हमारे हिंदुस्तान में तीज त्योंहार होते रहते हैं और हर तीज त्योंहार पर खास तरह के व्यंजन और पकवान बनाये जाते है हर त्योंहार में कुछ खास तेल का उपयोग हो रहा है दुसरे तरह के त्योंहार में दुसरे तरह का तेल उपयोग हो रहा है इसके पीछे एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है
वो विज्ञानं ये है जैसे की फाल्गुन और चेत्र के महीने के त्योंहार जैसे होली पर जो जो पकवान बन रहे हैं तो मौसम के हिसाब से वो बहुत अनुकूल हैं दिवाली के आसपास के जो तीज त्योंहार है वो अलग तरह की प्रीपरेशन से तैयार पकवान हैं इनके पीछे एक अलग ही वैज्ञानिक कारण हैं ये हमारे शरीर को अलग अलग तरह से मदद करने वाले हैं
हमारे देश के ऋषि महारिशियों ने ये देखा की ठंड के दिनों में किस चीज का प्रकोप(वात, पित्त, कफ,) ज्यादा है बरसात के दिनों में किस चीज का प्रकोप ज्यादा है गर्मी के दिनों में किसका प्रकोप ज्यादा है इन प्रकोपों से बचने के लिए जिस मौसम में जो चीज प्रकृति ने हमें दी है उसी चीज को उन्होंने इन व्यंजनों और पकवानों में डाला है. जैसे सर्दियों के दिनों में हम लोग जितने भी त्योंहार मनाते हैं या सर्दियों में जितने भी त्योंहार बताये गये हैं इन त्योंहार में देखा गया है की पकवान ज्यादा से ज्यादा गरिष्ठ होता है जैसे की सर्दियों के दिनों में भरपूर तिल खाया जाता है और टिल के तरह तरह के व्यंजन बनाये जाते है गुजरात में अलदिया खाया जाता है यह उड़द की दल का बनता है ये सब व्यंजन भरी होते हैं इनमे गुरुत्व होता है आसानी से नही पचते धीरे धीरे पचते हैं लेकिन जिन दिनों में हम ये खा रहे हैं उन दिनों ये ही अच्छे हैं कि जल्दी पचने वाली चीज न खाएं
ठंडी के दिनों में पित थोडा कम होता है वात उससे ज्यादा और कफ सबसे ज्यादा होता है अब कफ बड़ा हुवा है तो कफ का असर हमारी जठर अग्नि पर है तो कफ का असर जठर अग्नि पर होने के कारण अग्नि थोड़ी कम रहती है जो गर्मियों के दिनों वो भड़कती है उतनी नही होती अगर अग्नि कम है तो भोजन भी ऐसे ही करने चाहिए जो एकदम से नही पचते धीरे धीरे पचते है ताकि जठर अग्नि और भोजन दोनों का मेल रहे दोनों की गति कम होती है
इसलिए सोच समझ कर यह तय किया गया कि सर्दियों के दिनों में तिल, मूंगफली,गुड़, घी आदि खानी है सेहत बनाने का समय यही माना गया है क्योंकि इनमे खाने पीने की सबसे अच्छी चीजें उपलब्ध होती है इसी तरह के मेल बिठाकर हमारे पूर्वजो ने त्योंहारों के साथ हमारे व्यंजनों का मेल जोड़ा है
गर्मियों के दिनों में उल्टा है जठर अग्नि तीव्र है इसलिए ऐसा खाना खाएं जो शीघ्र पचे, बारिश के दिनों में पीत सबसे कम होता है इसलिए सबसे हल्का खाना खाना चाहिए और एक ही बार दिन में खाएं तो सबसे अच्छा है ऐसा खाना तो खाना ही नही चाहिए जिसमे पानी बहुत हो क्योंकि पहले से ही पानी शरीर में बहुत अधिक होता है प्रकृति के हिसाब से शरीर चलता है इसलिए बारिश के दिनों में साधू संत हरे पत्ते की सब्जियां खाने से मना करते है क्योंकि उनमे पानी बहुत ज्यादा मात्रा में होता है तो आप पानी के शिकार न होयें इसलिए ज्यादा पानी वाली और बहुत ही कम पानी वाली दोनों ही चीजें मना है बारिश के दिनों में.
इस विडियो में देखिए >>