देखिए क्या हुआ जब जेल में राजीव दीक्षित का सामना किरण बेदी से हुआ

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गेट करार को हुए कुछ समय ही बीता था । भारत सरकार के मेहमान रूप में आर्थर डंकन यहाँ आया । दरअसल गेट करार में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी । डंकन ने ही इस करार का प्रारूप बनाया था । राष्ट्रवादी संगठन आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं में गेट करार समेत डंकन के भारत आगमन पर गुस्सा था । दिल्ली हवाई अड्डा के लाउन्ज पर उसे तसल्ली से पीटा गया एवं वहीं से वापस भेज दिया गया । आजादी बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं के डर से उसे सीधा हवाई अड्डे के रन वे पर भागना पड़ा । सरकारी मेहमान की पिटाई पर सरकार ने राजीव दीक्षित को गिरफ्तार कर लिया  । गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में ले जाया गया । आपको बता दें किरण बेदी उस समय तिहाड़ जेल की सुपरिंटेंडेंट थीं । जेल में सिपाही ने राजीव दीक्षित से कहा अपने कपडे उतारो तो राजीव भाई ने कहा क्यों ? तो उसने कहा कि ये रुल है जो मुझे ओर आपको मानना पड़ेगा. सिपाही ने किरण बेदी को बुलाया । उन्होंने भी कहा कि यह 1860 ई. का कानून है । राजीव दीक्षित ने उस कानून का मेन्यूल मांगा और कहा कि मुझे वो कानून पढना है तो किरण बेदी ने कैसे भी करके उन्हें मेन्यूल उपलब्ध करवाया । मेन्यूल में जो लिखा था उसे पढ़कर किसी भी स्वाभिमानी भारतीय का खून खोल जाए.. आप इस विडियो में देखिए क्या थी पूरी कहानी और उस कानून में क्या लिखा हुआ था

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अपने देश में पुलिस है, वो डंडा लेकर घुमती है आप किसी से पूछिए कि आप डंडा लेकर क्यों गुमते है बाकि तो किसी अधिकारी के पास डंडा नहीं होता पुलिस के अधिकारी के हाथ में ही क्यों होता है, बड़ा अधिकारी होगा तो छौटा रूल लेकर चलेगा और अगर छौटा अधिकारी है तो लंबा सा डंडा लेकर चलेगा, क्यों ??? कोई भेड़ बकरियों को चराने जाना है क्या|जब कोई भेड बकरियों या जानवरों को लेकर चराने जाता है तो उनको हाकने के लिये डंडा रखता है वो तो समझ में आता है लेकिन तुम पुलिस वाले होकर ये डंडा लेकर चले हो ये समझ नहीं आता|

एक बार यही प्रसन राजीव दीक्षित जी ने अपने ही घर में उठाया, उनके ताऊ जी पुलिस में बड़े अधिकारी थे उनको राजीव भाई ने एक बार पूछा कि आप ये डंडा लेकर क्यों चलते है तो उन्होंने कहा कि मुझे भी नहीं मालूम | तो राजीव भाई ने कहा कि पता लगाओ इसका कुछ तो कारण होगा फिर उन्होंने कुछ अभ्यास किया और बताया कि  ये पुलिस मैन्युअल में लिखा हुआ है कि हर पुलिस ऑफिसर को डंडा लेना ही पड़ेगा तो राजीव भाई ने कहा कि क्यों लिखा हुआ है तो 1860 का ही एक कानून है जिसको कहते है Indian Police Act, उस कानून में ये लिखा हुआ है कि पुलिस जो है वो अंग्रेजो की है और डंडा जिसपर चलेगा वो भारतवासी है तो अंगेजो की पुलिस के हाथ में डंडा होना चाहिए ताकि वो जब चाहे तब भारतवासियों को पिट सके

तो इंडियन पुलिस एक्ट के हिसाब से हर अंग्रेज पुलिस ऑफिसर को एक अधिकार दिया गया है जिसको अंग्रेजी में कहते है Right to affiance और जिसकी पिटाई हो रही है उसको कोई अधिकार नहीं है right to defense. मुझे अपना डिफेन्स करने का अधिकार नहीं है यदि पुलिस ने मुझे डंडा मारा और मैंने उसको रोक दिया तो केस मेरे ऊपर बनेगा ना की उसके ऊपर, और मुकदमा ये होगा कि अपने एक पुलिस ऑफिसर को उसकी ड्यूटी करने से रोका और उसकी ड्यूटी क्या है मेरे ऊपर डंडा चलाना, ये कानून 1860 का बना हुआ है जो आज भी पुरे देश में लागु है उसमे कही पर भी कोई भी बदलाव नहीं है