(क्यों कार्यकताओ को राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए कार्य करना चाहिए ? और क्यों गरीब बच्चों को पढ़ाने की सेवा करना मेरे विचार में समय की बर्बादी है ? और आखिर क्यों सीनियर कार्यकर्ता जूनियर कार्यकर्ताओ को गरीबो की सेवा के लिए उनके बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के लिए प्रेरित करते है और राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी कानूनी ड्राफ्ट्स का विरोध करते है ?) .
अध्याय . 1. कार्यकर्ता, उनके प्रकार और उनकी गतिविधियों के बारे में 2. शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सीनियर कार्यकर्ता 3. आपके विचार में सबसे कम बुरा तरीका कौन सा है —- गरीब बच्चो को मुफ्त पढ़ाना या राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून को लागू करवाना ? 4. क्यों सीनियर कार्यकर्ता राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का विरोध और गरीब बच्चो को मुफ्त पढ़ाने की गतिविधियों को प्रोत्साहित करते है ? 5. शिक्षा के क्षेत्र में क्लास रूम अध्ययन की सीमाएं 6.
सारांश . ====== . . अध्याय — 1 : कार्यकर्ता, उनके प्रकार और उनकी गतिविधियों के बारे में . कार्यकर्ता शब्द के लिए मेरी परिभाषा : . एक कार्यकर्ता वह व्यक्ति है जो यह कहता है कि ‘मैं अपने देश की मौजूदा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मेरे समय, मेरा पैसा और मेरी ऊर्जा का एक अंश खर्च करूँगा, चाहे इसके बदले मुझे कोई धन, प्रतिष्ठा, पद, वोट आदि प्राप्त हो या न हो‘। ऐसा कोई भी व्यक्ति जो यह धारणा करता है कि ‘मैं तब ही किसी सकारात्मक बदलाव के लिए कोई प्रयास करूँगा जबकि मुझे इस प्रयास के प्रतिफल में पहले या उपरान्त पैसा/पद/वोट/प्रतिष्ठा आदि हासिल हो, तो असल में ऐसा व्यक्ति एक अच्छा कारोबारी या राजनेता है, कार्यकर्ता नहीं। क्योंकि कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो प्रयास के प्रतिफल में किसी प्रकार की आकांक्षा या शर्त रखता हो कार्यकर्ता नहीं है। चाहे प्रतिफल की ऐसी अपेक्षा प्रयास के पहले रखी जाए या बाद में। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक गैर-कार्यकर्ता नागरिक बुरा व्यक्ति नहीं है, जब तक कि वह कार्यकर्ता होने का ‘ढोंग’ नही करे। . मोटे तौर पर मैं कार्यकर्ताओ का वर्गीकरण इस प्रकार करता हूँ : .
1. सीनियर कार्यकर्ता — ऐसे कार्यकर्ता जो कई वर्षो से व्यवस्था परिवर्तन के लिए कार्य कर रहे है। वे प्रति सप्ताह 20 या उससे अधिक घंटे कई वर्षो से इस कार्य को दे रहे है तथा कई जूनियर कार्यकर्ता उनका अनुसरण करते है। मैं खुद को इस श्रेणी में रखता हूँ। .
2. जूनियर कार्यकर्ता — ऐसे कार्यकर्ता जो सप्ताह में 4 से 10 घंटे प्रति सप्ताह खर्च करते है। तथा समयाभाव के कारण मौलिक कार्य करने में अक्षम है अत: सामान्यतया किसी सीनियर कार्यकर्ता या एक से अधिक सीनियर कार्यकर्ताओ को फॉलो करते है। .
3. 80-G कार्यकर्ता उर्फ़ फर्जी कार्यकर्ता — ऐसा व्यक्ति जो कि कार्यकर्ता नहीं है, लेकिन कार्यकर्ता होने का नाटक कर रहा है। ऐसे व्यक्तियों का मुख्य धंधा सरकारी अनुदान खाना, पैसा कमाना, ख्याति और राजनैतिक रसूख हासिल करना होता है !!! मेरे हिसाब से महात्मा अरविन्द गांधी इसका सटीक उदाहरण है। उन्होंने ‘इण्डिया अगेंस्ट करप्शन‘ की स्थापना निश्चित तौर पर राजनैतिक रसूख हासिल करने के लिये ही की थी। अत: मेरे विचार में महात्मा अरविन्द गांधी एक 80-G कार्यकर्ता या फर्जी कार्यकर्ता थे और है। संघ का शीर्ष नेतृत्व ‘खाली समय में‘ बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवा जैसे कि खून इकट्ठा करना, राहत कार्य करना और गीत वगेरह गवाने आदि कार्य करने पर जोर देता है लेकिन चुनावो में बीजेपी के लिए वोट इकट्ठे करता है !!! अत: मेरे विचार में संघ का शीर्ष नेतृत्व जैसे कि मोहन भागवत वगेरह भी 80-G कार्यकर्ता यानी कि फर्जी कार्यकर्ताओ की श्रेणी में शामिल है। एक पेशेवर जो कि खुले तौर पर ख्याति और पैसा कमाने के मकसद से कार्य कर रहा है, 80-G कार्यकर्ता नहीं है बल्कि वह एक गैर-कार्यकर्ता या साधारण नागरिक है। देश को डुबोने में 80-G कार्यकर्ता माने फर्जी कार्यकर्ताओ की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। इसका और अधिक स्पष्टीकरण में फिर करूँगा। .
4. गैर-80-G कार्यकर्ता या सच्चे कार्यकर्ता — ये सही अर्थो में असली कार्यकर्ता है, जो कि वास्तविक अर्थो में सकारात्मक बदलाव लाने के संकल्प और उद्देश्य के साथ कार्य करते है। किसी भी देश की उन्नति इनके क्रिया कलापो और संख्या पर निर्भर करती है। .
5. 80-G कार्यकर्ता और गैर-80-G कार्यकर्ताओं की पहचान को लेकर असमंजस —- लगभग सभी कार्यकर्ता यह दावा करते है कि वे सच्चे कार्यकर्ता है और बिना किसी पद/धन की अपेक्षा के देश में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कार्य कर रहे है। अत: कौन सच्चा कार्यकर्ता है और कौन फर्जी , इसका फैसला स्वयं कार्यकर्ताओ को ही करना चाहिए। .
6. राजनैतिक कार्यकर्त्ता —- ऐसे कार्यकर्ता जो कि अंशकालिक या पूर्णकालिक राजनैतिक गतिविधियों में लिप्त है, और राजनैतिक व्यवस्था में बदलाव लाने की मंशा रखते है। .
7. अ–राजनैतिक कार्यकर्ता — कार्यकर्ता, जो दावा करते है कि उनके कोई राजनैतिक उद्देश्य नहीं है। कई कार्यकर्ता कहते है कि उनका इरादा राजनैतिक बदलाव लाना नहीं है, तथा बहुधा वे यह कहने में गर्व महसूस करते है कि उनकी रुचि राजनीति में नहीं है। .
8. गैर–चुनावी राजनैतिक कार्यकर्ता — राजनैतिक कार्यकर्ताओ के दो प्रकार है : गैर-चुनावी कार्यकर्ता और चुनावी कार्यकर्ता। गैर-चुनावी कार्यकर्ता हमेशा यह कहते रहते है कि वे देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते है, लेकिन वे इसके लिए कभी भी चुनाव नहीं लड़ेंगे और न ही कभी किसी राजनेता या राजनैतिक पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे। मिसाल के लिए किरण बेदी और महात्मा अरविन्द फांदी हमेशा से ये कहते रहे कि ‘वे देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव चाहते है , लेकिन वे कभी भी चुनाव नहीं लड़ेंगे !!! तब ये लोग गैर-चुनावी कार्यकर्ता थे। दुरात्मा अन्ना भी एक गैर-चुनावी कार्यकर्ता है, क्योंकि उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा और न ही कभी किसी पार्टी या नेता के लिए प्रचार किया। .
9. चुनावी कार्यकर्ता — ऐसे कार्यकर्ता, जो बहुधा यह कहते है कि ‘मैं देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव चाहता हूँ और इस उद्देश्य की पूर्ती के लिए मैं चुनाव लड़ूंगा तथा अन्य किसी पार्टी या नेता के लिए प्रचार भी करूँगा’। मैं खुद को इस श्रेणी में रखता हूँ। .
गैर–कार्यकर्ता नेता — कई राजनेता यह कहते है कि ‘उन्हें व्यवस्था में जो भी बदलाव लाना है, वे चुनाव जीतने के बाद लेकर आएंगे। उनका दावा होता है कि तुम मुझे पद दो मैं तुम्हे बदलाव दूंगा। पद नहीं तो बदलाव भी नहीं !!! वे ऐसा कभी नहीं कहते चाहे मुझे वोट या पद मिले या नहीं मिले, तब भी मैं सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयास करूँगा। उदाहरण के लिए मोदी साहेब कभी भी कार्यकर्ता नहीं रहे, जबकि वे राजनेता रहे है। यही स्थिति अन्य कांग्रेस और बीजेपी नेताओ पर भी लागू होती है। इसके उलट आम आदमी पार्टी के सभी नेता कार्यकर्ता रहे है। (हालांकि उनका दावा है कि वे आज भी कार्यकर्ता है) !!! .
कार्यकर्ताओ का सामान्य विभक्तिकरण : .
1. वरिष्ठ गैर-80-G कार्यकर्ता ——— ऐसा कार्यकर्ता जो यह दावा करता है कि उसका लक्ष्य देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाना है, न कि ख्याति, धन और राजनैतिक पद हासिल करना। असल में भी यह व्यक्ति इसी भावना के साथ अपने उद्देश्य के लिए कार्य करता है। .
2. वरिष्ठ 80-G कार्यकर्ता ——- ऐसा कार्यकर्ता जो यह दावा करता है कि उसका लक्ष्य देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाना है, न कि ख्याति, धन और राजनैतिक पद हासिल करना। लेकिन वास्तव में यह झूठ बोल रहा होता है, और इसका उद्देश्य ख्याति, धन और राजनैतिक पद हासिल करना होता है। .
3. कनिष्ठ गैर-80-G कार्यकर्ता —- ऐसा कार्यकर्ता जो अपेक्षाकृत युवा है तथा देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए वह सप्ताह में 5 से 15 घंटे व्यतीत करता है। उसके पास वैकल्पिक कॅरियर है और उसकी वरिष्ठ कार्यकर्ता बनने में कोई रुचि नहीं होती। .
4. कनिष्ठ 80-G कार्यकर्ता —— ऐसा कार्यकर्ता जो अपेक्षाकृत युवा है तथा अपना खुद का एनजीओ बनाकर सरकारी अनुदान खाने, चंदे इकट्ठे करने, वोट खींचने आदि के उद्देश्य से सप्ताह में 5 से 15 घंटे व्यतीत करता है।
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अध्याय – 2. शिक्षा के क्षेत्र में वरिष्ठ कार्यकर्ता . अब मैं दो प्रकार के वरिष्ठ कार्यकर्ताओ की तुलना करूँगा, जिनका दावा है कि वे गैर-80G कार्यकर्ता है और वे देश की व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य के लिए कार्य कर रहे है, न कि निजी स्वार्थो के लिए। .
(1). पहले समूह के वरिष्ठ कार्यकर्ता कोई न कोई एनजीओ बनाकर गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार से पैसा प्राप्त करते है और कनिष्ठ गैर-80G कार्यकर्ताओ को इस काम के लिए नियुक्त करते है। उनका दावा होता है कि उनका उद्देश्य धन ख्याति अर्जित करना नहीं है, और न ही वे भविष्य में प्राप्त होने वाले किसी राजनैतिक पद/लाभ की लालसा में कार्य कर रहे है। वे कहते है, हमारा लक्ष्य गरीब बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाकर समाज को बेहतर बनाना है। वे कनिष्ठ कार्यकर्ताओ को गरीब बच्चो को निशुल्क या बेहद कम शुल्क में पढ़ाने के लिए प्रेरित करते है। .
(2). वरिष्ठ कारकर्ताओ के दूसरे समूह में मेरे जैसे वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल है। हमारे पास कोई एनजीओ या कोई राजनैतिक दल हो सकता है, या नही भी हो सकता है। हम कनिष्ठ गैर-80G कार्यकर्ताओ से कहते है कि उन्हें शिक्षा सुधार के लिए राईट टू रिकॉल कानूनी ड्राफ्ट को गैजेट में प्रकाशित करवाने का प्रयास करना चाहिए, गरीब बच्चो को निशुल्क शिक्षा देने जैसे सेवा कार्य करना विशुद्ध रूप से समय की बर्बादी है। मेरे विचार में शैक्षिक सुधारो के लिए कार्यकर्ताओ को अपनी गतिविधियों का पूरा समय सिर्फ आवश्यक क़ानून ड्राफ्ट्स जैसे राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, स्कूल स्टाफ पर ज्यूरी सिस्टम, सात्य प्रणाली आदि के प्रचार पर ही लगाना चाहिए। . ऐसे वरिष्ठ कार्यकर्ता जो एनजीओ वगेरह चलाकर गरीब बच्चो को पढ़ाने का काम करते है, हमेशा राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, स्कूल स्टाफ पर ज्यूरी सिस्टम, सात्य प्रणाली आदि कानूनी ड्राफ्ट्स का विरोध करते है। असल में वे किसी भी प्रकार की क़ानून ड्राफ्ट्स आधारित गतिविधियों को ही खारिज़ कर देते है !!! इनमें से कई यह बात गर्व से कहते है कि ‘हम किसी कानूनी ड्राफ्ट का विरोध और समर्थन करके अपना समय खराब नहीं करते’ !!! वे क़ानून ड्राफ्ट्स के समर्थन या विरोध को एक ‘राजनैतिक कदम’ बताते है, और चूंकि वे एक अराजनैतिक व्यक्ति है इसलिए क़ानून ड्राफ्ट्स को राजनैतिक बताकर खारिज कर देते है !!! वे कनिष्ठ कार्यकर्ताओ को भी यही सलाह देते है कि उन्हें क़ानून ड्राफ्ट्स पर अपना समय बर्बाद करने से बचना चाहिए और गरीब बच्चों को पढ़ाने पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए। . राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का विरोध करने की बात तो जाने दीजिये, वे ऐसे किसी भी क़ानून ड्राफ्ट्स देने से भी इंकार कर देते है जिनसे भारत में शैक्षिक सुधार किये जा सके !!!
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अध्याय – 3 : आपकी राय में कौनसी गतिविधि सबसे कम अकार्यकुशल है ? .
राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए कार्य करना या सीधे गरीब बच्चो को पढ़ाने के सेवा कार्य करना ? . तो मैं सभी कनिष्ठ गैर-80G कार्यकर्ताओ के सामने निम्नलिखित प्रश्न रखता हूँ : .
1. कौनसी कार्य योजना सबसे कम अकार्यकुशल है —–
(अ) गरीब बच्चों को पढ़ाना और सरकारी स्कूलों को सुधारने के लिए आवश्यक कानूनो का विरोध करना
(ब) गरीब बच्चों को पढ़ाने के सेवा कार्यो का विरोध करना और सरकारी स्कूलों को सुधारने के लिए आवश्यक राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, ज्यूरी सिस्टम और सात्य प्रणाली का विरोध करना। . आइये 2015 के कुछ आंकड़ों का अवलोकन करें। भारत की जनसँख्या 125 करोड़ है, जिसमे से 30 बालक 5 वर्ष से 18 वर्ष के बीच की आयु वर्ग के है। मान लीजिये कि प्रति 100 छात्रों को शिक्षा देने के लिए हमें एक शिक्षक की आवश्यकता है। इस स्थिति में हमें 40 घंटे प्रति सप्ताह शिक्षण देने वाले 30 लाख पूर्णकालिक शिक्षको की आवश्यकता होगी। और यदि इस कार्य को हम अंशकालिक शिक्षको द्वारा संपन्न कराना चाहते है, जो कि प्रति सप्ताह 10 घंटे शिक्षण दें तो हमें 1 करोड़ 20 लाख कार्यकर्ता शिक्षको की व्यवस्था करनी पड़ेगी। . हमारे देश में ऐसे कितने कार्यकर्ता है जो प्रति सप्ताह 10 घंटे इस कार्य पर खर्च करने की इच्छा रखते है ? मेरा इस सम्बन्ध में अनुमान है कि ऐसे कार्यकर्ताओ की संख्या 10 लाख से अधिक नहीं हो पाएगी, जो 10 घंटे प्रति सप्ताह गरीब बच्चो को शिक्षण देने को तैयार हो। इस पर भी ये कार्यकर्ता अपने समय और ऊर्जा का एक हिस्सा स्वास्थ्य, सफाई अभियान, भ्रस्टाचार विरोधी प्रदर्शन आदि गतिविधियों पर भी खर्च करते है, अत: मेरा आकलन है कि हम 10 लाख कार्यकर्ता भी नही जुटा पाएंगे। दूसरे शब्दों में जहां हमें सभी बच्चों को शिक्षण देने के लिए 1 करोड़ 20 लाख कार्यकर्ताओ की आवश्यकता है, हमें उसका 10% भी उपलब्ध नहीं है। .
इसलिए मेरे विचार में कार्यकर्ताओ को सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने पर ध्यान देना चाहिए ताकि सरकारी सेवा में कार्यरत लाखों शिक्षक 30 करोड़ छात्रों को कुशलता से शिक्षा प्रदान करें। कार्यकर्ताओ को सरकारी स्कूलों-स्टाफ प्रबंधन को ज्यादा बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए ताकि और भी अधिक अध्यापको को कम लागत पर पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जा सके। . इसके अतिरिक्त, हमें सबसे ज्यादा ध्यान छात्रों को पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध करवाने पर देना चाहिए, ताकि छात्र प्रेरित हो। हमें ऐसे माहौल की रचना करने की जरुरत है, जिससे छात्र अपना अधिकतम समय ‘सीखने’ में बितायें और सीखने के लिए प्रेरित हो। इस माहौल को बनाने के लिए हमें सात्य प्रणाली की आवश्यकता है। सात्य प्रणाली में कक्षा 1 से कक्षा 12 तक के छात्रों के जिला स्तर पर प्रत्येक दूसरे सप्ताह, राज्य स्तर पर प्रत्येक तीसरे महीने और राष्ट्रीय स्तर पर हर वर्ष कॉमन टेस्ट लिए जाते है !!! ये परीक्षाएं विज्ञान तथा गणित जैसे महत्त्वपूर्ण विषयो के लिए आयोजित की जाती है। इस प्रकार की नियमित परीक्षाओ से छात्रों को अपने अध्ययन के स्तर की जानकारी बनी रहती है, कि कौन छात्र अपनी कक्षा, राज्य तथा देश की वरीयता सूची में किस स्थान को धारण करता है। इससे छात्रों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का जन्म होता है, और अपनी वरीयता बढ़ाने के लिए छात्र लगातार मेहनत करके अपना प्रदर्शन सुधारने का प्रयास करते है। सात्य प्रणाली, राईट टू रिकॉल शिक्षा अधिकारी और ज्यूरी सिस्टम के लिए राईट टू रिकॉल ग्रुप द्वारा प्रस्तावित कानूनी ड्राफ्ट्स के विवरण यहां देखे जा सकते है :https://facebook.com/notes/10150425669141922 . सात्य प्रणाली को लागू करने के लिए राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, राईट टू रिकॉल शिक्षा राज्य मंत्री और राईट टू रिकॉल केंद्रीय शिक्षा मंत्री क़ानून अनिवार्य है, तथा साथ ही ऐसी प्रणाली को लागू करने के लिए हमें हजारों तकनीशियनो की आवश्यकता होगी। सिर्फ 5 से 10 घंटे प्रति सप्ताह देने वाले कुछ लाख कार्यकर्ता एक तहसील स्तर की परीक्षा भी आयोजित करवाने के सामर्थ्य से वंचित है, जिला/राज्य/राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएं तो बहुत दूर की कौड़ी है। कुल मिलाकर ‘कार्यकर्ताओ द्वारा शिक्षण’ फार्मूले में केंद्रीय स्तर की अनवरत प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करवाना असंभव है, और छात्रों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर सीखने का माहौल रचने के लिए ऐसी परीक्षाओ की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। . एक ऐसा कनिष्ठ 80G कार्यकर्ता जो एनजीओ वगेरह बनाकर सरकारी ग्रांट खाना चाहता है और मौका लगने पर ख्याति, धन और वोट आदि भी अर्जित करना चाहता है, तो यह स्तम्भ ऐसे कार्यकर्ताओ के लिए नहीं है। क्योंकि ऐसे कार्यकर्ताओ के लिए गरीबों को पढ़ाकर सेवा करना एक अच्छा ‘व्यवसाय‘ है। . मेरे सुझाव सिर्फ ऐसे कनिष्ठ गैर-80G कार्यकर्ताओ के लिए है, जिनका उद्देश्य सरकारी अनुदान और वोट खींचना नहीं है बल्कि उनका लक्ष्य भारत को मजबूत और समृद्ध बनाना है, और शैक्षिक सुधार भी उनके लक्ष्य में शामिल है। जबकि एक सीनियर कार्यकर्त्ता जो एनजीओ वगेरह का संचालन करता है, का कनिष्ठ कार्यकर्ताओ से कहना है कि उन्हें राइट टू रिकॉल कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने के लिए प्रयास करके अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए बल्कि ‘सीधे’ गरीब बच्चो को पढ़ाना चाहिए। क्योंकि राईट टू रिकॉल कानूनी ड्राफ्ट कभी भी गैजेट में प्रकाशित नहीं हो सकेंगे जबकि गरीब बच्चो को पढ़ाने से छोटी अवधि में ही कम से कम कुछ दिखने वाला परिणाम तो हासिल हो ही जाएगा।
सार .
1. तुम्हारी संख्या सिर्फ 10 लाख है और यह बढ़कर 20 लाख होने की उम्मीद न के बराबर है। इसके अलावा यह भी तय है कि तुममें से कई कार्यकर्ता शिक्षा से इतर अन्य गतिविधियों में भी हिस्सा लेंगे , जिससे तुम्हारी संख्या और भी घटेगी। कुल मिलाकर तुम 1 से 5 लाख के अंदर अंदर सिमट जाओगे। .
2. तुम ‘सीधे’ 1 करोड़ बच्चो को भी नहीं पढ़ा सकते, 30 करोड़ तो तुम्हारी क्षमता से 30 गुना ज्यादा है। .
3. यदि तुम प्रधानमन्त्री पर दबाव बनाते हो कि वे —- १) राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, राइट टू रिकॉल शिक्षा राज्य मंत्री, राइट टू रिकॉल केंद्रीय शिक्षा मंत्री २) सरकारी स्कूल स्टाफ पर ज्यूरी सिस्टम ३) सात्य प्रणाली के कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करें तो पूरे देश के सरकारी स्कूलों में चमत्कारिक सुधार होंगे और देश के सभी 30 करोड़ छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। . इसलिए मेरे विचार में यदि तुम्हारा लक्ष्य देश के सभी 30 करोड़ बच्चो को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना है तो मेरे विचार में सबसे कम अकार्यकुशल तरीका यह है कि अपना समय राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी के क़ानून को गैजेट में प्रकाशित करवाने में लगाया जाए। मेरे विचार किसी को अपने समय का एक मिनिट भी ‘सीधे‘ बच्चो को पढ़ाने पर बर्बाद नहीं करना चाहिए।
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अध्याय – 4. क्यों वरिष्ठ कार्यकर्ता राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का विरोध करते है और कनिष्ठ कार्यकर्ताओ को यह समझाने पर जोर देते है कि उन्हें गरीब बच्चो को पढ़ाने का कार्य करना चाहिए ? . जहां तक मैं सोचता हूँ ऐसे सभी कनिष्ठ कार्यकर्ताओ को, जो भारत में शैक्षिक सुधार चाहते है, अपना पूरा समय राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, ज्यूरी सिस्टम सात्य प्रणाली आदि कानूनी ड्राफ्ट्स को गैजेट में प्रकाशित करवाने पर ही ध्यान देना चाहिए और अपना वक्त गरीब बच्चो को पढ़ाने पर किसी भी सूरत में व्यर्थ नहीं करना चाहिए। .
यदि आप इस बात से सहमत है तो यहां एक जायज सवाल उठ खड़ा होता है कि —– शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत लगभग सभी वरिष्ठ कार्यकर्ता राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का विरोध क्यो करते है ? वे स्कूल स्टाफ पर ज्यूरी सिस्टम क़ानून के खिलाफ क्यों है ? वे सात्य प्रणाली को लागू किये जाने का विरोध क्यों कर रहे है ? और वे राईट टू रिकॉल शिक्षा राज्य मंत्री और राईट टू रिकॉल केंद्रीय शिक्षा मंत्री के विरोधी क्यों है ? .
मेरा आरोप यह है कि —- उनकी रुचि सिर्फ ख्याति, अनुदान, वोट आदि में है। वे जानते है कि यदि उन्होंने राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी जैसे कानूनो का समर्थन किया तो उनको मिलने वाले अनुदान बंद हो जाएंगे, पेड मिडिया उन्हें सकारात्मक कवरेज नही देगा और कांग्रेस, बीजेपी और आप जैसी पार्टियो से टिकेट मिलने की सम्भावनाऐं ख़त्म हो जायेगी। कुल मिलाकर उनकी शैक्षिक गतिविधियाँ एक नाटक है, जो वे धन, नाम और वोट आदि कमाने के लिए कर रहे है।
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अध्याय – 5 : शिक्षा में क्लास रूम की सीमाएं .
क्लास रूम में बिठा कर दी जाने वाली शिक्षा को जरुरत से ज्यादा तवज्जो दी गयी है, और इसके महत्त्व को बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित किया गया है। किसी भी समाज में सबसे बेहतरीन शिक्षक युद्ध है। युद्ध एक परीक्षा भी है और सबसे तेजी से सीखने का एक जरिया भी। लेकिन दुर्भाग्य से हम सिर्फ सीखने के लिए किसी को युद्ध में नहीं झोंक सकते। .
दूसरा बेहतरीन शिक्षक मुक्त बाजार की प्रतिस्पर्धा है। एक मुक्त बाजार प्रतियोगिता में निवेशक/नियोक्ता खुद से और अपने प्रतियोगियों दोनों से सीखता है। जबकि कर्मचारी अपने नियोक्ता से सीखते है। हालांकि नियोक्ता एक कठोर व्यक्ति हो सकता है, किन्तु किसी कर्मचारी के लिए तब भी नियोक्ता दूसरा सबसे बेहतर शिक्षक होता है। मुक्त बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का वातावरण निर्मित करने के लिए सबसे जरुरी शर्त यह है कि —– निवेशक/नियोक्ता को प्रतिस्पर्धा में मुक्त रूप से वह सब कुछ करने की छूट दी जाए जो वह करना चाहता है। सिवाय ऐसे कार्यो के जिसे समाज के नागरिको ने बहुमत से प्रतिबंधित किया हो। साथ ही यह भी आवश्यक है कि यदि कोई निवेशक/नियोक्ता बहुमत द्वारा बनाये गए नियमो को तोड़ता है तो उस पर त्वरित, निष्पक्ष और कठोर कार्यवाही हो। ऐसी त्वरित और निष्पक्ष कार्यवाही के निष्पादन के लिए ज्यूरी सिस्टम अपरिहार्य है। इसके अलावा राईट टू रिकॉल जज, राईट टू रिकॉल पुलिस प्रमुख, राईट टू रिकॉल शर्म आयुक्त आदि की भी इस प्रणाली को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। .
तीसरा बेहतरीन शिक्षक खुली प्रतियोगी परीक्षाएं है। एक छात्र को हर वर्ष कम से कम 4 प्रतियोगी परीक्षाओ से गुजरना चाहिए ताकि वह खुद को प्रशिक्षित कर सके। इससे सबसे तेजी से नतीजे आएंगे। सात्य प्रणाली में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती है जिससे छात्र अधिक मेहनत करके प्रदर्शन सुधारने के लिए प्रेरित होते है। .
क्लास रूम में शिक्षा देने वाला शिक्षक चौथा सबसे बेहतर शिक्षक है। लेकिन लगभग सभी शिक्षाविद तीन सबसे बेहतर शिक्षको युद्ध, मुक्त बाजार प्रतिस्पर्धा और खुली प्रतियोगी परीक्षाओ को नजरअंदाज करने पर जोर देते है। उनका कहना है कि क्लास रूम में बिठाकर मूर्त शिक्षक द्वारा दी जाने वाली शिक्षा ही सबसे बेहतर है। शिक्षा क्षेत्र के वरिष्ठ कार्यकर्ता भी शिक्षण में युद्ध, मुक्त बाजार प्रतिस्पर्धा और खुली प्रतियोगी परीक्षाओ की भूमिका की उपेक्षा करने और शिक्षक द्वारा शिक्षण दिए जाने का ही समर्थन करते है। .
निष्कर्ष यह कि तुम कक्षा कक्ष में शिक्षण देकर सबसे कम महत्त्वपूर्ण तरीके से शिक्षा दे रहे हो। इस तरह तुम राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी कानूनो का विरोध करके और गरीब बच्चो को सीधे शिक्षण देकर सबसे अधिक अकार्यकुशल कार्य करने के भागी हो।
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अध्याय – 6 : संक्षेपण . वरिष्ठ कार्यकर्ता, जो राईट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी क़ानून का विरोध करते है और तुम्हे गरीब बच्चो को पढ़ाने जैसी गतिविधियों पर समय खर्च करने के लिए प्रेरित करते है, असल में झूठे कार्यकर्ता है। उनका लक्ष्य शिक्षा के नाम पर ख्याति, अनुदान, वोट और राजनैतिक पद प्राप्त करना है। शिक्षा सुधारो से उनका दूर दूर तक कोई लेना देना नही है। .
कृपया इनके छद्म सुधारो का अनुसरण कर अपना समय नष्ट न करे —– वे सिर्फ अपने उद्देश्यों की पूर्ती के लिए तुम्हारा इस्तेमाल कर रहे है। यदि आप देश में सही अर्थो में शिक्षा सुधार चाहते है तो राइट टू रिकॉल जिला शिक्षा अधिकारी, राईट टू रिकॉल शिक्षा राज्य मंत्री और राईट टू रिकॉल केंद्रीय शिक्षा मंत्री, स्कूल स्टाफ पर ज्यूरी सिस्टम, सात्य प्रणाली आदि कानूनो को गैजेट में प्रकाशित करवाने के प्रयास करे। इन कानूनो के प्रस्तावित ड्राफ्ट्स www.rahulmehta.com/301.h.htm पर अध्याय 30 में देखे जा सकते है।