याद हो तो कुछ समय पहले एक बच्चा टीवी पर छाया हुआ था। हरियाणा का कोटिल्य पंडित गूगल बॉय। लेकिन किसी ने ये नहीं बताया कि ये एक ऐसे गुरूकुल में तराशा गया जहां सैंकड़ों बच्चे असीमित प्रतिभा से लैस हैं। अभी कुछ दिन पहले सुना कि साबरमती के इसी गुरूकुल का छात्र तुषार तलावट गणित में विश्वविजेता बन गया। हमारी टीम तुषार से कुछ पिछले महीने ही मिली थी। हर केलकुलेटर फेल है उसकी स्पीड के सामने। 50 जटिल सवाल ढाई मिनट में हल कर दिखा दिए उसने। वैदिक आधारित शिक्षा दे रही इस संस्कृत पाठशाला में गढ़े जा रहे बच्चों से मिलने देश विदेश से दर्जनों युवक युवतियां आए थे. जिनका मौजूदा शिक्षा व्यवस्था से मोहभंग हो चुका है। आखिर ऐसा क्या है हमारी वैदिक शिक्षा पद्धति में कि सबको पछाड़ने और चुनौती देने की क्षमता रखते हैं ये बच्चे। तुषार और गूगल बॉय जैसे दर्जनों मिले। न फास्टफूड, न टीवी, न इंटरनेट। पढ़ाई के बाद कोई डिग्री भी नहीं। लेकिन हर फन में माहिर। हर काम में अव्वल।
अनुशासन, कुशाग्रता, एकाग्रता, याद रखने और गणना करने की क्षमता, काम की गति और कुशलता, भाषा, संगीत कहीं कोई मात नहीं दे सकता इन्हें। न आस – पास के शोर से शिकन आती है, न किसी की शाबाशी से अभिमान। संगीत का हुनर दिखा चुका एक बच्चा थोड़ी देर बाद ही घोड़े को दौड़ाता दिखा। तेज रफ़्तार में दौड़ता उसका घोड़ा अचानक एक दीवार से जोर से टकरा गया। मगर कोई अफरा तफरी नहीं मची। जरा सा ठहर ये युवा घुड़सवार अपने घोड़े को सहलाते और हौसला देते हुए फिर मैदान में आ डटा। घुड़सवारी, मलखम, संगीत, गणित, संस्कृत, पारम्परिक खेल, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष सहित 72 विषय की पढाई करते हैं ये सब। बच्चियों को 64 कलाएं सिखाई जाती हैं। दोनों ही जिस्मानी और दिमागी ताकत से लबरेज मिले।
अवार्ड जितने पर तुषार को सरकार द्वारा भी सम्मान दिया गया >>
Kudos to Tushar Vimalchand Talavat for winning ALOHA Mental Arithmetic Intl competition 2016 held in Indonesia pic.twitter.com/V3DGLyRQXp
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) July 28, 2016
विडियो >>
तुषार सहित इन सब बच्चों को वैदिक गणित पढ़ाने वाला युवक भी राजस्थान के नागौर का ही था। मालूम हुआ जब गणित में स्कॉलरशिप लेकर अहमदाबाद गया था तो खुद को धुरन्धर समझता था। मगर वैदिक गणित के दिग्गजों से मिला तो समझ में आया अभी शुरूआत भर है। फिर वैदिक गणित सीखी और सिखाने लगा। दस साल पहले राजस्थान के ही जिस व्यक्ति ने गुजरात में हेमचंद्राचार्य संस्कृत गुरूकुल की नींव डाली, उनका विज़न दिखा। 90 बच्चों पर 150 शिक्षक। यानी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत तय मानदण्डों से कहीं बेहतर। उस शिक्षा व्यवस्था के बोझ से परे जो हमारे बच्चों को सिर्फ गुलाम और नौकर बनने के लिए तैयार कर रही है। पैमाने भी गलत बना दिए हमने।
गुरुकुल पर राजीव भाई का ये छोटा सा विडियो देखिए >>
अभिभावक और शिक्षक अपनी असल भूमिका भी भूल गए। जरा सा तनाव – असफलता बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हमारे बच्चे। शिक्षकों के साथ हमने भी क्या बर्ताव किया। राजस्थान शिक्षा विभाग के ताजा आदेश का आशय है कि शिक्षक कम होने पर हंगामा हुआ तो प्रधानाचार्य की खैर नहीं। कहीं तो खोट है। चलिए, शिक्षा के इस हारे हुए ढाचे को गुरूकुल के सांचे में ढालें जहां बल, बुद्धि, अध्यात्म और इन्सानियत के धर्म में पारंगत पीढ़ी तैयार हो। मध्यप्रदेश ने शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता का सम्बोधन देने का सोचा है। केवल आवरण नहीं व्यवस्था और पद्धति बदलेगी तभी तो शिक्षकों का रवैया और शिक्षकों के प्रति हमारा नज़रिया भी बदलेगा। फिर दुनिया पर नहीं दुनियावालों के दिलों पर हमारा राज होगा।