भारत की जनता को इस चौंकाने वाली बात का पता नही है कि 20-22 साल से इस खेल(क्रिकेट) को जान बुझकर प्रमोट किया गया है. और इतना प्रोमोट किया गया है कि समाज का सोचने विचारने वाला वर्ग क्रिकेट में फंस जाए और बाकि सब सोचना बंद कर दे. जैसे जैसे ये ग्लोबलाईजेशन बढ़ा है, वैसे वैसे क्रिकेट का प्रमोशन इतना ज्यादा हुआ है कि एक मैच ख़त्म नही होता दूसरा शुरू हो जाता है, फिर तीसरा, मैच पे मैच लगे रहे और सोचने वाला वर्ग मैच देखता रहे.
और जो मैच न देखे वो ये सास भी कभी बहू है वो देखे, तेरी कहानी, इसकी कहानी, उसकी कहानी ये देखे. सिनेमा देखता रहे, टी.वी. देखता रहे. तो फंसा ही रहे. मतलब सोचने के लिए कोई विचार उसके दिमाग में न आए. और उसका दुष्परिणाम दिख रहा है कि भारत का मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास, जिसको इसमें सबसे आगे आना चाहिए था वो सबसे ज्यादा खामोश बनके 20-22 साल से देश को लुटता हुआ देख रहा है.
बहुत व्यवस्थित तरीके से ये होते हुआ देखा गया है. जिन घर परिवारों में पहले टी.वी नही था, उनको पूछो जरा जाके कि क्या व्यवस्था होती थी पहले, सुबेरे से शाम तक की हर गतिविधि पे बहस होती थी चर्चा होती थी. अखबार में ये खबर आई है, मैगजिन में ये खबर आई थी. जानने की उत्सुकता होती थी. या हम पडोसी के पास जाते थे या पडोसी हमारे पास आते थे. मोहल्ले में या चोपालों में चर्चा होती थी. चर्चाएं होती थी या बहस होती थी. रिश्तेदारों के यहाँ जाते थे या वो यहाँ आते थे तो अलग अलग विषय पर चर्चा होती थी. लेकिन जब से घर घर में ये “सास भी कभी बहू थी”, तेरी मेरी कहानी, इसकी कहानी, उसकी कहानी, ये सब टीवी सीरियल आये है, तब से कोई चर्चा ही नहीं होती.. जो चैनेल आ गये है, और क्रिकेट का मैच आ गया. हर घर में सारी व्यवस्था टूट गयी, अब कोई रिश्तेदार के यहाँ जा नही रहा, कोई किसी के यहाँ आ नही रहा है. गलती से आप कहीं चले भी जाओ तो टी.वी. चालु हो तो कोई बात करने को राजी नही है.
समाज का एक भाग जो कर्मठ है, कर्मशील है उसको क्रिकेट में फसाओ और दूसरा वर्ग जो घर की व्यवस्था को संभाल सकता है उसको सुबेरे से शाम तक सास-बहु के सीरिअल में फसाओ. ये ही काम रह गया. और आपके पास जब इतना इंगेजमेंट आ गया तो देश के लिए करोगे क्या, समाज के लिए सोचोगे क्या ?
20-22 साल में बहुत कुछ व्यवस्थित हुआ है. एक तरफ से लूट पाट शुरू हुयी है, और दूसरी तरफ से इसके लिए विद्रोह न हो जाए तो विद्रोह करने वाले वर्ग को टी.वी में फंसा दो. और टी.वी से क्रिकेट में और क्रिकेट से सीरियल में, सीरियल से सिनेमा में और सिनेमा के बाद और थोड़ी बहुत बकवास में और आज देख लो जो एजुकेशन से लगा हुआ वर्ग है वो भले कितनी परीक्षा पे परीक्षा हो क्रिकेट देखने से नही चुकेगा. भले इम्तिहान में फेल हो जाए.
और वो बार बार ये टेस्ट करते हैं कि भारत में क्रिकेट की दीवानगी कहा तक पहुंची है इसलिए वो ऐसे समय पर क्रिकेट मैच रखते हैं जब परीक्षा जरुर हो. तब ये अब उन्होंने देख लिया कि या तो परीक्षा हो या परीक्षा का बाप हो मैच देखने वालों की संख्या में कोई कमी नही है. तो वो ये अब समझ गये हैं, कि भारत में क्रिकेट देखनेवालों की कोई कमी नही है.
अब वो ये समझ गये हैं कि अब ये जनून बहुत ऊपर तक पहुँच गया है. तो इस जनून को एमकस करते रहो और दिमाग आपका इधर लगाते रहो. और क्रिकेट के खेल में जब सारे देश को ये पता चल गया है, चलो पहले तो पता नही था आपको कि सारे मैच फिक्स होते हैं. भारत की टीम लंदन में मैच खेलने गयी, मैच हुआ भी नही था, लेकिन लंदन टाइम्स में पहले ही छाप गया था कि भारत और पाकिस्तान की जो श्रृंखला है वो फिक्स हो गयी है. और जो छपा था. रिजल्ट भी वो ही आए. मोहमद अज्रुदीन ने तो खुले आम स्वीकार कर लिया था. सीबीआई रिपोर्ट में भी आ गया था कि हर एक एक बड़ा खिलाडी फ़िक्सर है. मेनेजर तक फ़िक्सर हैं. (ये पुराना वाकया है, इसके बाद भी अजरुधिन पर प्रतिबंद लगा दिया था)
सब कुछ तो मालूम है लेकिन फिर भी भीड़ बढती चली जा रही है. सबको मालूम है कि छक्का ही लगेगा फिर भी तालियों पे तालियाँ. पता है कि ये फिक्स है पहले से फिर भी पागलपन बढ़ रहा है. अगर लोगों को कहो कि क्या मजा आता है तो कहते हैं कि हम तो देखेंगे क्या फर्क पड़ता है, मजा आता है इसमें. तो काम-धंधा छोडो, नौकरी छोडो और मैच देखते रहो. छुट्टी लेके मैच देख रहे हैं, छुट्टी का हर्जाना भरके मैच देख रहे हैं. अंग्रेज तो ठण्ड में क्रिकेट खेलते थे, धुप लेने के लिए और यहाँ देखो अप्रैल की भरी धुप पड़ी है और क्रिकेट चल रहा है.
एक और बात जिस दिन क्रिकेट मैच आता है उस दिन प्राइवेट और सरकारी दफ्तर, दुकान, नुक्कड़ हर जगह सब काम छोड़कर मैच देखने में लग जाते है. सरकारी दफ्तर वाले तो कुछ भी बहाना लगाकर काम टाल देते है. मैच देखते है. सोचिये देश का कितना समय और धन खर्च होता है, और मिलता कुछ नहीं है. और जो बड़े खिलाडी है जिन्हें आप क्रिकेट का भगवान कहते है. ये कभी भी राज्यसभा नहीं जाते सिर्फ वहा की पगार और सुविधाए लेते है. जो देश के गरीबो के टैक्स के पैसे से चलती है. वहा नहीं जाते जहा देश के कानून और वयवस्था पर चर्चा होती है.. और एक मैच हो जाये देश के किसी भी कोने में वही पहुच जाते है.
इस विडियो में देखिये फिक्सिंग की सच्चाई >>