संघठन की मर्यादा और सिध्दांत By Rajiv Dixit Ji

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राजीव भाई कहते थे कि भारत स्वाभिमान के तीन मूल सिद्धांत है | मैं इसमें पहले बात करूँगा पूर्ण भारतीयता इसका अर्थ क्या है ? पूर्ण भारतीयता का सीधा-सा सरल अर्थ है कि आप अपने जीवन में जो भी काम करें वो सारे काम ऐसे हो जिससे भारत देश को लाभ हो | अपने देश को हानि हो अपने देश को नुकसान हो ऐसा कोई काम आप अपने जीवन में कभी भी न करे | ये मोटी सी सीधी-सी सरल बात है | हम हमारे जीवन में सवेरे से लेकर शाम तक जो भी छोटे बड़े काम करते हैं उन सभी कामो पर आप यह नज़र डाले कि कहीं गलती से कोई ऐसा काम तो आपके हांथो से नहीं हो रहा है जिससे भारत देश का कोई बड़ी हानि हो रही हो या नुकसान हो रहा हो | ये सीधा-सा मतलब है पूर्ण भारतीयता का | माने भारत,भारतीयता,संस्कृति,सभ्यता परंपरा जो कुछ हमारी हैं इनका बढावा करने के लिए इनको आगे बढाने के लिए ही हमे अपने जीवन में काम करना है |

अगर आप किसी संघठन में कार्यकर्त्ता है तो आपको इन बातो का ध्यान रखना है >>

इसमें शुरुआत कहाँ से होगी ? तो इसकी शुरुआत होगी स्वदेशी के अनुपालन से | हम सभी भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ता अपने जीवन में शुन्य तकनीकी से बनी हुई सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करेंगे और उसके स्थान पर भारतीय वस्तुओं का ही उपयोग करेंगे यहाँ से इस सिद्धांत की शुरुआत होगी | आप अपने जीवन में हमेशा इस बात का ध्यान रखे कि आप जब भी अपनी कोई चीज़ या वस्तु खरीदे अपने उपयोग के लिए वो भारतीय हो स्वदेशी हो | यहाँ से इस भारतीयता के सिद्धांत की शुरुआत होगी|

सवेरे सवेरे आप सो कर उठते हैं आपको टूथपेस्ट चाहिए | कोशिश करें की वह टूथपेस्ट आपका भारतीय हो  स्वदेशी हो | सवेरे सवेरे सो कर उठते हैं वैसे तो मैं मानता हूँ की आप चाय कॉफ़ी नहीं पीते होंगे| लेकिन अगर लत है और आदत है तो चाय कॉफ़ी में भी कोशिश करे की वह भारतीय हो स्वदेशी हो उसी का उपयोग करें | इसी तरह से आप स्नान करते हैं तो साबुन का इस्तमाल करते होंगे तो कोशिश करें की आपका साबुन भारतीय हो स्वदेशी हो | अगर आप पुरुष हैं और दाढ़ी बनाते हैं शेव करते हैं तो शेविंग करते समय ध्यान रखें की जो शेविंग क्रीम इस्तमाल हो वह भारतीय हो स्वदेशी हो | अगर आप स्नान करके बाथरूम से बहार निकलते हैं और कोई कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो विशेष रूप से बहनों से माताओं से मेरी विनती है भाइयों से भी है की जो कॉस्मेटिक्स इस्तेमाल करें वो भारतीय हों स्वदेशी हो | इसी तरह आप अपने घर में खाने पीने के लिए जो वस्तुए खरीद रहे हैं उसमें ध्यान रखे कि वो स्वदेशी हो भारतीय हो | आपके बच्चो के लिए कोई वस्तुए खरीद रहे हैं टॉफ़ी है चॉकलेट्स हैं बिस्किट्स हैं | वैसे तो इनका बहिष्कार करना ही अच्छा है | लेकिन अगर ये खरीदना ही है टॉफ़ी चॉकलेट्स बिस्किट्स तो वो भी स्वदेशी हो भारतीय हो | घर में सवेरे सो कर उठने से लेकर रात सोने तक जितनी वस्तुओं का हम उपयोग करते हैं इन सभी वस्तुओं को शुन्य तकनीकी की वस्तुएं कहा जाता है क्योंकि इन वस्तुओं को बनाने में कोई बड़ी टेक्नोलॉजी की ज़रूरत नहीं होती है | ये साधारण तकनीकी से बनने वाली वस्तुएं हैं | जैसे साबुन है दन्तमंजन हैं टूथपेस्ट हैं टूथ पाउडर है टेलकम पाउडर हैं वैनिशिंग क्रीम है वाशिंग पाउडर है डिटर्जेंट पाउडर है क्लीनिंग पाउडर है |

ये सब चीज़ें जो हमारे घरो में रोज़ इस्तेमाल होती है| ये सब बहुत आसानी से बनती है | इनको बनाने में कोई मशीन की ज़रूरत नहीं होती है| तो लिहाज़ा जब हम इनका उपयोग करें और बाज़ार से इन्हें खरीदे तो ध्यान रखे ये भारतीय हो स्वदेशी हो | भारतीय कंपनियों की बनी हुई हो स्वदेशी कंपनियों की बनी हुई हो तभी इन चीजों को खरीदे और इनका उपयौग करें |

आप पूछेंगे जी क्यों ? ऐसा क्यों करना है हमको ?

तो इसके पीछे एक गंभीर कारण है | हमारा भारत देश इस समय एक बहुत बड़े आर्थिक समस्या में फंसा हुआ है | और उस आर्थिक समस्या का समाधान करने के लिए हमें ये करना है | हमारे देश की एक बहुत बड़ी आर्थिक समस्या है जो आज़ादी के पिछले ६३ वर्षो में पैदा हुई है | वो समस्या ये है की भारत में १५ अगस्त १९४७ में जब आज़ादी आई थी तो आप सभी को मालुम है की एक विदेशी  ईस्ट इंडिया कंपनी को हमने भारत से भगाया था | तब हमें आज़ादी मिली थी | और उस विदेशी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हमारे भारत के नागरिको ने लगातार १७५७ से १९४७ तक संघर्ष किया था

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता है | कोलकाता के पास एक छोटा सा स्थान है| बहुत छोटा सा स्थान है| १७५७ ई० में वहां क्रांति शुरू हुई थी| उस स्थान का नाम है प्लासी | आप कभी कोलकाता जाएँ तो देख आइये बहुत छोटा सा गाँव है प्लासी | इस प्लासी के मैदान में १७५७ में एक क्रांति की शुरुआत हुई थी अंग्रेजो के खिलाफ और ये क्रांति १७५७ तक फिर १९४७ तक लगातार चलती रही थी |

१७५७ में अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति की शुरुआत जिस व्यक्ति ने की थी वो शिराज़ुद्दौल्ला नाम का एक व्यक्ति था | जो बंगाल का उस समय राजा हुआ करता था | उसने सबसे पहले अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध शुरू किया था और इस युद्ध में दुर्भाग्य से उसकी पराजय हो गई थी | पराजय होने का कारण ये था की शिराज़ुद्दौल्ला का को सेनापति था मीर जाफ़र वो पैसे में बिक गया था और उसने भ्रष्टाचार कर लिया था | मीर जाफर शिराज़ुद्दौल्ला का सेनापति था | अंग्रेजो की तरफ से एक सेनापति आया था युद्ध को लड़ने के लिए उसका नाम था रॉबर्ट क्लाइव | रॉबर्ट क्लाइव जब प्लासी का युद्ध लड़ने आया था तो उसके पास मात्र ३५० सैनिक थे और शिराज़ुद्दौल्ला जो भारत की तरफ से अंग्रेजो से लड़ रहा था उसके पास १८००० सैनिक थे | किसी भी भाई बहन से आप ये पूछे की एक तरफ ३५० सैनिक दूसरी तरफ १८००० सैनिक युद्ध में कौन जीतेगा ? तो आप कहेंगे जिसके पास १८००० सैनिक हैं वही जीतेगा |

लेकिन इतिहास की वास्विकता कुछ दूसरी है | जिस शिराज़ुद्दौल्ला के पास १८००० सैनिक थे वो हार गया था और जिस अंग्रेज़ रॉबर्ट क्लाइव के पास ३५० सैनिक थे वो जीत गया था | क्यूंकि अंग्रेजो के रोबर्ट क्लाइव ने शिराज़ुद्दौल्ला के सेनापति को पैसो का लालच देकर कुर्सी का लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया था | और मीर जाफर के रॉबर्ट क्लाइव से मिल जाने का दुष्परिणाम ये हुआ था की मीर जाफ़र के सेना में बगावत हो गई थी और सैनिको ने अंग्रेजो के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था | तो प्लासी के मैदान में अंग्रेजो की विजय हो गई थी | और भारत हार गया था | उसी के बाद अंगेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया था | और उसके बाद रॉबर्ट क्लाइव बंगाल का राजा बन गया था | और वहां से ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में ऐसी नीव जमाई थी की लगभग १९४७ तक वो इस देश को लूटते रहे |

ईस्ट इंडिया कंपनी एक आई थी| व्यापार करने के बहाने से | व्यापार करने में उनको इतना मुनाफा हुआ की उन्होंने भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था| राज्य स्थापित कर लिया था |और धीरे धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी का राज्य लगभग १७५७ से १९४७ तक चलता रहा था | तो ये १९० साल अंग्रेजो का राज चला उसमें उन्होंने भारत से खूब मुनाफा कमाया | उनका सामान बेचा | अंग्रेजो का इंग्लैंड का और यहाँ से मुनाफा लेकर वो लन्दन गए | परिणाम ये हुआ था की भारत का सारा का सारा धन संपत्ति १९० वर्षो में भारत से अंग्रेजो ने लूटकर इंग्लैंड में जमा कर लिया था |

आप इतिहास अगर पढेंगे तो पता चलेगा की जब  ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई थी तब इंग्लैंड दुनिया का सबसे गरीब देश था | और जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत छोड़ कर वापस गई इंग्लैंड १९४७ में तो इंग्लैंड दुनिया का सबसे अमीर देश हो गया | १९० साल में ऐसा क्या हुआ की दुनिया का सबसे गरीब देश दुनिया का सबसे अमीर देश हो गया ? कारण उसका एक ही था की ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में जो सामान बेचा भारतवासीओ ने उसको खरीदा उसको उपयोग किया उसका मुनाफा अंग्रेजो को मिला | वो सारा मुनाफा लन्दन चला गया इंग्लैंड चला गया तो हमारे देश का पैसा ब्रिटेन चला गया | हम गरीब हो गए और ब्रिटेन उस पैसे से अमीर हो गया|

आपको सुनकर हंसी आएगी की जब अंग्रेज़ और ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आए थे तो इंग्लैंड में भुखमरी  से लोग  मर रहे थे| और इंग्लैंड का इतिहास पढने से पता चलता है कि १६वि १७वि शताब्दी में साढ़े तीन करोड़ लोग भूक से मर गए थे | जो इस समय की इंग्लैंड की जनसँख्या का लगभग ५० प्रतिशत है|

इस समय इंग्लैंड की जनसँख्या ६ करोड़ है उसमें साढ़े तीन करोड़ लोग उनके यहाँ भूक से मर गए थे | इतना गरीब देश था इंग्लैंड | उस गरीब देश को अंग्रेजो ने अमीर बना लिया भारत देश में व्यापार करके और हम भारतवासियों की एक गलती वो हमको भरी पड़ गई और वो गलती एक ही थी कि हमने अंगेजों की वस्तुएं खरीदी उनका सामान खरीदा उनको मुनाफा दिया और उस मुनाफे से वो मज़बूत होते गए और भारत पर १९० साल शाशन किया और लाखो करोड़ो रूपए यहाँ से लूट लिया | ईस्ट इंडिया कंपनी उस ज़माने में जो व्यापार करती थी उस व्यापार से हर साल ७० करोड़ रूपए वो लूट कर ले कर जाते थे| उस ज़माने का एक रूपया अभी ३०० रूपए के बराबर है| अगर इस आंकड़े को आप समझने की कोशिश करेंगे तो ७० करोड़ में ३०० का गुना करना पड़ेगा | लगभग २१००० करोड़ रूपए हर साल वो भारत से लूट कर ले जाते थे| और ये लूट १९० वर्ष तक चलती रही| आप अंदाज़ा लगाइए कितने लाख करोड़ रूपए इस देश का लूटा गया|

फिर वही मैं बात कहना चाहता हूँ की हमसे एक ही गलती हुई थी की हमने अंग्रेजी वस्तुओ का उपयोग किया | और अंग्रेजी सामान का इस देश में व्यापार इतना बढ़ा की हम गुलामी में फंस गए| और ये देश कंगाल देश हो गया | अब १९४७ में जो ईस्ट इंडिया कंपनी भारत छोड़ कर चली गई थी अब आज़ादी के ६३ सालो के बाद ऐसी हजारो विदेशी कम्पनिया फिर से भारत में आ गई है | हमने एक विदेशी ईस्ट इंडिया कंपनी को भगाया १९४७ में और हमारे देश में एक आन्दोलन चला था सन १९४२ में जिस आन्दोलन का नारा था भारत छोडो| हमने कहा अंग्रेजो से हमने कहा ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत छोडो |

अभी हमारे देश में बहुत दुख की बात है अफ़सोस की बात है की जो सरकारे चल रही है इस समय हमारी केंद्र की सरकार है जो दिल्ली में है| हमारे राज्यों की सरकारे हैं | ये राज्यों की राज्य सरकार और दिल्ली की केंद्र सरकार ये उलटे रास्ते पर चल पड़ी है और १९५१ के साल से इस देश में सरकार ने एक नीति बनायीं है| और उस नीति का नाम है अंग्रेज़ी में ग्लोबलाइजेशन | उसी नीति को अंग्रेजी में कहते हैं लिब्रलाइजेशन | उसी नीति को अंग्रेजी में कहते हैं प्राइवेटाईजेशन | ग्लोबलाइजेशन माने वैश्वीकरण | लिब्रलाइजेशन माने उदारीकरण | प्राइवेटाईजेशन माने निजीकरण |

इस नीति के आधार पर क्या हो रहा है भारत के सारे दरवाज़े खोल दिया गए हैं | और हजारो विदेशी कंपनियों को भारत में बुलाया जा रहा है| जिस एक विदेशी ईस्ट इंडियन कंपनी को भागने में हमें नब्बे वर्ष लगे उस भारत देश में इस समय ५००० से ज्यादा विदेशी कंपनियों को सरकार ने लाइसेंस दे कर बुला लिया है | और इन विदेशी कंपनियों को व्यापार करने की वैसे ही छूट मिल गई है जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की छूट मिली थी |

ईस्ट इंडिया कंपनी के ज़माने में इस देश का राजा था उसका नाम था जहाँगीर | अगर आप मुग़ल साम्राज्य का थोडा अध्यन करेंगे तो मुग़ल राजाओ में एक राजा हुआ करता था जहाँगीर | जब ईस्ट इंडिया कंपनी इस देश में आई थी | तो जहाँगीर ने ईस्ट इंडिया कंपनी जो व्यापार करने का लाइसेंस दिया था | और मरते समय जहाँगीर ये बात कही थी कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल जो मैंने की वह ये अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने का लाइसेंस दिया | और मेरी इस गलती की सजा भारत की आने वाली पीढ़ियों को भुगतनी पड़ेगी|  और वह यह कह कर मर गया था| और उसने इस देश को गुलाम बनने के रास्ते पर डाल दिया था |

मुझे बहुत दुःख से यह कहना पड़ रहा है की जो गलती सत्रहवी शताब्दी में कभी जहाँगीर ने की थी ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में बुलाने की वही गलती आज हमारे देश के प्रधानमंत्री हमारे राज्यों के मुख्यमंत्री कर रहे है| हजारो हजारो विदेशी कंपनियों को भारत में बुला रहे है | आप अगर नियमित रूप से समाचार पत्र पढ़ते हो | टेलीविज़न पर न्यूज़ देखते हो तो आपको एक न्यूज़ अक्सर दिखाई देती होगी की आज इस राज्य के मुख्यमंत्री ने इतनी विदेशी कंपनियों से समझौता किया या आज भारत के प्रधानमंत्रियों ने इतनी विदेशी कंपनियों को ब्यापार करने का लाइसेंस दिया | किसी दिन वो आंकड़ा होता है कि ५० कंपनियों को लाइसेंस मिला किसी दिन १०० होता है किसी दिन १५० होता है | हर दिन सैंकड़ो सैंकड़ो विदेशी कंपनियों को भारत सरकार के द्वारा राज्य सरकारों के द्वारा लाइसेंस दिए जा रहे हैं और देश को धीरे धीरे फिर गुलामी के रास्ते पर धकेलने की कोशिश हो रही है |

जिन विदेशी कंपनियों को हमारे देश की सरकारों ने व्यापार करने के लिए लाइसेंस दिए हैं उनके कुछ नाम में आपको सुनाता हूँ | एक विदेशी कंपनी है जो अमेरिका से आई है जिसको भारत सरकार ने लाइसेंस दिया है व्यापार करने का  उसका नाम है पेप्सी-कोला | दूसरी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है कोका-कोला | तीसरी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है कोलगेट-पाल्मोलिव | चौथी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है प्रॉक्टर-एंड-गैम्बल | पांचवी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है जॉनसन-एंड-जॉनसन | छठी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है पार्क-डेविस | सातवी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है फ़ाइज़र | आठवी अमेरिका की कंपनी है उसका नाम है एली-लिल्ली | और मैं आपको ये  नाम गिनाता जाऊ ये ५००० है| अगर नाम ही गिनाऊंगा तो २-३ घंटे उसमें निकल जायेंगे | पेप्सी-कोला कोका-कोला, कोलगेट , पाल्मोलिव, प्रॉक्टर-एंड-गैम्बल, रेक्किट-एंड-कोलमेन, जॉनसन-एंड-जॉनसन, सिबगाईगी,सनडोस रेक्स,फ़ाइज़र |

इन सारी की सारी विदेशी कंपनियों को सरकार ने व्यापार करने के लाइसेंस दे दिए हैं | अब इन कंपनियों ने भारत में आकर व्यापार करना शुरू किया है और इन कंपनियों ने व्यापार करने के लिए कुछ कुछ स्थानों पर अपनी फैक्टरियाँ लगाईं है | वहां पर ये वस्तुएं कुछ  बनाते हैं | उन वस्तुओं को भारत के बाज़ार में बेचते हैं | अब समस्या क्या आती है इन विदेशी कंपनियों की वस्तुएं भारत में आसानी से नहीं बिक पाती हैं तो ये विदेशी कंपनियां अपनी वस्तुओं का टेलीविज़न पर विज्ञापन करती हैं और अन्धाधुंद विज्ञापन करती हैं | धुआंधार विज्ञापन करती है | कभी कभी तो ऐसा लगता है की टेलीविज़न सिर्फ विज्ञापन के लिए चलता है | विज्ञापन दिखाते दिखाते समय बच जाये तो इसमें वो न्यूज़ दिखाते हैं | विज्ञापन दिखाते दिखाते अगर उसमें टाइम बचे तो वो इसमें सीरियल दिखा देते हैं| अगर आप न्यूज़ भी देखने के लिए बैठे किसी भी टीवी चैनल पर तो २ मिनट न्यूज़ आती है ३ मिनट विज्ञापन आता है फिर २ मिनट न्यूज़ आती है फिर ३ मिनट विज्ञापन आता है फिर २ मिनट न्यूज़ आती है फिर ३ मिनट विज्ञापन आता है| न्यूज़ विज्ञापन न्यूज़ विज्ञापन न्यूज़ विज्ञापन न्यूज़ विज्ञापन ऐसेही पूरा दिन गुज़र जाता है | थोड़ी देर के बाद होता क्या है की न्यूज़ भूल जाती है विज्ञापन याद हो जाते हैं |

आप बोलेंगे क्यों होता है ऐसा? कारण उसका बिलकुल सीधा सा ये है की न्यूज़ हर समय बदलती रहती है विज्ञापन सालो साल एक जैसा ही चलता है | और हमने घरो में देखा है अगर ध्यान से की हमसे ज्यादा विज्ञापन हमारे बच्चो को याद होते हैं|मैं  कई बार स्कूलों में जाता हूँ छोटे छोटे बच्चो के पास उनके साथ संवाद करने के लिए तो प्राइमरी स्तर के बच्चे पांचवी कक्षा तक के बच्चे विज्ञापनों को खूब अच्छे से याद करते हैं जानते हैं समझते हैं | और अपने माता पिता को मजबूर करते हैं यही चीज़ लाना | जो विज्ञापन में देखा उन्होंने|

अक्सर बच्चो से मैं पूछता हूँ तुम टीवी देखते हो , “हाँ देखते है”

क्या देखते हो ?

“विज्ञापन देखते हैं |”

मैंने कई बार देखा है छोटे छोटे बच्चे जो मुह से बोल नहीं सकते इतने छोटे हैं | विज्ञापन जब टीवी पर आता है एक दम रैप्ट अटेंशन में उसको सुनते हैं और देखते हैं | अब बचपन से जो बच्चे बोलना नहीं सीखे उसके पहले विज्ञापन सुन रहे हैं देख रहे हैं सुन रहे हैं देख रहे हैं तो याद हो गया | याद हो गया तो फिर वही वस्तु वो खरीद कर लाते हैं | और दुर्भाग्य से वह वस्तु विदेशी कंपनी की होती है तो हमारे देश का पैसा हम किसी विदेशी कंपनी को दे आते हैं | जो गलती हमारे पूर्वजो ने की थी की अपने देश का पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी को दिया था वही गलती कमोवेश हम कर रहे हैं| हमारे घर का पैसा हम विदेशी कंपनी को दे रहे हैं|

कैसे देते हैं ये पैसा ?

एक दो उदाहरण से समझाता हूँ | आज कल टीवी में एक वहुत ही ज़बरदस्त विज्ञापन आता है | एक सिनेमा का एक्टर है अमीर खान | बहुत विज्ञापन करता है | ठंडा मतलब कोका कोला | हर बच्चा इस विज्ञापन को जनता है| उसको याद है | ये ठंडा मतलब कोका कोला बार बार लगतार बार बार लगतार  जब लगतार बोला जाता है तो किसी के मन में आ ही जाता है की चलो कोका कोला  पी कर तो देखो अमीर खान कह रहा है | फिर थोड़ी देर के बाद वही विज्ञापन आता है और उसी पेप्सी कोला के लिए कोई सचिन तेंदुलकर कहने लगता है | फिर वही विज्ञापन आता है और राहुल द्रविड़ कहने लगता  है | फिर वही विज्ञापन आता है कोई और सिनेमा का एक्टर संजयदत्त, आमीर खान, शारुख खान, कहने लगता है | करिश्मा कपूर करीना कपूर कहने लगती है | माने ये सारे सिनेमा में काम करने वाले एक्टर-एक्ट्रेसेस और क्रिकेट खेलने वाले खिलाडी ये सबसे ज्यादा विज्ञापन अगर करते हैं तो पेप्सी और कोका कोला का | ये दोनों ही अमेरिकन कंपनियां है| अब भारत के जो बच्चे या नौजवान या बुज़ुर्ग क्रिकेट के दीवाने हैं वो राहुल द्रविड़ और तेंदुलकर को देख कर पेप्सी और कोका-कोला पीते हैं और जो सिनेमा के दीवाने हैं वो अमीर खान, शारुख खान और करिश्मा कपूर और ऐश्वर्या राये को देखकर पेप्सी-कोक पीते हैं | माने बचता कोई नहीं है |

या तो क्रिकेट के दीवाने हैं लोग या तो सिनेमा के दीवाने हैं | भारत में आधे लोग क्रिकेट आधे लोग सिनेमा झक मार के पेप्सी और कोका-कोला में चले ही जाते हैं | हम जब ये विज्ञापन देखकर पेप्सी कोला पीते हैं तो बाज़ार से एक बोतल हम १० रूपए की खरीदते हैं | कभी कभी वो १२ रूपए की आती है | पेप्सी-कोला और कोका-कोला कंपनियों की बैलेंसशीट में से जब मैंने अध्यन किया तो पता चला कि जो बोतल बाज़ार से हम १२ रूपए की खरीदते हैं कभी कभी ५ सितारा होटल में तो २५ रूपए की  मिलती है | अगर आप हवाई जहाज से यात्रा करते हो तो वही बोतल हवाई जहाज में ३०-३५ रूपए की ,४० रूपए की मिलती है| जो बोतल हम ३०-४० रूपए से लेकर १०-१२ रूपए के बीच में खरीदते हैं वो बोतल पेप्सी-कोला की फैक्ट्री में मात्र ७० पैसे में बनती हैं | ७० पैसे में बनती हैं| अब आप ज़रा हिसाब जोडीये ७० पैसे की बोतल अगर आप ने १२ रूपए में खरीदी तो विदेशी कंपनी को ११.३० रूपए मुनाफा आपने दे दिया| वो कंपनी उसमें से १ रूपए भारत सरकार को टैक्स देती है | ३० पैसे वो विज्ञापन देने में खर्च करती है | कंपनी का कुल २ रूपए खर्च होता है | बेचने वाले दुकानदार को और ५० पैसे वो देते हैं तो २.५० रूपए खर्च होता है | माने १२ रूपए की बोतल को २.५० रूपए खर्च कर के अगर कंपनी ने आपको बेच दिया तो हर एक बोतल पर ९.५० रूपए नेट प्रॉफिट उस कंपनी को मिल जाता है|

अब ये कंपनी आई है अमेरिका से  तो ये ९ रूपए ५० पैसे जो आपकी जेब से उस कंपनी ने निकाल लिया वो भारत से अमेरिका चला जाता है| इसका अर्थ क्या हुआ? आपने एक बोतल कोका-कोला पिया, ९ रूपए ५० पैसे भारत माता का अमेरिका देश को दिया | आपने एक बोतल कोका-कोला या पेप्सी कोला पिया भारत देश का ९ रु ५० पे० अमेरिका गया | अब एक बोतल पीने से ९ रु ५० पे० गया, २ बोतल पियेंगे १९ रु अमेरिका गया | ३ बोतल पियेंगे , ४ पीयेंगे ५ पीयेंगे | एक वर्ष में पेप्सी और कोका कोला की भारत में ७०० करोड़ बोतल बिकती है |  और हर वर्ष में लगभग ६५०० करोड़ रूपए भारत से अमेरिका चला जाता है | अब एक वर्ष में  ६५०० करोड़ गया | २ वर्ष में १३००० करोड़ गया | ३ वर्ष में १९५०० करोड़ गया | पेप्सी और कोका-कोला की बिक्री इस देश में करीब करीब १५ वर्षो से चल रही है | और अब तक इस देश से १ लाख करोड़ रूपए से ज्यादा अमेरिका चला गया है | हमने विदेशी कंपनियों का पानी पिया और भारत माता का १ लाख करोड़ रूपए से ज्यादा अमेरिका को दिया |

और अमेरिका ने क्या किया?

ये जो पैसा आपने अमेरिका को दिया, अमेरिका की सरकार इसी पैसे को पाकिस्तान नाम के देश को दान में दे दिया क्यूंकि आप जानते हैं अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती है| भारत और पाकिस्तान की तो दुश्मनी है लेकिन अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती है | अमेरिका पाकिस्तान को हर साल मदद के रूप में दान स्वरुप अरबो डॉलर देता है | हम अमेरिका को पेप्सी-कोक पी कर लाखो करोड़ रूपए देते हैं | अमेरिका उसी में से पाकिस्तान को दान के रूप में पैसे देता है | पाकिस्तान सरकार वही पैसा आतंकवादियों को दान में देती है | आतंकवादी उसी पैसे से बम बनाते हैं और उस बम को लाकर भारत देश में ब्लास्ट करते हैं | हम पेप्सी पीते और भारत माता की जय बोलते हैं | दुर्भाग्य से हम सब भारत माता के पराजय के काम में लगे हुए हैं |

मुझे बहुत दुःख है अफ़सोस है ये कहते हुए की जो भी भारतवासी पेप्सी और कोक  पी रहा है वो भारत माता का सबसे बड़ा दुश्मन है | और देश का उतना ही बड़ा गद्दार है जैसे कभी मीर जाफर हुआ करता था सत्रहवी शताब्दी में|

और मुझे इससे भी बड़ा दुःख है की जो पेप्सी कोक पी रहे हैं वो कोई साधारण लोग नहीं है | वो सब पढ़े लिखे अच्छे खासे इंजिनियर डॉक्टर, चार्टेड अकाउंटेंट,मेनेजर, प्रोफेसर, साइंटिस्ट येही लोग पेप्सी कोक पी रहे हैं | भारत के गाँव के किसान को आज तक मैंने पेप्सी पीते नहीं देखा क्यूंकि वो पढ़ा लिखा नहीं है इसीलिए बहुत इंटेलीजेंट हैं और होशियार है | मुझे कई बार ऐसा लगता हैं कि जो जितना ज्यादा पढ़ गया , मुर्खता में वो उतना ही ऊँचा चढ़ गया | इंजिनियर डॉक्टर, चार्टेड अकाउंटेंट,मेनेजर, प्रोफेसर, साइंटिस्ट जैसे लोगो को मैं बार बार कहता हूँ भाई ये पेप्सी कोला क्यूँ पीते हो? क्या ज़रूरत है ? तुमसे अच्चा तो गाँव का किसान है मजदूर है जो गन्ने का रस पीता है, संतरे का रस पीता है , मुसम्मी का रस पीता है, नारीअल का पानी पीता है, दही की लस्सी पीता है , गाए का दूध पीता है | कुछ नहीं मिलता तो धड़े का सादा पानी पी कर  अपना संतोष कर लेता है | बिना पढ़ा लिखा मजदूर और किसान इस देश के साथ इतनी देशभक्ति करता है की देश का एक पैसा भी विदेशी कंपनी को नहीं देता और पढ़ा लिखा इडियट क्लास का आदमी इस देश का विदेशी कंपनी को पैसा देता है और कहता है भारत माता की जय |

मैं उनसे पूछता हूँ भाई क्यूँ पीते हो पेप्सी कोक ?

“कुछ मज़ा आता है?”

कहते हैं नहीं नहीं मज़ा नहीं आता है|

“फिर भी पीते हैं”

ज्यादा पढ़े लिखे लोगो से मैंने पूछा की पेप्सी कोक पीने से क्या होता है ?

कहते हैं नाक में जलन होती है | गले में जलन होती है | खट्टी खट्टी डकारे आती हैं | अंक में से आंसू निकल आते हैं | फिर भी मूर्खो के मुर्ख पीते ही रहते हैं पीते ही रहते हैं पीते ही रहते हैं | बहुत ज्यादा पूछो तो ये पढ़े लिखे लोग पता है क्या जवाब देते हैं ?

“ये पेप्सी-कोला कोका-कोला बेस्ट क्वालिटी है | इसीलिए हम पीते हैं”

फिर उनको पूछो ये बेस्ट क्वालिटी क्यों है?

कहते हैं ये अमेरिका से आया हैं बन कर इसीलिए बेस्ट क्वालिटी है |

ये पढ़े लिखे लोगो को यही समझ में नहीं आता की अमेरिका से सब चीजे बेस्ट क्वालिटी यहाँ नही आती | जो चीजे अमेरिका में सबसे रद्दी क्वालिटी की मानी जाती है वही यहाँ आती है | कोई भी देश दुनिया में बेस्ट क्वालिटी किसी दुसरे को नहीं देता खाने पीने को |

मैं आपसे एक सीधा सा सवाल करता हूँ | आप घर में खीर बनाते हैं पडोसी को दे कर आते हैं ?

बेस्ट क्वालिटी है इसीलिए ?

आप घर में अच्छी से अच्छी खीर बनाते हैं खुद खाते हैं| पेट भर कर खाते हैं | और कुछ थोड़ी बच गई फेकने के लिए तो पडोसी को दे कर आते हैं | ऐसे ही अमेरिका करता है | अमेरिका जो चीजे बेस्ट क्वालिटी बनाता है उनको पहले खुद खाता है खुद पीता है | जब उसमें से रद्दी हो कर बच जाती है डंप करने के लिए तब भारत जैसे देशो को दे दिया जाता है | तो बेस्ट क्वालिटी नहीं है वो सबसे ख़राब क्वालिटी है | और क्या क्वालिटी है उसमें ? पेप्सी और कोक कोला जिसको हम पढ़े लिखे लोग बेस्ट क्वालिटी कहते हैं उसका हमने एक बार प्रयोगशाला में  परिक्षण कराया | तो प्रयोग शाला में परिक्षण करने से पता चला की वो दुनिया की सबसे घटिया और रद्दी चीज़ है पेप्सी और कोका कोला |

आप पूछेंगे क्यों ?

हमारे घर में टॉयलेट साफ करने के लिए जो एसिड का इस्तेमाल हम करते हैं वही एसिड पेप्सी और कोक में डाला जाता है | और इससे भी ज्यादा और ख़राब बात आप सुनिये | हमारे घर में टॉयलेट क्लीनर जिसका नाम है हार्पिक या  हमारे घर में टॉयलेट क्लीनर जिसका नाम है फिनायल| उसमें जितनी मात्रा में एसिड डाला जाता है | पेप्सी और कोक में उतनी ही मात्र में एसिड डाला जाता है |

एक बार हमने पेप्सी कोका कोला की जांच की | कैसे ?

विज्ञानं में एक छोटा सा उपकरण आता हैं | आप में से थोडा भी केमिस्ट्री जिन लोगो ने पढ़ा होगा मेरी बात तुरंत समझ जायेंगे | नहीं तो मैं कोशिश करूँगा समझाने की | केमिस्ट्री में एक उपकरण होता है उसको pH मीटर कहते हैं | किसी भी एसिड की एसिडिटी नापने का वो सबसे सरल उपकरण है | वो पेन के जैसा होता है और डिजिटल pH मीटर आजकल ऐसा आता है उसके बीच में एक मॉनिटर लगा रहता है | उसको जैसे ही आप किसी एसिड में डालो वो तुरंत बता देता है की इसमें एसिड की मात्रा कितनी है |

अब एसिड की मात्रा पता कैसे होती है ?

पानी में आप उसको डालोगे pH मीटर को तो उसकी रीडिंग आती है ७ | ७ pH माने नार्मल होता है| फिर उस पानी में एसिड मिला दो| फिर  pH मीटर को डालो तो रीडिंग आएगी ६ तो एसिड बढ़ गया | और ज्यादा ५ आ गई तो एसिड और ज्यादा बढ़ गया | ४ आ गई तो भयंकर एसिड बढ़ गया| ३ आ गई तो कंसनट्रेटड  एसिड हो गया | २.५ के आस-पास आ गई तो सबसे ख़राब एसिड हो गया | जब मैंने पहली बार पेप्सी कोला में pH मीटर डाला और उसको नापा तो उसका वैल्यू आया माने उसकी रीडिंग आई २.४ | हाइली एसिडिक | बहुत ज्यादा एसिडिक | फिर मैंने एक दिन क्या किया की मेरे घर में जो हार्पिक है जो फिनाइल है जिससे हम टॉयलेट साफ़ करते हैं | उसमें pH मीटर डाला तो उसका भी रीडिंग आया २.४ मतलब पेप्सी कोक की क्वालिटी हार्पिक की क्वालिटी के बराबर है | माने दोनों एक ही क्वालिटी के प्रोडक्ट हैं | तब मैंने एक दिन सोचा कि हार्पिक से अगर टॉयलेट साफ़ हो सकता है तो पेप्सी से भी होना चाहिए | क्यूंकि दोनों का pH वैल्यू एक ही है| तो एक दिन मैंने मेरी माँ को कहा कि एक महीने तक हम अपना संडास साफ़ नहीं करेंगे टॉयलेट साफ़ नहीं करेंगे | इसको गन्दा होने देंगे | फिर इसको पेप्सी से साफ़ करके देखेंगे |

तो मेरी माँ नाराज़ होगी |कहने लगी क्या बकवास करता है | मैंने कहाँ करके देखना | तो एक महीने हमने अपना टॉयलेट साफ़ नहीं किया | वो बहुत गन्दा हो गया है | इतना गन्दा हो गया की पीला पीला कचड़ा उस परा जमा हो गया | आधा आधा इंच |फिर मैं एक पेप्सी की बोतल लाया कोका कोला की बोतल लाया | दोनों को मिक्स करने टॉयलेट स्पॉट पर मैंने स्प्रे किया | और २ मिनट के बाद पानी से फ्लश किया | टॉयलेट झकाझक सफ़ेद | एकदम वाइट एंड वाइट | एकदम नीट एंड क्लीन |

उस दिन से हमने एक विज्ञापन करना शुरू किया | ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर |

अब मुझे बड़ा अफ़सोस है कि पढ़े लिखे लोग ठंडा मतलब कोका कोला कहकर जिसको गटागट पी लेते हैं | उसकी क्वालिटी टॉयलेट क्लीनर के बराबर है | और मुझे बहुत अफ़सोस  है की पढ़े लिखे लोग इस टॉयलेट क्लीनर को पीते रहते हैं | और अकेले नहीं पीते घर में आने वाले मेहमान को भी पिलाते हैं |

एक तरफ कहते हैं “अतिथि देवता होता है” | देवताओं को ही टॉयलेट साफ़ करने वाला पानी पिलाते रहते हैं | और कुछ अतिथि ऐसे घर में आते हैं जो घुसते ही कहते हैं ठंडा लाओ | माने टॉयलेट क्लीनर पिलाओ हमको | और दुःख यही है अकेले पी नहीं रहे हैं | पड़ोसियों को पिला रहे हैं | गेस्ट को पिला रहे हैं | और देश का पैसा अमेरिका को देते जा रहे हैं | अमेरिका वो पैसा पाकिस्तान को दे रहा है | पाकिस्तान आतंकवादियों को , आतंकवादी भारत में ब्लास्ट कर रहे हैं | और फिर हम रो रहे हैं देश में आतंकवाद बढ़ रहा है | वो तो बढ़ने ही वाला है | अगर आप पेप्सी कोक पीते रहेंगे तो भारत में आतंकवाद कभी ख़तम नही होगा | क्योंकि पेप्सी कोक का पैसा अमेरिका जाता रहेगा | अमेरिका वो पैसा पाकिस्तान को देता रहेगा | पाकिस्तान आतंकवादियों को देता रहेगा | तो आतंकवाद तो बढ़ने ही वाला है| इसीलिए मेरी आप को हाँथ जोड़ कर बिनती है अगर आप चाहते हैं आतंकवाद इस देश से ख़तम हो | अगर आप चाहते हैं पाकिस्तान भारत के खिलाफ कोई साजीश न रचे | तो पाकिस्तान को पैसा मिलना बंद होना चाहिए | तो उसके लिए अमेरिका को पैसा जाना बंद होना चाहिए | तो उसके लिए पेप्सी और कोक आपको पीना बंद करना चाहिए | और दूसरो को बंद कराने के लिए प्रेरित करना चाहिए |

जिस दिन आप अपने जीवन में ये संकल्प लेंगे की हम आज से पेप्सीकोक नहीं पीयेंगे और दूसरो को नहीं पीने देंगे | उसी दिन आप संपूर्ण भारतीयता के सिद्धांत का अपने जीवन में  पालन करना शुरू कर देंगे | यहाँ से भारतीयता की शुरुआत होगी |

आप बोलेंगे पेप्सी कोक नहीं पीना तो क्या पीना ?

मैं एक दो और छोटी बातें बताता हूँ | मैंने एक बार मेरे व्यक्तिगत जीवन में एक प्रयोग किया था | मेरा एक दांत टूट गया था | वो अभी भी टूटा हुआ है| मैंने वो टूटा हुआ दांत कोका कोला की बोतल में डाल दिया था | १५ दिन में वो पूरा दांत गायब हो गया था | आप जानते हैं मनुष्य का दांत इतना मज़बूत होता है की वो कभी गायब नहीं हो सकता | किसी व्यक्ति की जब मृत्यु हो जाती है | हम उसके  शव का अंतिम संस्कार करते हैं न ? सारा शरीर जल  जाता है | दांत किसी के नहीं जलते | किसी व्यक्ति की मृत्यु  हो जाये | मुस्लिम पद्द्यति से उसको ज़मीन में खड्डा खोद कर दफन करे | १० साल के बाद खड्डे को वापस खोदे तो शरीर नहीं निकलता सिर्फ दांत निकलते हैं | मतलब दांत किसी के ख़त्म नहीं होते |

आपने सुना होगा की करोड़ो साल पहले एक प्राणी हुआ करता था उसका नाम था डायनासोर| डायनासोर मर गया है ख़त्म हो गया है | लेकिन डायनासोर के दांत अभी तक रखे हुए हैं साढ़े तीन करोड़ साल के बाद भी अमेरिका में म्यूजियम में | माने दांत नहीं मरते हैं | दांत ख़त्म नहीं होते | लेकिन उस दांत को पेप्सी ओर कोक में डाल दो तो हमेशा के लिए दांत गल जाते हैं | कितना खतरनाक केमिकल है पेप्सी और कोक में आप सोचिए| और जब प्रयोगशाला का परिक्षण जब हमने करवाया तो पता चला पेप्सी और कोक में १४ तरह के रसायन मिलाते हैं | एक है फास्फोरिक एसिड | एक है सोडियम-मोनो-ग्लूटामेट | एक है सोडियम बेन्जोऐट | एक है डाई-कैल्शियम-फॉस्फेट | फिर एक है ब्रोमिनेटेड-वेजिटेबल-आयल | फिर एक है मिथाइल-बेंजीन | फिर एक है मैथिल- बेन्जोऐट | ये सब खतरनाक केमिकल है जो कैंसर पैदा करने वाले है |

दुनिया के वैज्ञानिको ने ये बात सिद्ध की है बार बार पेप्सी और कोक पियेंगे तो कैंसर होने की संभावना है | बार बार पेप्सी कोक पियेंगे तो हड्डियों में ओस्टोपोरिसिस और ओस्टोपीनिया होने की संभावना है | हड्डियाँ इतनी कमज़ोर हो जाएँगी की कभी भी टूट सकती हैं | बार बार पेप्सी कोक पियेंगे तो मोटापा बढेगा क्यूंकि उसमें हैवी कैलोरी है | बहुत ज्यादा सुगर है | सुगर से भी ज्यादा खतरनाक केमिकल उसमें  डालते हैं उसका नाम है एस्परटन| जो मूत्र नाली के कैंसर का सबसे बड़ा कारण है | पहले तो पेप्सी कोक में सुगर मिलाते थे | आज कल एस्परटन डालते हैं जो सीधे मूत्र नाली का कैंसर करता है | कई वैज्ञानिको ने परिक्षण किया है बंदरो पर | आप जानते हैं बन्दर मनुष्य के नज़दीक होता है | तो बंदरो को पेप्सी पिला कर देखा गया कि वो पीते नहीं है | ज़बरदस्ती बन्दर को पेप्सी डाला गया इंट्रा-वीनस इंजेक्शन की मदद से उसके ब्लड में तो १ १/२ से २ घंटे में पेप्सी डालने के बाद बंदरो की मौत हो गई | बन्दर के बारे में कहा जाता है जल्दी बीमार नहीं पड़ता है | जल्दी मरता नहीं है | उसका ब्लड जो है न दुनिया में आइडियल माना जाता है | इसीलिए आदमी के ब्लड का कम्परिसन बन्दर के ब्लड के साथ किया जाता है लेकिन पेप्सी-कोक पिला दो तो उसका ब्लड भी ख़राब हो जाता है | इतना खतरनाक पेप्सी कोक है और हमारे देश के पढ़े लिखे लोग इसको बेस्ट क्वालिटी कहकर पी रहे हैं | देश को  हजारो करोड़ रूपए का नुकसान हो रहा है | मुझे आपसे विनम्रतापूर्वक एक ही बात कहनी है | अपने अपने गाँव  अपने अपने शहर अपने अपने जिले में पहला कदम ये उठाएं की आज के बाद आप में से कोई पेप्सी कोक पिएगा नहीं |किसी को पीने के लिए कोई ऑफर करेगा  नहीं | किसीने मुफ्त में भी आपको ऑफर कर दिया तो विनम्रतापूर्वक उसको वापस करेंगे| क्यूंकि हम सच में भारत माता की जय कराना चाहते हैं | हम भारत माता की पराजय होते हुए नहीं देखना चाहते |

आप नहीं पियेंगे| किसी को पिलायेंगे नहीं | अब इसके आगे का विकल्प क्या ?

आप बोलेंगे जी पेप्सी कोक न पिए तो क्या पिए ?

गन्ने का रस पीजिये (सुगर कैन जूस), संतरे का रस पीजिये, मुसम्बी का रस पीजिये | अनार का रस पीजिये | टमाटर का रस पीजिये | आम का रस पीजिये | कोई भी रस पीजिये| ताज़ा फलो का रस पीजिये | अनानास का रस पीजिये |

कुछ नहीं मिलता तो गाय का दूध, दही की लस्सी, नीम्बू की शिकंजी, नारियल का पानी | कुछ नहीं मिले तो सादा पानी पीजिये | एक दिन मैंने कैलकुलेशन किया कि थोड़ी देर के लिए कल्पना करिए की सारे भारतवासी पेप्सी कोक पीना बंद कर दे | एक साल में लगभग भारत का लगभग ७००० करोड़ रूपए बचेगा | उतने ही रूपए से अगर हम गन्ने का रस पीना शुरू कर दे तो ये ७००० करोड़ रूपए हर साल हमारे किसानो को मिलेगा | और एक साल में ७००० करोड़ रूपए गन्ना पैदा करने वाले किसानो को मिलने लगे तो गन्ना पैदा करने वाला हर किसान पांच साल में लखपति और करोडपति हो जायेगा | वो कभी आत्म हत्या नहीं करेगा | और इस देश की सरकार के ऊपर कभी बोझा नहीं बनेगा | गन्ना किसानो को उनका भाव नहीं मिल रहा है | क्यों ? गन्ना पैदा करना उसको चीनी मिलो को देना, चीनी मिल उसका पेमेंट नहीं करते | ६ ६ महीने पेमेंट नहीं होता | बराबर भाव नहीं देते | अगर इस पूरी क्राइसिस से गन्ना किसानो को बचाना हो तो सारे भारत वासी पेप्सी कोक बंद कर के गन्ने का रस पीना शुरू करें | गाँव गाँव में गन्ने का रस बिकने लगे तो गन्ना जो किसानो को बेचना पड़ता है मज़बूरी में चीनी मिलो को वो गन्ना सीधा सीधा  रस पीने वालो के शरीर में पेट में  जा कर कैल्शियम बढ़ा सकता है | आयरन बढ़ा सकता है | विटामिन दे सकता है | और किसानो को हजारो करोड़ का मुनाफा दे सकता है |

ऐसे ही एक उदाहरण ले ले कि अगर सारे भारतवासी अगर पेप्सी कोक पीना बंद कर दे और उतने ही रूपए से नारियल का पानी पीने लगे | ८०००-७००० करोड़ का नारियल बिकने लगे हर साल तो दस साल में भारत में नारियल पैदा करने वाले दक्षिण और पूर्वी भारत का एक एक किसान लखपति और ककरोडपति हो सकता है |

माने भारत की गरीबी दूर कर सकते हैं | बेरोज़गारी दूर कर सकते हैं | अपना पैसा बचा सकते हैं | स्वदेशी और भारतीयता का सिद्धांत अपने जीवन में अपना सकते हैं | इसीलिए हमारे जीवन में हमें संकल्प करना है की शून्य तकनीकी से बनी हुई कोई भी विदेशी वास्तु नहीं लेनी है | पेप्सी कोका-कोला से शुरआत करनी है |

मेरा  दूसरा निवेदन है कि जैसे पेप्सी-कोक दो विदेशी कंपनी  है ऐसी ५००० कम्पनिया हैं | उनमें से कुछ और कम्पनिया हैं जो टूथपेस्ट बेचती है उनको भी बहिष्कार करिए | जैसे कोलगेट, क्लोज-उप ,पेप्सोडेंट, सिबाका,फोर्हंस | ये सारी विदेशी कोमपनिया हैं | इनका पेस्ट आप बाज़ार में खरीदते हैं न ३० रूपए का १०० ग्राम आता है| ३०० रु किलो | गाय का घी खरीदो तो १५० रु किलो आता है | टूथपेस्ट ३०० रु किलो आता है | गाय के घी से दो गुना महंगा है | पढ़े लिखे लोग बहुत टूथपेस्ट इस्तेमाल करते हैं | गाय का घी नहीं खाते हैं १५० रु किलो | ३०० रु किलो का पेस्ट मुह में लगा लगा कर वॉशबेसिन में थूकते रहते हैं और कहते हैं हम बहुत ही स्मार्ट है क्योंकि दिन में तीन तीन बार थूकते हैं | सुबह ब्रेकफास्ट के बाद ब्रश करते हैं थूकते हैं| फिर लंच के बाद फिर थूकते हैं | फिर रात को डिनर के बाद फिर थूकते हैं |

पढ़े लिखे लोगो को में कहता हूँ ये क्यों करते हो पेस्ट इतना ?

“कहते हैं जी ये बहुत अच्छी क्वालिटी है |”

क्या है इसमें क्वालिटी ?

“कहते हैं झाग बहुत बनता है इसमें, फोम बहुत बनता है |”

तो मैं कहता हूँ फोम तो एरियल में भी बनता है | फोम तो डिटर्जेंट पाउडर में भी बनता है | फोम तो शेविंग क्रीम में सबसे ज्यादा बनता है | फोम तो शैम्पू में सबसे ज्यादा बनता है | तो आप शैम्पू से ही दांत साफ़ क्यों नहीं करते | शेविंग क्रीम क्यों नही लगा लेते अपने दांतों में आप को क्वालिटी चाहिए अगर फोम ही लेना है तो फोम  तो एरियल में है रिन में है व्हील में है सब में है | तो थोड़ी देर के लिए चुप हो जाते हैं | फिर वो कहते हैं आप ही बताओ क्या क्वालिटी है ?

मैं कहता हूँ भैया टूथपेस्ट की क्वालिटी ये होती है की उसमें मिलाया हुआ क्या है ?ये कोलगेट क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, सिबाका, फोर्हंस ये जितने भी टूथपेस्ट आप बाज़ार से खरीदते हैं विदेशी कंपनियों के इनमें केमिकल मिलते हैं जो फोम पैदा करता है | उस केमिकल का नाम है सोडियम लौर्य्ल सलफेट | आप एक छोटा सा काम करना | किसी एक हायर-सेकेंडरी स्कूल में चले जाना या किसी डिग्री कॉलेज में चले जाना जहाँ केमिस्ट्री पढाई जाती हो | केमिस्ट्री के किसी लेक्चरर से मिल लेना और उनसे कहना की केमिस्ट्री की डिक्शनरी दे दो | हर स्कूल कॉलेज में केमिस्ट्री की डिक्शनरी होती है | जैसे इंग्लिश की डिक्शनरी है न वैसे ही केमिस्ट्री की डिक्शनरी होती है| केमिस्ट्री की डिक्शनरी खोलना और उसमें ये शब्द पढना सोडियम लौर्य्ल सलफेट | उसके सामने लिखा हुआ है पोइसन | ज़हर है वो | और केन्सरस है | कार्सिनोगेनिक है | केमिस्ट्री की डिक्शनरी में जब सोडियम लौर्य्ल सलफेट को जब आप पढेंगे तो उसपर लिखा हुआ है कार्सिनोगेनिक पाइजन | माने कैंसर करने वाला ज़हर | वो डाला जाता है कोलगेट क्लोस-अप, पेप्सोडेंट जैसे टूथपेस्ट में |

और आपको सुनकर हैरानी होगी की अमेरिका और यूरोप में ये जो कोलगेट बिकता है न क्लोज-उप वगैरह नतो वहां भी डालते हैं  सोडियम लौर्य्ल सलफेट | लेकिन वहां के कानून इतने सख्त है कि जिस टूथपेस्ट में सोडियम लौर्य्ल सलफेट डाल दिया उसके रेपर पर चेतावनी लिखनी पड़ती है वैसे ही जैसे भारत में सिगरेटे के पैकेट पर लिखा होता है | आपने देखा भारत में सिगरेटे के पैकेट पर लिखा रहता  है सिगरेट पीना स्वस्थ के लिए हानिकरक है | अमेरिका में कोलगेट के रेपर पर ये लिखा रहता है कोलगेट इस इन्जुरिऔस टू हेल्थ | ब्रिटेन में कोलगेट के रेपर पर लिखा रहता है कोलगेट इस इन्जुरिऔस टू हेल्थ | और ब्रिटेन अमेरिका कनाडा जैसे देशो में कोलगेट के रेपर  पर क्या लिखा रहता है मैं आपको वैसा का वैसा ही सुनाता हूँ अंग्रेजी में फिर उसका हिंदी बताऊंगा | उसमें लिखते हैं

प्लीज कीप आउट दिस कोलगेट फ्रॉम थे रीच ऑफ़ थे चिल्ड्रेन बेलो सिक्स इयर्स

मतलब ६ साल से छोटे बच्चे को ये कोलगेट कभी नहीं देना | क्यों ? छोटे बच्चे कोलगेट को चाट लेते हैं | और कोलगेट में केमिकल है जो कैंसर करता है| सोडियम लौर्य्ल सलफेट | वो बच्चे की मृत्यु हो सकती है कैंसर से इसीलिए अमेरिका यूरोप के देशो में कोलगेट के रेपर पर लिखा होता है –

प्लीज कीप आउट दिस कोलगेट फ्रॉम थे रीच ऑफ़ थे चिल्ड्रेन बेलो सिक्स इयर्स |”

दूसरा वाक्य लिखते हैं – “इन केस ऑफ़ एक्सीडेंटल इंजरी, प्लीज़ कांटेक्ट इम्मिडीएटली पाइजन कण्ट्रोल सेण्टर”

माने गलती से किसी बच्चे ने कोलगेट कर लिया तो तुरंत उसको हॉस्पिटल ले कर जाना | क्यूँ ? क्यूंकि  ज़हर खालिया उसने | और तीसरा वाक्य लिखा होता है

इफ यू अरे अन एडल्ट थें टेक थे पेस्ट योर ब्रश ओनली इन पी साइज़ अत योर ओन रिस्क |”

अगर आप बड़े आदमी है | १८ साल से बड़े हैं | तो अपने ब्रश पर कोलगेट की बिलकुल थोड़ी से मात्रा लेना चाहिए चने और मटर के दाने से आधा इतना ही कोलगेट लेना क्योंकि ये केन्सरस है |

अब अमेरिका यूरोप में ये चेतावनी लिखी जाती है कोलगेट के बारे में | भारत में ऐसी कोई चेतावनी वो नहीं लिखते  | भारत में तो उल्टा है विज्ञापन जब आता है न कोलगेट का तो दिखाते हैं ब्रश भर भर के लेना ताकि मरो तो जल्दी मरना | इतना बड़ा धोका आपके साथ हो रहा है ये कोलगेट का |

तो मेरी आपको हाँथ जोड़कर बिनती है की जैसे आपने संकल्प लिया पेप्सी कोक नहीं पियेंगे दूसरा संकल्प लीजिये कि ये विदेशी कोलगेट,क्लोस-उप,पेप्सोडेंट,सिबाका,फोर्हंस भी नहीं करेंगे |

तो अब  आप बोलेंगे क्या करें ?

अपने पतंजलि योगपीठ का बहुत अच्छा टूथपेस्ट अभी आया है दन्त कान्ति उसे कर सकते हैं| पतंजलि योगपीठ का एक बहुत अच्छा दंतमंजन है उसे आप कर सकते हैं | अगर आप पतंजलि योगपीठ का दंतमंजन या दन्तकान्ति खरीदते हैं तो उसका पैसा आप पतंजलि योगपीठ को देते हैं जो भारत स्वाभिमान के काम में आने वाला है और आप कोलगेट-क्लोज-उप खरीदे तो उसका पैसा अमेरिका को देंगे जो आतंकवादियों के काम आने वाला है | आपको तय करना है आपको क्या करना है |

मेरी तो आपको रिक्वेस्ट है बिनती है की आप दन्त कांति खरीदें या दंतमंजन खरीदे या कोई और स्थानीय स्वदेशी दंतमंजन खरीदें | नहीं तो नीम का दातुन करें , बाबुल का दातुन करें | कोई भी ऐसा काम करें जिससे भारत का पैसा अमेरिका न जाये | स्वदेशी दंतमंजन स्वदेशी जैसा टूथपेस्ट इस्तेमाल कर के भारत का पैसा बचाएँ | और एक सिंपल सी बात बताता हूँ की अगर सारे लोग कोलगेट क्लोज-उप खरीदना बंद कर दें | हजारो करोड़ रूपए देश का बचे | उतने ही रूपए का अगर हम दन्त मंजन खरीदें | लाखो लोगो को दंतमंजन बनाने का रोज़गार हम दे सकते हैं इस देश में | तो रोज़गार बढ़ता है | गरीबी दूर होती है | अपने देश के पैसे की बचत होती है और हम स्वदेशी और भारतीयता के सिद्धांत का पालन करते हैं  | यहाँ से आपके जीवन को शुरू करें |

ऐसे ही एक छोटी सी बात कह कर मैं ख़त्म करूँगा की ये आपको एक पुस्तक दी गई होगी जीवन दर्शन | आपके बैग में होनी चाहिए ये पुस्तक अगर नहीं है तो ज़रूर ले लीजियेगा | इस पुस्तक में सबसे पीछे

पेज नंबर ११५ है | इस ११५ नंबर के पेज पर एक सूची दी गई है | उस सूची में लिखा हुआ है क्या क्या वस्तुएं स्वदेशी हैं क्या क्या वस्तुएं विदेशी है | जब भी आप बाज़ार जाएँ तो इस पुस्तक को खोलिए जीवन दर्शन को पेज नंबर ११५ पढ़िए | इसमें जो जो स्वदेशी वस्तुओं के नाम लिखे हैं और उनकी जानकारियां दी गई हैं वही वस्तुएं खरीद कर अब आप अपने जीवन में लाइए | विदेशी वस्तुओं का सम्पूर्ण बहिष्कार करिए | इससे क्या होगा ? देश का हम एक साल में २ लाख ३२ हज़ार करोड़ रूपए बचा सकेंगे |

और ५००० विदेशी कंपनियों को सरकारों ने जो लाइसेंस दिया है | इन कंपनियों को सरकारों ने तो बुला लिया हम इनको हिंदुस्तान से वैसे ही भगा देंगे जैसे हमने अंग्रेजो को भगाया था | सरकार भले इनको बुलाती रहे  हम इनका बहिष्कार कर के इनको भगा देंगे |

मेरी आपसे एक ही बिनती है वो ये की कभी भी विदेशी वस्तुओं में क्वालिटी देखने की कोशिश न करें | कोई क्वालिटी उनमें होती नहीं है | उनमें सिर्फ विज्ञापन होता है | और जिन वस्तुओं में विज्ञापन होता है उनमें क्वालिटी नहीं होती | और जिन वस्तुओं में क्वालिटी होती है उनका विज्ञापन नहीं होता |

आपने कभी देखा की गाय के घी का विज्ञापन होता है? क्योंकि उसमें क्वालिटी होती है | डालडा का विज्ञापन बार बार होता है क्योंकि क्वालिटी नहीं होती | गाय के दूध का विज्ञापन नहीं करना पड़ता | डेरी के पैकेट वाले दूध का बिना विज्ञापन के वो बिकता नहीं है | माँ के हाँथ के बनाई हुई रोटी को विज्ञापन नहीं लगता लेकिन डबल रोटी और पाव रोटी बिना विज्ञापन के नहीं बिकती| माने जो चीज़ जितनी रद्दी होगी क्वालिटी में उसका विज्ञापन उतना ज्यादा ही होगा | मैं बहनों से माताओ से एक बिनती करना चाहता हूँ |

एक विदेशी क्रीम का बहुत विज्ञापन आता है इस देश में फेयर-एंड-लवली | गोरेपन की क्रीम | अक्सर मैंने लोगो को पूछा है आप क्यों खरीदते हैं फेयर-एंड-लवली तो कहते हैं जी गोरापन आता है इससे | हमने फेयर-एंड-लवली को ४ साल एक भैंस को लगा कर देख लिया वो अभी भी काली की काली है | मैं आपको पूरी ईमानदारी से मेरे जीवन की एक व्यतिगत बात बताना चाहता हूँ | मेरा एक दोस्त है जो मेरे साथ हॉस्टल में रहता था पढाई करते समय | वो तमिलनाडु का रहने वाला है | चिक्कट काला है | आपके घर में तवा होता है न रोटी बनने वाला उसको उल्टा कर तो इतना काला मेरा दोस्त है | हम दोनों सात साल हॉस्टल में रहे| हम दोनों रूम पार्टनर थे एक ही कमरे में  मैं और ओव साथ में रहते थे | सात साल मैंने देखा की वो बराबर दिन में तीन बार फेयर-एंड-लवली लगता था | अभी भी चिक्कट काला का काला है |

एक दिन मैंने उसको कहा भैया इतने साल तो हो गए फेयर-एंड-लवली लगाते लगाते तू गोरा तो हुआ नहीं | पैसे इतने खर्च हो गए | तो एक दिन उसको गुस्सा आ गया | उसने फेयर-एंड-लवली कंपनी के खिलाफ एक मुकद्दमा कर दिया | मद्रास की अदालत में |

अब मज़ेदार बात क्या हुई की जिस अदालत में मुकद्दमा हुआ उस अदालत के जज ने एक टिपण्णी की कि उसके घर में भी यही समस्या है | फिर क्या हुआ ? जज ने नोटिस दिया | कंपनी के वकील आ गए | जज ने कंपनी के वकीलों को कहा कि आप ये सिद्ध करिए की फेयर-एंड-लवली  लगाने से कोई भी काला आदमी गोरा कैसे होता है | तो कंपनी के वकीलों ने कहा इस क्रीम से कोई काला गोरा हो ही नहीं सकता | क्योंकि इसमें ऐसा कोई केमिकल नहीं है जो काले को गोरा बनाये | जो काला है वो काला है| जो गोरा है वो गोरा है | तो फिर जज ने पूछा की आप ये झूठा विज्ञापन क्यों करते हो | तो उसके वकीलों ने कहा भारत सरकार ने हमको लाइसेंस दिया है झूठ बोलने का इसीलिए हम ये झूठा विज्ञापन करते हैं |

इस मामले में सबसे ज्यादा मज़ेदार बात ये हुई की इसकी चर्चा बहुत हो गई तो कंपनी ने विज्ञापन देना शुरू किया फेयर-एंड-लवली  नॉट फॉर सेल इन तमिलनाडु क्योंकि मुकद्दमे का जो दायरा था न वो तमिलनाडू तक था | अब तमिलनाडु में तो बहुत कम लोग खरीदते हैं क्यूंकि वो जानते हैं कि कोई काला गोरा हो नहीं रहा है तो आप भी क्यों खरीद रहे हो फेयर-एंड-लवली को | कोई काला गोरा हो नहीं सकता | अगर फेयर-एंड-लवली लगा कर सब गोरे हो जाते तो अफ़्रीकी लोग सबसे पहले होते | ये फेयर-एंड-लवली जो बनती है न ये कुछ नहीं है | एक टेलो नाम का केमिकल होता है | एक तरह का रासायनिक पदार्थ है जो मरे हुए जानवरों की चर्बी में से निकाला जाता है उससे ये क्रीम बनती है | उसको आप चेहरे पर पोतते है और सोचते हैं हम बहुत सुन्दर हो रहे हैं|  और ये महँगी कितनी है?  २५ ग्रा  फेयर-एंड-लवली ४० रूपए की है| ५० ग्रा ८० रूपए की है | १०० ग्रा १६० रु की है | एक किलो १६०० रूपए की है | १६०० रु किलो की क्रीम चेहरे पर लगाये उससे अच्छा है ३०० रु किलो बादाम खाएं |  १६०० रु किलो की क्रीम चेहरे पर लगाये उससे अच्छा है २००  रु किलो देशी घी खाएं | १६०० रु किलो की क्रीम चेहरे पर लगाये उससे अच्छा है ४०० रु किलो कुछ काजू किशमिश मुनाक्किया खाएं तो ज़रूर  कुछ फायदा होगा | इस फेयर-एंड-लवली को आप एक किलो लगा लो या १००० किलो आप काले हैं तो काले ही रहने वाले हैं क्यूंकि आज तक दुनिया में काले को गोरा बनाने की कोई केमिकल इजाद नहीं हुई है |

मैं आपको विनम्रतापूर्वक यह कहना चाहता हूँ की शरीर का कुछ भी बदल सकता है त्वचा का रंग नहीं बदलता | जन्म से आपकी त्वचा का जो रंग तय हो जाता है आपके माता-पिता के डीएनए के साथ फिक्स हो जाता है वही ज़िन्दगी भर रहेगा तो फालतू में ये फेयर-एंड-लवली लगाना क्यों ?

तो आप बोलेंगे फिर क्या करें ?

कोई क्रीम मत लगाइए | आप जैसे हैं बहुत सुन्दर है| कुछ लोगो को ये ग़लतफ़हमी हो गई है की क्रीम लगाने से स्मार्टनेस आती है | हमारे भारत में स्मार्टनेस गुण कर्म और स्वाभाव से आती है क्रीम पाउडर लिपस्टिक से नहीं आती | जिनके गुण कर्म स्वाभाव अच्छे हैं वो सबसे अच्छे हैं | ये बात वो अपने जीवन में गाँठ बाँध ले और इसी बात से उनका और भारत स्वाभिमान का भला होने वाला है |

सिर्फ एक बात कह कर फिर ख़त्म करूँगा अपनी बात को| संपूर्ण स्वदेशी और भारतीयता का आग्रह जो आप अपने जीवन में शुरू करेंगे वो यहाँ से कि कोई विदेशी वस्तु अपने घर में कभी भी खरीद कर नहीं लायेंगे | कम से कम शुन्य तकनीकी की कोई विदेशी वस्तु नहीं लायेंगे | आप ये कह सकते हैं की अगर कोई विदेशी वस्तु हमने खरीद ली तो ? खरीद ली तो उसको भूल जाइये | क्योंकि वो पैसा तो चला गया | अब उसको फ़ेंक देने से भी कोई फायदा नहीं है | भविष्य में कोई नई विदेशी वस्तु मत खरीदिये |

फिर आप पूछेंगे की क्या भारत में सभी स्वदेशी वस्तुएं बनती है ? हाँ | भारत में ऐसी एक भी वस्तु नहीं है सो स्वदेशी ना बनती हो | हर वस्तु भारत में स्वदेशी बनती है | आपको कंप्यूटर चाहिए तो भारत में बनते हैं | एचसीएल नाम की एक बहुत बड़ी स्वदेशी कंपनी है | विप्रो नाम की एक बहुत बड़ी स्वदेशी कंपनी है | दोनों स्वदेशी कम्पनिया बेस्ट क्वालिटी कंप्यूटर बनाती हैं | वो आप खरीद सकते हैं | टेलीविज़न बनाने वाली बीसीयों स्वदेशी कम्पनिया इस देश में हैं  | इसी तरह से रेडियो बनाने वाली बीसीयों स्वदेशी कम्पनिया इस देश में है | कोई भी ऐसी वस्तु है नहीं | अब तो आपको हैरानी होगी जानकर भारत में सुपर कंप्यूटर भी स्वदेशी बनता है |

और हमारे वैज्ञानिको ने बना कर सारी दुनिया के सामने सिद्ध किया है| हम स्वदेशी राकेट बनाते हैं | हम स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने की तयारी कर रहे हैं | हम स्वदेशी सेटेलाइट बना कर अन्तरिक्ष में छोड़ रहे हैं | दुसरे देशो के सेटेलाइट हम अन्तरिक्ष में छोड़ रहे हैं | हमारे देश के वैज्ञानिको के बने हुए सेटेलाइट चन्द्रमा तक पहुँच रहे हैं | जो देश सुपर कंप्यूटर बना सकता है| सेटेलाइट बना सकता है | क्रायोजेनिक इंजन बना सकता है | वो देश आलू का चिप्स भी बना सकता है | टमाटर की चटनी भी बना सकता है | आम का आचार भी बना सकता है | साबुन,मंजन,वाशिंग पाउडर भी बना सकता है |

बस आत्मविश्वास की ज़रूरत है और वो आत्मविश्वास हममें आना बहुत ज़रूरी है| और वो आत्मविश्वास के लिए पहला कदम अपने जीवन में स्वदेशी की स्थापना से शुरू होगा | आप अपने जीवन में संकल्प करें कि हम भारतीय हैं और भारतीय वस्तुओं का ही ज्यादा से ज्यादा उपयोग करेंगे | हम भारतीय हैं और भारतीय परम्पराओं का,भारतीय संस्कृति का, भारतीय सभ्यता का, भारतीय भाषाओ का, भारतीय भोजन का,भारतीय औषधियों का ज्यादा से ज्यादा अपने जीवन में  उपयोग करेंगे | विदेशी वस्तुओं का विदेशी औषधियों का उपयोग नहीं करेंगे | विदेशी औषधियों का मतलब है एलोपैथी की दवाएं जो अक्सर बहार से आ रही हैं और जिनको बेचकर विदेशी कंपनियां हजारो करोड़ रूपए कमा रही हैं | और आपको सुनकर हैरानी होगी जिन दवाओ को वो कंपनियां अपने देश में नहीं बेचती उनको भारत में लाकर बेच देती हैं | दुनिया  के देशो में हजारो दवाए बीस साल से बंद हैं | पैरासिटामोल, स्ट्रेप्टोमाइसिन, पैराम्य्सिन बुताजोंन ओक्स्य्गिन, एस्पिरिन ,डिस्पिरिन, नोवाल्जिन , अनाल्गिन ऐसी ८४००० से ज्यादा दवाएं जो भारत में बिक रही हैं इनमे सिर्फ ३५० दवाएं  हमारे काम की हैं | बाकी सब दवायें बेकार है | ज़बरदस्ती विज्ञापन करके ये दवाए बेचीं जा रही हैं | और हम इन दवाओ को खाकर ज्यादा बीमार पड़ रहे हैं | और डॉक्टरओं की जेब ज्यादा गरम हो रही है| और पूरा का पूरा एलोपैथी का बजट ७ लाख करोड़ रूपए से ऊपर इस देश का पहुँच गया है |

इसीलिए मेरा निवेदन है की ये एलोपैथी की विदेशी दवाए बिलकुल ना खाएं | तो आप बोलेंगे कि जी बीमार पड़े तो क्या करें ?

आयुर्वेद की दवा खाएं | और बीमार ही ना पड़े | योग करें | प्राणायाम करें नियमित रूप से तो आप बीमार ही नहीं पड़ेंगे | अगर योग प्राणायाम नियमित है और आप बीमार नहीं पड़ रहे है तो दवा खाने की ज़रूरत  नहीं है | और जो गलती से कभी जो थोड़ी बहुत बीमारी आ गई तो आयुर्वेद की दवाएं अपने रसोई में है | तुलसी है , हल्दी है ,जीरा है , धनिया है , काली मिर्च | हमारे पास सेंधा नमक है |

गाय का घी है | ऐसी ऐसी सेकड़ो दवाएं हमारे रसोईघर  में है जो आयुर्वेद में हैं | जड़ीबूटी रहस्य नाम की पुस्तक अगर आपने पढ़ी तो उसमें बहुत सारी दवाओ का उल्लेख है जो हमारे रसोईघर में ही उपलब्ध है | हम उनका उपयोग करके अपना लाखो करोड़ो रूपए बचा सकते हैं | और फालतू का खर्चा जो इस देश में बर्बाद हो रहा है उसे भी रोक सकते हैं | तो आप हर स्तर पर स्वदेशी बनने की कोशिश करें | और अपने परिवार के हर व्यक्ति को स्वदेशी बनाने की कोशिश करें | कोई एक प्रतिशत स्वदेशी हो को २ प्रतिशत स्वदेशी हो | कोई ५ प्रतिशत कोई १० प्रतिशत कोई २० प्रतिशत | जिसकी जितनी शक्ति और क्षमता है वो उतना स्वदेशी बनने की कोशिश करे | इसमें ऐसा नहीं है की रातो रात कोई व्यक्ति स्वदेशी हो जायेगा १०० प्रतिशत | इसमें समय लगेगा |लेकिन प्रयास हमारा ईमानदारी के साथ इस दिशा में रहेगा  तो आज नहीं तो कल हम १०० प्रतिशत स्वदेशी हो ही जायेंगे | और इस देश में करोडो लोगो का रोज़गार बढ़ाएंगे और लाखो करोड़ो रुपये की बचत करेंगे |

एक दिन मैंने छोटा सा कैलकुलेशन किया था कि सारी वस्तुएं अगर हम स्वदेशी उपयोग करने लगें जैसे मैं एक ही उदाहरण से कहता हूँ आप में से बहुत सारे भाई बहन असम के होंगे अरुणाचल के होंगे मणिपुर के होंगे और उत्तर पूर्व के राज्यों के होंगे | वहां मैंने देखा है घर घर में कपडा बनता हैं | असाम में तो एक भी घर मैंने नहीं देखा जहाँ कपडा बनाने के लिए वो हैंडलूम लोगो ने नहीं लगा रखा हो | अरुणाचल में मैंने देखा हर घर में हैंडलूम है तो आप ये कपडा बनाते हैं | मैंने छोटा सा कैलकुलेशन किया की हम विदेशी कंपनियों के बने हुए तोलिये खरीदे उसके स्थान पर असाम और असाम के पडोसी राज्यों के लोगो के हथकरघे पर बनाया हुआ तोलिया खरीदे तो १५ करोड़ लोगो को हम इस देश में रोज़गार दे सकते हैं  काम दे सकते हैं | सिर्फ इतनी सी एक छोटी सी बात है | अगर हम विदेशियों के तोलिये खरीदना बंद कर दे और ये अंगवस्त्रं पुरे देश में बिकने लगे १५ करोड़ से ज्यादा लोगो को काम मिलता है | इसी तरह हाँथ की बनाई हुई खादी पहनने लगे खादी खरीदने लगे तो हिंदुस्तान के कम से कम ६० से ६५ करोड़ लोगो को हम रोज़गार दे सकते हैं | कॉटन हिंदुस्तान में भारत में ३ लाख गाँव में पैदा होता है | जहाँ जहाँ कॉटन पैदा होता है वहां वहां खादी के कपडे बन सकते हैं | हर गाँव में खादी के कपडे बन सकते हैं | ६५ करोड़ लोगो को रोज़गार देकर हम बेकारी ख़त्म कर सकते हैं देश की | तो आप सूती कपडे खरीदी खादी के कपडे खरीदे  हाँथ के बने हुए वस्त्र खरीदे | इनका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे और दूसरो को प्रेरित करें तो देश की गरीबी बेकारी ख़तम होती है | अपने घर में काम आने वाली हर वस्तु स्वदेशी खरीदे तो और ज्यादा लोगो की समृद्धि बढती है | तो भारत को गरीबी से मुक्त करना है क्यूंकि ८४ करोड़ लोग इस देश में भयंकर गरीब हैं और इतने गरीब हैं की वो एक दिन मे बीस रूपए भी खर्च नहीं कर सकते | इन ८४ करोड़ लोगो की गरीबी दूर करने का एक ही रास्ता है भारत के हर नागरिक को स्वदेशी और भारतीयता का व्रत लेना पड़ेगा | अपने जीवन में इसको घर्म की तरह पालन करना पड़ेगा तब ८४ करोड़ लोगो को रोज़गार मिलने की स्तिथि बनेगी | और जब उनको रोज़गार मिल जायेगा तब उनकी गरीबी भी मिट जाएगी | बेकारी और गरीबी दोनों मिट जायें तो हिंदुस्तान की आधी से ज्यादा समस्याओं का भारत की आधी से ज्यादा समस्याओं  का समाधान हो जायेगा | ये समाधान भारत स्वाभिमान करेगा और हम सब भारत स्वाभिमान के सेनानी परम पूजनीय स्वामी रामदेव जी के नेतृत्व में इस अभियान में लगे आगे बढे और ईश्वर हमारी पूरी मदद करे | हमें सफलता मिले | इस भावना के साथ आप सभी का आभार | बहुत बहुत धन्यवाद् |