इन 3 चीजों को रसोई से निकालना जरुरी है, इनसे नपुंसकता, हार्ट ब्लॉकेज जैसी 148 बीमारी आ रही है

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बाज़ार में कई तरह के घी और तेल मिलते हैं. उनमे में से एक डालडा है. डालडा का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा लेकिन डालडा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. राजीव जी ने डालडा के बारे में कई बातें बताई. उन्होंने कहा कि डालडा से नफरत करिये, इतनी नफरत करिये की उसको छूना भी नहीं है. अगर चीनी और डालडा आप अपने घर में इस्तेमाल न करे तो इस से 148 बीमारियाँ आपको कभी नहीं होगी.

आप पूछेंगे कि डालडा की जगह क्या उपयोग करे? डालडा की जगह तेल का इस्तेमाल कीजिये. मूंगफली का तेल, तील का तेल आपके लिए सबसे अच्छा है. अगर आप चाहे तो सरसों का तेल भी खा सकते है, राइ के तेल का भी उपयोग कर सकते है. या फिर नारियल तेल का भी इस्तेमाल कर सकते है. सोयाबीन के तेल का इस्तेमाल गलती से भी ना करे.

उन्होंने आगे एक प्रश्न पूछा. उन्होंने पूछा कि जब हम भगवान की पूजा करते है तो उसमे बहुत सारी दाल रखते है. जैसे कि मुंग की दाल रखते है, मसूर की दाल रखते है, चने की दाल रखते हैं. लेकिन भगवन की पूजा करते समय आपने कभी सोयाबीन की दाल राखी हुई देखी है? जवाब है नहीं. उन्होंने आगे बताया कि जो भगवान् को अर्पण नहीं कर सकते वो आप कैसे खा सकते हैं? इसीलिए सोयाबीन की दाल और तेल गलती से भी न खाइए. सोयाबीन हमारे स्वास्थय के लिए हानिकारक है.

सोयाबीन दाल के रूप में या तेल के रूप में शरीर को कभी भी हजम नही होता. भाई राजीव जी ने सोयाबीन के बारे में कई बातें बताई. सोयाबीन का आप कुछ भी खाएं शरीर उसको हजम नहीं कर सकता. क्योंकि सोयाबीन को पचाने के लिए जो एंजाइम्स चाहिए वह हमारे शरीर में नहीं होते. उन्होंने आगे बताया कि सोयाबीन को पचाने की ताकत सिर्फ डुक्कर (सुवर) में हैं. और किसी में नहीं है. डुक्कर के पेट में एक एंजाइम्स बनता है जो सोयाबीन को पचा सकता है. बाकी किसी के शरीर में ऐसा एंजाइम्स नहीं है.

आप कहेंगे के सोयाबीन में तो प्रोटीन होता है. लेकिन सोयाबीन और उसके प्रोटीन को पचा सके ऐसे एंजाइम्स ही हमारे शरीर में नहीं है. इसी लिए मनुष्यों को सोयाबीन का तेल, सोयाबीन की दाल, सोयाबीन का दूध या फिर सोयाबीन का कुछ भी नहीं खाना चाहिए. कितना भी सस्ता मिले फिर भी कभी भी मत खाना. मूंगफली का तेल हो, तील का तेल हो, सूरजमुखी का तेल हो या फिर सरसों का तेल हो, ऐसे तेल भले कितने भी महेंगे हो जाये,

लेकिन खाने में तेल का इस्तेमाल करे. इनमे से कोई भी तेल खाइए लेकिन शुद्ध तेल ही खाइए. वेजिटेबल ऑयल भी एक प्रकार ऑयल ही है, लेकिन उसे नहीं खाना चाहिए. डालडा, गगन, तरँग, नंबर 1 जैसे कई और नामो से बेचे जाते है. ऐसे सब तेल खाना स्वास्थ्य के लिए खतरा है, जहर है. तेल खाना हो तो शुद्ध तेल खाना, रिफाइंड तेल भी कभी मत खाना. तेल जितना रिफाइंड होता है, उतना ही जहर उसमे बढ़ता जाता है.

क्या आपने कभी विचार नहीं किया ?? कि आखिर जिस Refine तेल से आप अपनी और अपने छोटे बच्चों की मालिश नहीं कर सकते, जिस Refine को आप बालों मे नहीं लगा सकते, आखिर उस हानिकारक Refine तेल को कैसे खा लेते हैं ?? आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइन तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है |

कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं | इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जम कर प्रचार किया लेकिन लोगों ने माना नहीं इनकी बात को, तब इन्होने डोक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया | डोक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइन तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ, अब क्यों, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं

शायद आप मानते होंगे कि तेल और घी खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. भाई राजीव जी ने बताया कि तेल और घी शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना आपके शरीर के लिए पानी. अगर तेल और घी आपके शरीर में नहीं होगा तो आपका शरीर नही चलेगा. सवेरे से शाम आप कई बार अपने शरीर को मोड़ते है,

कई किलोमीटर चलते है फिर भी आपके घुटने और कमर अच्छे से काम करते है. ये सब तेल और घी का ही प्रताप है. शरीर को तेल भी चाहिए और घी भी चाहिए. लेकिन कोनसा तेल और कोनसा घी ये महत्व की बात है. फैट चाहिए, बिना फैट के जिंदगी चलेगी नहीं. लेकिन अच्छा वाला फैट चाहिए. जिसको सरल भाषा में गुड फैट बोला जाता है.

 

विज्ञान की भाषा में कहा जाये तो आपके शरीर को हाई डेंसिटी लिपो-प्रोटीन चाहिए. जिसको एचडीएल भी कहा जाता है. लेकिन आपके शरीर को एलडीएल और बीएलडीएल यानि की वैरी लो डेंसिटी लिपो-प्रोटीन नहीं चाहिए. ये दोनों प्रोटीन फैट का एक सोर्स है. एचडीएल के बिना हमारा शरीर चलेगा नहि.

और ये सबसे ज्यादा ऐसे तेल में मिलता है जो सीधा घानी से निकल कर आता है. आप कहेंगे के ऐसे तेल में से तो बांस आती है या फिर उसका कलर दिखने में अच्छा नहीं लगता. लेकिन उसकी बांस और कलर ही प्रोटीन है. और वास्तव में ये दोनों से ही एचडीएल मिलता है जो शरीर के लिए आवश्यक है.

भाई राजीव जी ने बताया कि पामोलिन तेल और डालडा तेल हमारे शरीर के लिए हानिकारक है. उन्होंने बताया कि पामोलिन तो डालडा से भी ज्यादा खराब है. क्योंकि पामोलिन को दीसेन्त्रिगत करने के लिए शरीर का तापमान 40 से 47 डिग्री तक होना चाहिए. इतना तापमान बुखार आने पर ही होता है.

इसका मतलब ये है कि स्वस्थ व्यक्ति को पामोलिन आयल कभी पचता नहीं है. आप एक ऐसा नियम बनाये कि आप जब भी होटल में जाए तब सबसे पहला सवाल खाना कोनसे तेल में बना है वो पूछिये. अगर उनका जवाब डालडा, पामोलिन, रिफाइंड या डबल रिफाइंड हो तो वहाँ का खाना न खाए. अगर वो आपसे पूछे कि आप कोनसा तेल खाते हो तो उनको बताना के अगर खाना मूंगफली के तेल में, तील के तेल में या फिर राइ के तेल में बना हो तो ही आप खायेगे.

राजीव जी ने एक बहोत अच्छी सलाह देते हुए कहा कि, अगर आप बाज़ार में फरसान लेने भी जाए तो उनसे पूछ लीजिये की फरसान कौन से तेल में बनाया है. और पूछकर ही खरीदे. अगर ये चीज़ में आपको ज्यादा झिक-झिक या झंझट लगती है तो आप अपने घर पे ही फरसान बना लीजिये, सबसे बेहतर यही रहेगा. उतना तो आप कर ही सकते है.

अगर आपके स्वास्थ्य से थोडा भी प्यार है तो इस विडियो में इन सब चीजों की असली सच्चाई देखिए >>