेचे चाहे कोई भी. लेकिन बिकवाता तो हमारा डॉक्टर ही है उन मेडिसिन्स को. क्यों की बिना प्रिस्क्रिप्शन के तो कोई भी दवाई नही बिक सकती. राजीव जी ने बताया की जब उन्होंने डॉक्टरों पर रिसर्च की तो उन्हें पता चला की केवल नेता लोग ही करप्शन में नही शामिल बल्कि डॉक्टर भी इस भ्रस्टाचार में अँधा-दुंध डूबे हुए हैं. बड़ी बड़ी मेडिसिन बनाने की कम्पनीज डॉक्टर्स को भी रिश्वत देती हैं. ताकि डॉक्टर ये दवाई मरीज़ तक पहुंचा सके. इस बात को कहते हुए शर्म से सिर झुक जाता है कि डॉक्टर इन गलत दवाई को बेचने की कमीशन लेते हैं. और भारत में अधिकतर बीमारीओं और मौतों का कारण यहीं दवाईयां है. तो हमारी जान के दुश्मन सिर्फ नेता लोग या सरकार ही नही बल्कि सबसे उपर हमारे अपने डॉक्टर है जो कि पैसे के लिए अपना ईमान बेच चुके हैं.
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