जिस ऑफिस में कभी लोगों को चाय पिलाया करते थे, आज डेवलपर बन संभालते हैं वेबसाईट

2009

‘रंक से राजा’ बनने की कई कहानीयाँ हमने पढ़ी होगी। कुछ वैसी ही कहानीयाँ आज के उत्साही युवक भी गढ़ रहे हैं। विषमताओं से भरी पृष्ठभूमि से बाहर आकर उन्होंने अपने और आनेवाली पीढ़ियों के लिए नए आयाम निर्धारित कर रहे हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी के नायक हैं राजू यादव।

14 नवंबर 1988 को झारखण्ड के हजारीबाग में जन्मे राजू यादव छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ महज 12 वर्ष की अवस्था में सपनों की नगरी मुंबई चले आए। पढ़ाई में रुचि रखने वाले राजू को अपने पिता की अस्वस्थता के कारण साल 2000 में कुछ अच्छी कमाई दे सकने वाली नौकरी के तलाश में मुंबई आना पड़ा ताकि वे घर के आर्थिक हालात में कुछ मदद कर। राजू के मौसाजी मुबंई में टैक्सी ड्राईवर थे जिनके साथ वे यहाँ पहुँचे। उनके लिए अपने और अपने परिवार के लिए आर्थिक दुष्चक्र से निजात पाना एक बड़ी परिकल्पना थी। बतौर चायवाला शुरुआत कर ऑफिस सहायक के रुप में काम करते हुए राजू आज उसी ऑफिस में फ्रंटएण्ड डेवलपर हैं और वेबसाईटस के लिए कोडिंग करते हैं।

यह उम्र ऐसी नहीं थी उन्हें कोई काम मिल पाता न ही उन्होंने पढ़ाई पूरी की थी। परिस्थितिवश वहाँ अगले दूसरे ही दिन राजू को एक चाय वाले का काम मिला। दक्षिण मुंबई के चीरा बाजार में अलग-अलग कार्यालयों में चाय पहुँचाना और छोटे-मोटे सभी काम करना राजू की जिम्मेदारी थी जहाँ उन्हें 2,000 रुपये महीने के मिला करते थे। जल्द ही उन्हें शादी डाॅट काॅम में ऑफिस सहायक का काम मिल गया। ऑफिस सहायक के रुप में सुबह ऑफिस खोल कर साफ-सफाई करना, चाय काॅफी की आपूर्ति निश्चित करना और बैंकों में कुछ कामों के लिए जाना, उनका काम था। यहाँ से उनके सपनों को नई दिशा मिली वे न सिर्फ हर तीसरे महीने कुछ पैसे अपने घर भेजने लगे बल्कि आगे पढ़ाई करने का भी मन बनाया। अब राजू की भूमिका उसी ऑफिस में कुछ अलग ही है।

ऑफिस में काम कर रहे लोगों को देख उन्हें लगता था कि वे लोग पढ़ाई के दम पर ही इतने अच्छे जीवन के हकदार बने हैं। उन्होंने पढ़ाई की महत्ता को समझा और आगे पढ़ाई करने का संकल्प ठाना। अगली छुट्टी में जब वे वापस घर आए तो उन्होंने एक स्कूल में अपना दाखिला लिया और वापसी में अपने साथ पठन-पाठन की सामग्री ले कर आए। उनके लिए यह दौर बेहद कठिन था। देर शाम तक काम करना और फिर सुबह 9 बजे से पहले ड्यूटी के लिए जाना, एक थका देने वाला काम था। राजू तीन चार लोगों के साथ एक कमरे में रहा करते थे। खाली वक्त में जब उनके साथी टीवी देखते या छुट्टीयों में घूमने जाते, तो राजू अपना वक्त पढ़ाई में बिताया करते।

सफलतापूर्वक दसवीं परीक्षा देकर दूरस्थ शिक्षा माध्यम से उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास की। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए इससे उन्हें काफी उत्साह और उर्जा मिली। वर्तमान में वे पुणे विश्वविद्यालय से B.C.A. की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं।

राजू के उत्साह और लगन को देखते हुए उन्हें ऑफिस में 10 बजे रात तक रुक कर आॅनलाईन पढ़ाई की इजाज़त मिली। ऑफिस में जब डेवलपर की भर्ती आई तो राजू ने भी अपनी उम्मीदवारी व्यक्त की। राजू की जाँच के लिए उन्हें एक प्रोजेक्ट दिया गया जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक कर दिखाया। 1 अप्रैल 2015 को उनकी प्रोन्नति डेवलपर के रुप में हुई।

राजू जल्द ही अपने काम में लग गये। उन्हें तर्क वितर्क में विशेष रुचि रखते हैं। समसामयिक घटनाओं पर वे अपने विचार रखते हैं। राजू का मानना है कि माता-पिता को अपने बच्चों को बेहतरीन से बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध करानी चाहिए।

हमसे से विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “गाँवों में गरीब माता-पिता बच्चों को जल्दी काम पर लगा देते हैं और यदि पैसे हो तो जमीन-जायदाद बनाने पर खर्च कर देते हैं। कई ऐसे युवक भी हैं जो सरकारी नौकरी के इंतजार में रह जाते हैं। उन्हें अपने समय का सदुपयोग कुछ और कौशल सीखने में भी लगाना चाहिए।”

राजू की अभिलाषा अपने ग्रामीण क्षेत्र में गैर सरकारी संस्था बनाने की है। जिससे वे शिक्षा के महत्व का प्रचार-प्रसार कर सकें। वे चाहते हैं कि जिन कठिनाइयों का सामना उन्होंने किया वैसा कोई और न करे।

एक चाय वाले से डेवलपर बनने की कहानी यही सबक देती है कि सच्ची लगन और संकल्प आपके लिए वे सारे विकल्प खोल देता है जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। शिक्षा के महत्व को समझने वाले राजू की दास्तान एक प्रेरणा है उन करोड़ों संघर्ष करने वाले युवाओं के लिए, जो परिस्थिति के आगे झुक जाते हैं।