एक गन्ने की लंबाई 19 फीट, सुनकर थोड़ी हैरानी हुई न लेकिन ये एकदम सच है। महाराष्ट्र के एक किसान सुरेश कबाडे के खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं। सिर्फ लंबाई ही नहीं वो एक एकड़ में 1000 कुंटल गन्ने की पैदावार भी लेते हैं। नौवीं पास सुरेश कबाडे अपने अनुभव और तकनीकी के सहारे खेती से साल में करोड़ों रुपये की कमाई भी करते हैं।
ये पेड़ी का गन्ना था, लंबाई 19 फीट थी और उसमें 47 कांडी (आंख) थीं। हमारे दूसरे खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं। बीज मैं खुद तैयार करता हूं। देश में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, मैं पांच गुना ढाई फीट से ज्यादा पर बोता हूं। मेरे हर खेत में 1000 कुंटल प्रति एकड़ का उत्पादन होता है – सुरेश कबाडे, गन्ना किसान, सांगली, महाराष्ट्र
मुंबई से करीब 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले की तहसील वाल्वा में कारनबाड़ी के सुरेश कबाडे (48 वर्ष) अपने खेतों में ऐसा करिश्मा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, यूपी तक के किसान उनका अनुसरण करते हैं। उनकी ईजाद तकनीकी का इस्तेमाल करने वालों में पाकिस्तान के भी कई किसान शामिल हैं। “ये पेड़ी का गन्ना (दूसरे साल की फसल, किस्म 86032) है। लंबाई 19 फीट थी और उसमें 47 कांडी (आंख) थीं। हमारे दूसरे खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं।” सुरेश ने फोन पर बताया है।
केला और हल्दी भी उगाते हैं सुरेश। फोटो केले के खेत से
सुरेश काबडे सुरेश के खेत में किसान, वो 20 फीट का भी गन्ना उगा चुके हैं। सुरेश गन्ने के बीच काफी जगह रखते हैं, जिसका असर उत्पादन पर पड़ता है। रोपाई के बाद खेत। वो टिशू कल्चर से भी केला लगाते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और मध्यप्रदेश के कई किसान ले जाते हैं उनके यहां से बीज। केला और हल्दी भी उगाते हैं सुरेश। फोटो केले के खेत से। सभी फोटो- साभार सुरेश काबडे सुरेश के खेत में किसान, वो 20 फीट का भी गन्ना उगा चुके हैं।
करीब 30 एकड़ में आधुनिक तरीकों से खेती करने वाले सुरेश कबाडे पिछले कई वर्षों से लगातार एक एकड़ खेत में 1000 कुंटल से (100टन) का उत्पादन लेते आ रहे हैं। सुरेश खास इसलिए हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बेहतर उत्पादन करने वाला किसान 500 कुंटल प्रति एकड़ की ही उपज़ ले पाता है। जबकि औसत उत्पादन 400 कुंटल ही है। अपनी तकनीकि और तरीके के बारे में सुरेश बताते हैं, “बीज मैं खुद तैयार करता हूं। भारत में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, मैं पांच से छह फीट की दूरी और आंख की आंख की दूरी 2 से ढाई फीट रखता हूं। किसान खेतों में सीधे उर्वरक बो देते हैं, मैं गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालता हूं।”
सुरेश के खेत का गन्ना, महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों के किसानों के साथ कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और गुजरात तक के किसान बीज के लिए ले जाते हैं। “पिछली बार मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में रामदेव सुगर मिल क्षेत्र के एक किसान गन्ना लेने आए। उनका घर मेरे यहां से करीब 1050 किलोमीटर दूर था। मेरी कोशिश रहती है कि गन्ना मिल को देने के बजाए बीज में ज्यादा जाए वो ज्यादा मुनाफा देता और खेत में जल्दी खाली होते हैं।” वो बताते हैं। बीज के लिए जून-जुलाई में कटाई होने के कारण पेड़ी गन्ने का भी औसत अड़साली गन्ने का आता है।
उत्तर प्रदेश की गन्ना बेल्ट लखीमपुर खीरी के रहने वाले प्रगतिशील किसान और जेट एयरवेज में सीनियर फ्लाइट मैनेजर रह चुके दिलजिंदर सहोता उन्हें देश के किसानों का गुरु बताते हुए कहते हैं, “उनका काम बहुत सिस्टमेटिक है, वो खेती की नवीन तकनीकि का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें जमीन और बीज की समझ है। वो देश में प्रति एकड़ 1000 कुंटल उत्पादन लेने वाले पहले किसान हैं।” “हम (यूपी वाले) उनका आधा उत्पादन नहीं कर पाते।” महाराष्ट्र में कम ठंड का पड़ना और खेतों में ज्यादा दिन (15-18 महीने) तक फसल तक का रहना भी उनकी मदद करते हैं।” दलजिंदर आगे जोड़ते हैं।
उनका काम बहुत सुनियोजित है, वो खेती की नवीन तकनीकि का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें जमीन और बीज की समझ है। वो देश में प्रति एकड़ 1000 कुंटल उत्पादन लेने वाले पहले किसान हैं।” “हम (यूपी वाले) उनका आधा उत्पादन नहीं कर पाते। सब उऩसे सलाह लेते हैं – दिलजिंदर सहोता, गन्ना किसान, लखीमपुरखीरी, यूपी
किसानों की आत्महत्या के कुख्यात महाराष्ट्र में सुरेश गन्ने से सलाना 50-70 लाख की कमाई करते हैं, जबकि हल्दी और केले को मिलाकर वो साल में एक करोड़ से ज्यादा का काम करते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने एक एकड़ गन्ना बीज के लिए 2 लाख 80 हजार में बेचा था। 2016 में एक एकड गन्ने का बीज वो 3 लाख 20 हजार में भी बेच चुके हैं। लेकिन कुछ साल पहले तक वो भी उन्हीं पऱेशान किसानों में शामिल थे जो भरपूर पैसे लगाने के बावजूद बेहतर उत्पादन नहीं ले पाते थे। सुरेश बताते हैं, “पहले मेरे खेत में भी प्रति एकड़ 300-400 कुंटल की पैदावार होती थी, फिर मैंने उसकी कमियां समझी और पैटर्न बदला। भरपूर जैविक और हरी खाद डालता हूं, रायजोबियम कल्चर एवं एजेक्टोबैक्टर और पीएसबी (पूरक जीवाणु) का इस्तेमाल करता हूं। गन्ना बोने से पहले उस खेत में चना बोता हूं। गन्ना खेत से पहले उसे ट्रे उगाता हूं। उसमें भी समय और मौसम का ध्यान रखता हूं।”
“पहले मेरे खेत में भी प्रति एकड़ 300-400 कुंटल की पैदावार होती थी, फिर मैंने उसकी कमियां समझी और पैटर्न बदला। भरपूर जैविक और हरी खाद डालता हूं, रायजोबियम कल्चर एवं एजेक्टोबैक्टर और पीएसबी (पूरक जीवाणु) का इस्तेमाल करता हूं। गन्ना बोने से पहले उस खेत में चना बोता हूं। गन्ना खेत से पहले उसे ट्रे उगाता हूं। उसमें भी समय और मौसम का ध्यान रखता हूं।”
सुरेश नौंवी पास हैं लेकिन खेती को किसी वैज्ञानिक की तरह करते हैं। अच्छी वैरायटी (किस्म) के गन्ने की बुआई के लिए वो अप्रैल-मई से लेकर जुलाई तक खेत तैयार करते हैं। 15 अगस्त से ट्रे में बड (अंकुर) उगाना शुरु कर देते हैं, जिसके बाद 15 सितंबर से खेत में निश्चित दूरी प्लांटेशन कर देते हैं। “अब मैं टिशू कल्चर से भी गन्ना उगाने लगाने लगा हूं। मेरे एरिया में केले का टिशू कल्चर बनाने वाले वाली फर्म है मैं उससे अपने खेत में सबसे बढ़िया एक गन्ने से टिशू बनवाना हूं, जिससे तीन साल तक फसल लेता हूं।”
वो बताते हैं किसी भी फसल के लिए जमीन और अच्छा बीज होने बहुत अहम होते हैं, “मैं इन दोनों को काफी अहमियत देता हूं। मैं अपने बीज खुद तैयार करता हूं, बेहतर तरीके से खेतों की जुताई, खाद पानी का इंतजाम करता हूं।” सुरेश बीज के लिए खेत में 9-11 महीने फसल रखते हैं तो मिल के लिए 18 महीने तक गन्ना खेत में रखते हैं। वो कहते हैं किसान को पेड़ी का गन्ना नहीं बोना चाहिए। महाराष्ट्र में तमाम किसान उनकी तकनीकि अपना रहे हैं।
विशेष विधि से बोए अपने गन्ने के खेत में सुरेश कबाडे
पूरे खेत से चुने हुए 100 गन्नों में से एक से बनता है टिशु कल्चर >>
टिशु कल्चर यानि एक किसी पौधे के ऊतक अथवा कोशिशाएं प्रयोगशाला की विशेष परिस्थितियों में रखी जाती हैं, जिनमें खुद रोग रहित बढ़ने और अपने समान दूसरे पौधे पैदा करने की क्षमता होती है। सुरेश अपने पूरे खेत से 100 अच्छे (मोटे, लंबे और रोगरहित) गन्ने चुनते हैं, उनमें 10 वो स्थानीय लैब ले जाते हैं, जहां वैज्ञानिक एक गन्ना चुनते हैं और उससे एक साल में टिशु बनाकर देते हैं। सुरेश बताते हैं, इसके लिए करीब 8 हजार रुपये मैं लेब को देता हूं, वो जो पौधे बनाकर देते हैं, जिसे एफ 1 कहा जाता है से पहले साल में कम उत्पादन होता है लेकिन दूसरे साल के एफ-2 पीरियड और तीसरे एफ-3 में बहुत अच्छा उत्पादन होता है। इसके बाद मैं उस गन्ने को दोबारा बीज नहीं बनाता। टिशू कल्चर से उगाए गए गन्ने की पेड़ी में खरपतवार नहीं होता है।