दोस्तों क्या आपको पता है अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को ऑफर किया था कि यह जो सत्ता चल रही है इसमें हमारे साथ शामिल हो जाओ, तुम भी लूटो, हम भी लूटें. सारे क्रांतिकारियों ने साफ मना किया था कि तुम्हारी इस लुट की व्यवस्था में हमें शामिल नहीं होना, हमें तो संपूर्ण आजादी चाहिए. संपूर्ण स्वराज्य चाहिए और जिस क्रांतिकारी ने यह बात सबसे पहले कही थी उन्हीं का नाम था नेताजी सुभाष चंद्र बोस. क्या आपको मालूम है उनके जीवन की विडंबना क्या थी उनको आईसीएस (ICS) की नौकरी में सेलेक्ट होना पड़ा. उनके पिताजी की इच्छा की पूर्ति के लिए, क्योकि पिता जी चाहते थे कि मेरा बेटा कलेक्टर बने और बेटे को बार-बार वह ताना मारते थे कि तू बन नहीं सकता. तू होशियार कम है, तेरे पास तैयारी नहीं है, इसलिए बहाना बनाता रहता है. तो बेटे ने अपनी पात्रता सिद्ध करने के लिए परीक्षा दी और उस जमाने में आई सी एस की परीक्षा देने के लिए चार-चार साल लोग पढ़ाई करते हैं. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिर्फ 7 महीने पढ़ाई की थी और उतनी पढ़ाई में उन्होंने आई सी एस के टॉपर की लिस्ट में चौथी पोजीशन पाई थी. उस जमाने में आईसीएस टॉप करना किसी भारतीय लड़के के लिए संभव ही नहीं था, क्योंकि इस परीक्षा में अंग्रेज टॉप किया करते थे. वह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिनको टॉपर लिस्ट में चौथा स्थान मिला
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एक बहुत मजेदार घटना है वह लंदन गए थे, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर आईसीएस की परीक्षा में बैठे थे. जिस दिन रिजल्ट आया, उनके सहयोगी रिजल्ट देखने के लिए गए थे, लेकिन वह नहीं गए तो उनके सहयोगियों ने नाम देखा तो कहीं नहीं मिला तो उनको आकर कहा कि तुम तो पास ही नहीं हुए तो उन्होंने कहा ठीक है कोई बात नहीं पास नहीं हुआ तो.
शाम को ब्रिटिश गवर्नमेंट के डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी आया और नेताजी को बोला कि तुम्हारा नाम पास होने वालों में नहीं है, ऊपर वाली लिस्ट में है और वह लिस्ट अभी तक लगी नहीं है. अब सुभाष चंद्र बोस को दुविधा हो गई कि मैं तो आईसीएस हो गया. अब मुझे कलेक्टर होना पड़ेगा. कलेक्टर होने का मतलब भारतियों को लूटना पढ़ेगा, लूट का कुछ हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ेगा. तो उनके मन में यह शुरू हुआ कि या तो मैं इस लूट में शामिल हो जाऊं या लूट की व्यवस्था के बाहर निकल कर देश के लिए काम करूं
अंत में उनके दिल ने कहा कि तुमको तो लूट में शामिल नहीं होना है क्योंकि तुम्हारा जन्म इसके लिए नहीं हुआ है. उन्होंने नौकरी को रिजाइन कर दिया. जब उन्होंने इस्तीफा दिया था ब्रिटिश सिस्टम में हड़कंप मच गया था क्योंकि भारत के कई लड़के पहले आईसीएस बन चुके थे किसी में हिम्मत नहीं हुई थी इस्तीफा देने की. सुभाष चद्र बोस जी ने इस्तीफा दिया और इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि मै इस तंत्र में शामिल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि मेरी भारत माता की लूट के लिए यह तंत्र बना है और मैं मेरे देश को लुटू यह मेरा दिल मुझे गवाही नहीं देता. इसलिए मै छोड़ रहा हूं. नेताजी ने रिजाइन किया, बोरिया बिस्तर समेट के भारत आ गए, पिताजी के दिल पर वज्रपात हो गया कि बेटे ने आईसीएस को लात मार दी. तो बेटे ने पिता को समझाया कि मै हर बार इस नौकरी को तो लात ही मारूंगा. जब तक यह व्यवस्था भारत को लूटने की व्यवस्था है. मैं इसमें शामिल नहीं हो सकता.
इसलिए नेता जी ने आईसीएस को छोड़ा और जैसे ही आईसीएस छोडी उन्होंने तो सारा देश उनके लिए खड़ा हो गया. जब वह लंदन से वापस आए थे उस समय पानी के जहाज चला करते थे. बंबई में उतरे थे जो हुजूम बंबई में निकला था. वो तो गजब के लोग थे उन्होंने उसी दिन कह दिया था कि अब तो भारत आजाद हो जाएगा क्योंकि जब मुझे समर्थन देने के लिए इतने लोग भारत में है तो मैं जब गांव गांव जाऊंगा तब कितने लोग खड़े हो जाएंगे. उसी कॉन्फिडेंस से उसी आश्वासन पर उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया था. और जब फौज बनाई थी तब माताओं ने अपने मंगलसूत्र उतार के उन को दान किए थे. एक मां उनके पास आई थी अपने अंधे बेटे को लेकर कि इसको फौज में ले लो तो उन्होंने कहा इसको तो दिखाई नहीं देता तो बेटे ने कहा कि दिखाई तो नहीं देता लेकिन आप की फौज में आ जाऊंगा तो दुश्मन की एक गोली तो कम कर ही दूंगा. दोस्तों बहुत ही दुःख की बात है कि ये लूट का तंत्र आज भी चल रहा है, जो कानून अंग्रेज बनाकर गए थे वो आज भी चल रहे है.