ब्रिटिश सरकार ने भारत के देशी उद्योग धंधों को नष्ट कर दिया था। कच्चा माल ब्रिटेन जाता था और बदले में तैयार माल आता था। इस प्रकार देश का शासन विशुद्ध व्यापारिक ढंग से संचालित था। स्वतंत्रता के पश्चात देशवासियों को आशा बंधी थी कि रोजगार में वृद्धि से देश में खुशाहाली आएगी और देश फिर से सोने की चिड़िया बन सकेगा। भारत में प्राकृतिक और मानव संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। यहाँ तक कि देश में उपलब्ध संसाधनों की अमेरिका, चीन,जापान और दक्षिण अफ्रिका से तुलना की जाये तो भी भारत किसी प्रकार से पीछे नहीं है। जापान में तो मात्र 1/6 भू भाग ही समतल और कृषि योग्य है और वहां बार बार भूकंप आते रहते हैं किन्तु फिर भी वहां कुछ घंटों में ही जनजीवन सामान्य हो जाता है। भारत की स्थिति पर नजर डालें तो यहाँ आम व्यक्ति को पेयजल, बिजली, सडक जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए महानगरों से लेकर ढाणियों तक वंचित रहना पड़ता है और धरने प्रदर्शन करने पड़ते हैं फलत: उत्पादक समय नष्ट होता है। हमारी सरकारें वर्षा अच्छी होने पर भी बिजली पर्याप्त नहीं दे पाती और बहाने बनाती हैं कि कोयला खदान में पानी भर जाने से कोयला नहीं पहुँच सका, बिजली की लाइनें खराब हो गई। वहीं वर्षा की कमी होने से सरकार कहती है कि गर्मी के कारण फसलों की सिंचाई व सामान्य उपभोग में बढ़ोतरी के कारण बिजली की कमी आ गयी है। ठीक यही हालत पेयजल की है। हमारी सड़कें भी बरसात से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और गर्मी में आंधियों से सड़कें मिटटी से सन जाती हैं।कुल मिलाकर प्रकृति चाहे हमारे पर मेहरबान या कुपित हो, हम दोनों ही स्थितियों का मुकाबला करने के स्थान पर बहाने गढ़ने में माहिर है। नगरपालिका क्षेत्र में नालों की सफाई के लिए कई दिनों तक जलापूर्ति रोकनी पड़ती है।
आंकड़ो के साथ इस विडियो में देखिए भारत में विदेशी कंपनियों की लूट >>
इन सभी के लिए संसाधनों की कमी एक बहुत बड़ा कारण बताया जाता है किन्तु चुनाव नजदीक आते ही संसाधनों का जुगाड़ हो जाता है और जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए सडक, बिजली और पानी की व्यवस्था को कुछ समय के लिए सुचारू बना दिया जाता है और वोटों के ठेकेदारों को थैलियाँ भेंट कर दी जाती हैं। फिर 5 वर्ष के लिए राज्य की पुन:स्थापना हो जाती है। यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिस कारण देश में आर्थिक विकास की गति मंद रही है और स्वतंत्रता के वृक्ष के फल आम आदमी की पहुँच से बाहर हैं।
देश नौकरशाही और लालफीताशाही के शिकंजे से आज भी मुक्त नहीं है अत; विकास की गति धीमी है। भ्रष्टाचार, सुरक्षा और न्याय व्यवस्था की स्थिति तो और भी खराब है अत: आम व्यक्ति अपनी पूर्ण क्षमता से कार्य नहीं कर पाता है। देश के आम नागरिक को कोई उपक्रम शुरू करने से पूर्व अपनी पूंजी की सुरक्षा और सरकारी तंत्र की भेंटपूजा के विषय में कई बार सोचना पड़ता है।
दूसरी ओर जापान, जो द्वितीय विश्व युद्ध में 1946 में जर्जर हो गया था विश्व पटल पर आज एक गण्यमान्य स्थान रखता है। दक्षिण अफ्रिका को जो भारत से 14 वर्ष बाद आजाद हुआ उसने भी काफी तेजी से विकास किया है और आज वहां प्रति व्यक्ति आय (10,973 डॉलर) भारत (3,694) से 3 गुणी है वहीं युद्ध जर्जरित व्यवस्था का पुनर्निर्माण करने के बाद आज जापान की प्रति व्यक्ति आय (34,740) भारत से 9 गुणा है। यही नहीं भारत की प्रति व्यक्ति आय विश्व की प्रति व्यक्ति औसत आय (10,700) से भी एक तिहाई है। आज जिस गति से भारत में हवाई जहाज चलते हैं उस गति से तो जापान में रेलगाड़ी चलती है। भारत में देशी उद्यमियों को जिन छूटों से इनकार किया जाता है वे छूटें विदेशी निवेशकों को दे दी जाती हैं। जिस दर पर विदेशों से घटिया गेहूं आयात किया जाता है वह समर्थन मूल्य देश के मेहनतकश किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जाता है। क्या लोकतंत्र का यही असली स्वरूप है जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजो की लाठियां और गोलियां खाई थी या देश का नेतृत्व फिर विदेशी और पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली मात्र रहा गया है।
देश की खराब हालत का जिक्र करने पर नेता लोगों का बचाव होता है कि बड़ा क्षेत्र होने के कारण नियंत्रण नहीं हो पाता है। किन्तु उनका यह बहाना भी बनावटी मात्र है। एक छोटा सा महावत अपनी युक्ति, इच्छाशक्ति और कौशल के आधार पर विशालकाय हाथी पर भी नियंत्रण कर लेता है। दूसरी और हमने इसी तर्क पर झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य भी बनाकर देख लिए हैं किन्तु इन राज्यों में अराजकता, असुरक्षा और सार्वजानिक धन की लूट में बढ़ोतरी ही हुई है कोई कमी नहीं आई है। छोटे प्रदेश तो राज नेताओं को अधिक पदों का सृजन कर अपने स्वामीभक्तों को उपकृत करने के लिए चाहिए। वास्तव में आज भारत में जनता के सुख-दुःख से राजनीति का कोई सरोकार नहीं रह गया है।
जब देश में निगरानी, नियंत्रण और शासन व्यवस्था मजबूत हो तो नीजी क्षेत्र से भी अच्छा काम लिया जा सकता है ।
65 साल से झूठे तर्क देकर भारत सरकार विदेशी कंपनियों को भारत बुला रही हैं| और आज हालत यह हो गई है कि 6000 विदेशी कंपनिया भारत में घुस चुकी हैं । जब कि इतिहास इस बात का गवा है
। कि गल्ती से हमने एक ईस्ट इंडिया कंपनी को बुला लिया था और 250 के लिये अपनी आजादी गवा बैठे थे ।
फ़िर आजादी पाने के लिये (भगत,सिहं उधम सिहं , सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल,नाना सहिब पेश्व,झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ,वीर सावरकर ) औरऐसे 7 लाख 32 हजार
क्रतिंकरियो को अपना बलिदान देना पड़ा तब जाकर आजादी मिली । लेकिन आज तो 5000 विदेशी कंपनिया हो गई हैं ।
क्या ये हमारे देश कि आजादी के लिये दुबारा खतरा नहीं है ?? जब ये सवाल भारत सरकार से पूछा जाता हैं तो भारत सरकार विदेशी कंपनियों को भारत में बुलाने के लिये 4 तर्क देती हैं. !
1) विदेशी कंपनिया पूंजी लाती है।
2) विदेशी कंपनिया तकनीकी लाती हैं !
3) विदेशी कंपनिया एक्सपोर्ट बढ़ाती है ।
4) विदेशी कंपनिया रोजगार बढ़ाती हैं |
ये 4 तर्क कितने झूठे हैं उनका पुरा खुलासा राजीव दीक्षित जी ने पुरे दस्तावेजो और सबूतो के साथ इस विडियो में किया हैं । कृप्या एक बार पूरा विडियो देखें और इसे भारत के अंतिम आदमी व्यकित तक पहुँचाये इस विडियो में आपको पता चलेगा पिछले 64 साल से देश की लूट हमारे घर से हो रही हैं ।